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राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में टूट का खतरा

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नई दिल्ली (नई ‍दुनिंया) , रविवार, 17 मई 2009 (13:33 IST)
- मनोज वर्मा

आखिरकार भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी पीएम इन वेटिंग ही रह गए। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा चुनाव हार गई। पार्टी के रणनीतिकारों को इसका पहला कारण फौरी तौर पर यही समझ में आ रहा है कि यदि चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सक्रिय भूमिका रहती तो परिणाम कुछ और होते।

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प्रधानमंत्री के तौर पर आडवाणी की उम्मीदवारी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। उम्मीद से कम सीटें मिलने के कारण आडवाणी की टोली के रणनीतिकार सकते में हैं। रणनीतिकार यह मान रहे हैं कि मप्र, राजस्थान, उप्र, महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने पार्टी का गणित बिगाड़ दिया।

हालाँकि सार्वजनिक रूप से भाजपा अपने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार का ठीकरा वाम मोर्चे वाले तीसरे मोर्चे पर फोड़ रही है, तो दूसरी ओर एनडीए में टूट और बिखराव का खतरा पैदा हो गया है।

राजनाथ पर दबाव : हार के साथ भाजपा के भीतर की फूट उभरकर सामने आने लगी है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथसिंह पर इस्तीफे का दबाव है तो लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि वे राजनीति में सक्रिय रहेंगे लेकिन लोकसभा में अब विपक्ष का नेता नहीं बनना चाहते।

आडवाणी के खिलाफ मोर्चा : इस हार के लिए भाजपा का एक तबका वरुण गाँधी के "हिन्दुत्व" को जिम्मेदार मान रहा है, तो कोई हार का ठीकरा आडवाणी के ही चुनाव प्रबंधकों के सिर फोड़ रहा है। आडवाणी और उनकी टीम के रणनीतिकार निशाने पर हैं।

आडवाणी के खिलाफ सबसे पहला मोर्चा छत्तीसगढ़ के बस्तर संसदीय क्षेत्र से लगातार चौथी बार चुनाव जीते भाजपा सांसद बलिराम कश्यप ने खोलकर इसकी औपचारिक शुरुआत भी कर दी है।

कश्यप का कहना है कि चुनाव में आडवाणी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करना पार्टी की सबसे बड़ी गलती थी। आखिर 2004 की हार से सीख न लेते हुए भाजपा रणनीतिकार अपने हवाई सर्वे के जरिए केंद्र में सत्ता पाने का सपना देखते रहे और सेल्फ गोल कर बैठे।

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