चुनाव आयोग के कड़े नियमों ने इस बार उन लोगों का धंधा मंदा कर दिया है जो चुनावी मौसम में विभिन्न पार्टियों के चुनाव प्रचार के लिए दीवारों को रंगने और स्लोगन लिखने जैसे कामों से हजारों की अतिरिक्त कमाई करते थे।
आयोग ने इस बार कहा है कोई भी राजनीतिक पार्टी या प्रत्याशी अपने समर्थकों को आयोग की अनुमति के बिना किसी की निजी जमीन, इमारत या दीवारों पर झंडे बैनर या नोटिस लगाने और स्लोगन लिखने की अनुमति नहीं दे सकता।
ऐसे कर्मियों के संगठन की शिकायत है कि चुनावों की गर्मी में हमारी दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं है।
आयोग के निर्देशों के बाद प्रदेश सरकार के हालिया आदेश ने इनके जख्मों को और भी गहरा कर दिया है जिसमें चेन्नई से ऐसे होर्डिंग्स को हटाने के लिए कहा गया है जो बहुत ऊँचे होने के कारण बाधा पैदा करते हैं।
संगठन ने कहा है कि स्लोगन लिखने वालों के साथ केटरर्स और आउटडोर एडवरटाइजिंग एजेंसियों का धंधा भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। तमिलनाडु आउटडोर एडवरटाइजिंग एसोसिएशन के सचिव एजी नायकम ने कहा चुनावों के दौरान दीवारों पर चित्र बनाने वाला प्रत्येक कलाकार लगभग 25000 रुपए प्रति महीने कमा सकता था।
ऐसे ही एक कलाकार कन्नन ने कहा हर साल कई प्रत्याशी और उनके समर्थक हमारे पास आते थे लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। ये चुनाव हमारे लिए जरा भी फायदेमंद नहीं रहे।
चुनाव आयोग के डंडे से न केवल कलाकार प्रभावित हुए हैं बल्कि यह उन घरों के मालिकों पर भी चला है जो अपने घरों की दीवारों को रंगने के एवज में विभिन्न पार्टियों से मोटी कीमत वसूलते थे।
इसके अलावा लोकसभा चुनावों में कटआउट बनाने वाले कलाकारों के रोजगार पर भी खासी चोट पहुँची है। प्रदेश स्थित प्रिंटिंग प्रेस भी इस बार चुनावी मौसम में कोई खास फायदा नहीं उठा पा रहीं। एक आफसेट प्रिंटर कुमार का कहना है कि इस बार नेताओं ने हर बार की तुलना में सिर्फ एक चौथाई आर्डर दिए हैं।