Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बाँसवाड़ा और डूंगरपुर में मुकाबला रोचक

Advertiesment
हमें फॉलो करें बाँसवाड़ा
बाँसवाडा (वार्ता) , सोमवार, 27 अप्रैल 2009 (11:54 IST)
दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बहुल बाँसवाडा डूँगरपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के परम्परागत गढ़ में सेंध लगाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने इस बार नए चेहरे को चुनाव मैदान में उतारकर रोचक मुकाबले के हालात बना दिए हैं।

गुजरात की सीमा से लगी इस सीट पर दो बार कांग्रेस सांसद रह चुके ताराचंद भगोरा के मुकाबले भाजपा ने हकरु मईडा को खड़ा किया है। कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रभुलाल रावत ने जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का दामन थामकर ताल ठोंकी है। समाजवादी पार्टी (सपा) के भाणजी भाई तथा लोसपा के प्रो. मोहन डामोर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के बन्नू मीणा भी मैदान में हैं।

गहलोत सरकार ने सौ दिन के कार्यकाल में जनहित के फैसलों की श्रृंखला में प्रस्तावित ताप एवं परमाणु बिजलीघर की स्थापना के लिए निर्णय को अहम चुनावी मुद्दा बना दिया है। आजादी के साठ साल बाद भी आदिवासी बहुल यह इलाका रेल से नहीं जुड़ पाया है। सड़कों की दृष्टि से क्षेत्र पिछड़ा हुआ है और बेरोजगारी की समस्या से भी आदिवासी परेशान हैं।

पहले ताराचंद भगोरा की उम्मीदवारी घोषित होने से कांग्रेस ने इस क्षेत्र में प्रारंभिक बढ़त हासिल कर ली थी। पिता के निधन से उनका प्रचार अभियान धीमा पड़ गया लेकिन सहानुभूति का लाभ मिलने की गुंजांइश है।

भाजपा प्रत्याशी हकरु मईडा के नाम की घोषणा में विलम्ब से उन्हें चुनाव प्रचार को गति देने में काफी जोर लगाना पड़ रहा है। डूँगरपुर जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें अपनी पहचान बनाने में कठिनाई आ रही है।

बाँसवाडा क्षेत्र से सांसद रहे और गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री महेन्द्र जीतसिंह मालवीय ने कांग्रेस के प्रचार अभियान की कमान संभाल रखी है जबकि वसुंधरा सरकार के गृहमंत्री भाजपा विधायक गुलाबचंद कटारिया रथ लेकर चुनाव प्रचार में जुटे हुए है।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग-जदयू) का इस संसदीय क्षेत्र में दबदबा रहा है। दोनों जिले से इस पार्टी को विधानसभा चुनावों में सफलता मिलती रही है। गत चुनाव में तीन की जगह जनता दल को एक सीट पर संतोष करना पड़ा और शेष सात सीटें कांग्रेस की झोली में चली गईं।

चुनाव के ऐन वक्त कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रभुलाल रावत को जनता दल (यू) ने प्रत्याशी बनाकर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है। दूसरी तरफ जनता दल के पूर्व विधायक जीतमल खाट के भाजपा में शामिल होने से उसकी ताकत में इजाफा हुआ है। भाजपा प्रत्याशी को संघ एवं श्रमिक संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. सी.पी. जोशी के साथ इस संसदीय क्षेत्र में दो बड़ी चुनाव सभाएँ कर चुके है। इसके अलावा नुक्कड़ सभाओं का आयोजन भी चल रहा है। पार्टी संगठन में निचले स्तर पर रस्साकशी से नुकसान को नकारा नहीं जा सकता।

इस आदिवासी क्षेत्र में वामपंथी विचारधारा के संगठन काफी सक्रिय रहे हैं लेकिन उनका प्रभाव सीमित दायरे में रहा है। उधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) से जुडे संगठनों ने ईसाई मिशनरियों के खिलाफ जागरण अभियान चलाए हैं। इसी के चलते भाजपा का राम मंदिर निर्माण का मुद्दा चुनावी चर्चा में शामिल हो गया है।

लोकसभा के अब तक हुए चौहद चुनावों में कांग्रेस को इस क्षेत्र में ग्यारह बार सफलता मिली है। गैर कांग्रेस दलों में भारतीय लोकदल प्रत्याशी हीराभाई को 1977 की जनता लहर में पहली सफलता मिली। उन्होंने 1989 में परिवर्तन लहर में फिर जीत दर्ज की।

भाजपा के धनसिंह रावत ने वर्ष 2004 के चुनाव में सफलता हासिल कर इस क्षेत्र में पार्टी का खाता खोला लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पराजित होने पर पार्टी ने उन्हें दोबारा टिकट देना मुनासिब नही समझा।

कांग्रेस के भीखाभाई, प्रभुलाल रावत, ताराचंद भगोरा तथा गैर कांग्रेसी हीराभाई दो-दो बार इस क्षेत्र से निर्वाचित हुए लेकिन किसी भी प्रत्याशी ने लगातार दूसरी चुनावी जीत दर्ज नहीं की।

भाजपा ने 1998 के चुनाव में पहली बार महिला प्रत्याशी के रूप में लक्ष्मी नीनामा को चुनाव मैदान में उतारा लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इससे पहले 1996 में नवनीत लाल निनामा को भी पराजय का सामना करना पड़ा।

बाँसवाड़ा संसदीय क्षेत्र में लगभग पन्द्रह लाख मतदाता है जिनमें आदिवासी समुदाय के विभिन्न वर्गो के मतदाता बहुतायत में है। सात मई को होने वाले चुनाव में यह पता चलेगा कि कांग्रेस के इस गढ़ में भाजपा अपनी चुनावी जीत को दोहरा पाती है या नहीं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi