- मनोज वर्मा
तीसरे चरण के मतदान से ठीक पहले भाजपा को इस बात का अहसास हो चला है कि उसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को अपने बल पर बहुमत मिलने नहीं जा रहा है। लिहाजा, भाजपा ने गैर-कांग्रेसवाद का नारा लगाना शुरू कर दिया है। इतना ही नहीं, भाजपा ने उन राज्यों में अपने कैडर को गैर-कांग्रेसी उम्मीदवारों का समर्थन करने का संकेत भी दिया है, जहाँ पार्टी के उम्मीदवार मजबूत स्थिति में नहीं हैं।
चाबी खुद रखने की मंशा : उड़ीसा और आंधप्रदेश में भाजपा ने लोकसभा चुनाव से ज्यादा विधानसभा चुनाव में अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। इन दोनों राज्यों में लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं।
भाजपा इन राज्यों में सत्ता की चाबी अपने हाथ में रखना चाहती है ताकि क्षेत्रीय दलों के सामने राज्य में समर्थन देने के बदले केंद्र में समर्थन देने की शर्त रख सके। दो चरणों के मतदान के बाद भाजपा के रणनीतिकार यह तो दावा कर रहे हैं कि भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरेगी लेकिन राजग को बहुमत मिल पाएगा या नहीं, इस मुद्दे पर कोई भी दावा करने से बच रहा है। भाजपा को अपने बलबूते लगभग 160 सीटें जीतने की उम्मीद है।
सहयागियों को 50 सीटें : पार्टी का आकलन है कि लगभग 50 सीटें राजग के सहयोगी दलों को मिलेंगी यानी भाजपा और राजग के सहयोगी दलों की सीटें मिलाकर लगभग 210 के आस-पास रहेंगी यानी केंद्र में अगली सरकार बनाने के लिए बहुमत से करीब 62 सीटें कम।
राजग के बाहर यूपीए और तीसरे मोर्चे के जिन घटकों पर भाजपा की नजर टिकी है उनमें आंधप्रदेश में तेलुगुदेशम और टीआरएस, उड़ीसा में बीजू जनता दल, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस मुख्य रूप से शामिल हैं। इस प्रकार तमिलनाडु को लेकर भाजपा ने जयललिता की एआईडीएकके के लिए रास्ता खोल रखा है।
स्थानीय दल बदलेंगे : भाजपा मान रही है तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और उत्तरप्रदेश के स्थानीय दल चुनाव बाद अपनी रणनीति बदलेंगे। मसलन, उत्तरप्रदेश की समाजवादी पार्टी जिस मोर्चे में शामिल होगी मायावती की बसपा ठीक उसी मोर्चे के खिलाफ बने गठबंधन के साथ खड़ी होंगी। इस प्रकार तमिलनाडु में करुणानिधि और जयललिता केंद्र में अपने-अपने मोर्चे चुनेंगे।