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'गरीबों के मसीहाओं' को नकारा जनता ने

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वाराणसी (भाषा) , मंगलवार, 19 मई 2009 (14:00 IST)
हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मसीहा बताकर जिन माफिया को उम्मीदवार बनाया था उनमें से अधिकतर को उत्तरप्रदेश की जनता ने खारिज कर दिया। इससे पूरे देश में राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ दूरगामी संदेश गया है।

उत्तरप्रदेश में राजनीति में आए माफिया में बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार मुख्तार अंसारी, बसपा के ही गाजीपुर से उम्मीदवार मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी, श्रावस्ती से रिजवान जहीर, उन्नाव से अन्ना शुक्ला, बदायूँ से डीपी यादव और बागपत से गुड्डू पंडित हैं जिन्हें मुख्यमंत्री मायावती ने 'गरीबों का मसीहा' बताकर चुनाव में उतारा था लेकिन जनता ने उन्हें खारिज कर दिया। इससे अपराधियों को राजनीति में लाने की देश के अनेक राजनीतिज्ञों की मंशा धराशायी हो गई।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रजनी रंजन झा ने कहा कि इस बार के चुनावों में प्रदेश की जनता ने खतरनाक अपराधियों एवं माफियाओं को मुख्यमंत्री द्वारा गरीबों का मसीहा बताए जाने को पूरी तरह अस्वीकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि प्रतीत होता है कि मुख्यमंत्री के इस कदम की प्रतिक्रिया में ब्राह्मणों और समाज के अनेक वर्गों ने बसपा का साथ लगभग छोड़ दिया जिसके कारण पार्टी को पूरे प्रदेश में नुकसान उठाना पड़ा।

उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने तेरह अप्रैल को वाराणसी में अपनी चुनावी सभा में पार्टी के उम्मीदवार माफिया डॉन और भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में गाजीपुर जेल में बंद मुख्तार अंसारी को जिताने की अपील करते हुए उन्हें गरीबों का मसीहा बताया था।

इसके कुछ दिनों बाद ही उन्नाव में उन्होंने एक जनसभा में कहा था कि उनकी पार्टी से चुनाव लड़ रहे अपराधी उम्मीदवारों का हृदय परिवर्तन हो चुका है और अब वे गरीबों और दीन-दुखियों के लिए समर्पित हैं।

हाल के लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रदर्शन के बारे में टिप्पणी करते हुए कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि मायावती ने अधिक से अधिक संख्या में अपराधियों को चुनाव लड़ाकर प्रदेश की राजनीति का अपराधीकरण करने की भरसक कोशिश की, लेकिन प्रदेश की जनता इसे समझने में पूरी तरह सक्षम और परिपक्व है कि वास्तव में गरीबों का हितैषी कौन है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने कहा कि मायावती के इन तथाकथित मसीहाओं को प्रदेश की जनता ने ऐसा सबक सिखाया कि अब शायद ही कभी वे इस तरह के लोगों का साथ देने की सोचेंगी।

प्रोफेसर झा ने कहा कि बिहार में भी जनता ने लगभग सभी आपराधिक छवि वाले राजनीतिज्ञों को इन चुनावों में धूल चटाकर सभी राजनीतिक दलों को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि इस तरह के राजनेताओं से जनता आजिज आ चुकी है।

उन्होंने कहा कि न सिर्फ बसपा बल्कि अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से चुनावी मैदान में कूदे आपराधिक इतिहास वाले उम्मीदवार अतीक अहमद को भी जनता ने धूल चटा दी। उन्होंने कहा कि न सिर्फ जनता ने इन माफियाओं को मसीहा बताने की बात को खारिज किया बल्कि लगता है कि ऐसी बात कहने की प्रतिक्रिया स्वरूप मतदाताओं का एक वर्ग बुरी तरह रुष्ट हो गया और उन्होंने प्रतिक्रिया में बसपा का साथ छोड़ दिया जिनमें इस बार उत्तरप्रदेश में ब्राह्मण मतदाता प्रमुख रहा।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ही राजनीति विज्ञान की एक अन्य प्रोफेसर चंद्रकला पांडिया ने कहा कि इस बार के चुनावों में जो माफिया और अपराधी उत्तरप्रदेश में चुनाव जीतने में सफल भी हो गए हैं, देश की जनता का बदलता रुख देखते हुए उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है।

उन्होंने कहा कि इन आम चुनावों में जिस तरह जनता ने अपराधियों को नकारा है वह सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए एक बड़ा सबक बन सकेगा।

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