मतदाताओं को जागरूक करने के तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों के बावजूद कानपुर की जनता ने 1952 के मतदान की याद दिलाते हुए पंद्रहवीं लोकसभा के गठन के लिए गत 30 अप्रैल को हुए मतदान में कम मतदान का रिकॉर्ड बना दिया।
30 अप्रैल को मतदान के दिन जब जिला प्रशासन ने कानपुर के मतदान प्रतिशत के आँकड़े मीडिया को दिए थे तो बताया गया था कि कानपुर में 15वीं लोकसभा के लिए करीब 39 फीसदी मतदान हुआ, लेकिन बाद में जब जिला प्रशासन ने एक-एक मतदान केन्द्र से जानकारी हासिल कर आँकड़े मीडिया को बताए तो यह काफी चौंकाने वाले थे। इन आँकड़ों से पता चला कि कानपुर में इस बार मात्र 36.88 फीसदी मतदान ही हुआ है।
देश की आजादी के बाद 1952 में पहली लोकसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में कानपुर में 34.60 फीसदी मतदान ही हुआ था। लेकिन उसके बाद से हर मतदान में मतदाताओं का प्रतिशत बढ़ता ही गया।
शहर के डीएवी डिग्री कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. जयशंकर पांडे कहते है कि मतदान के कम प्रतिशत का सबसे बड़ा कारण आम मतदाताओं का नेताओं पर से विश्वास उठ जाना है। पहले के नेताओं पर जनता को विश्वास था उनकी बातों में दम था उनकी एक आवाज पर जनता उठ खड़ी होती थी और बड़े-बड़े आंदोलनों के लिए तैयार हो जाती थी।
प्रोफेसर पांडे कहते है कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि देश के पढ़े-लिखे लोगो में एक यह भावना घर कर गई है कि आखिर हमारे एक वोट से क्या होगा। इससे कोई देश थोड़े ही बदल जाएगा। इसलिये लोग मतदान करने नहीं जाते और इसीलिये मतदान का प्रतिशत लगातार गिरता जा रहा है।
पांडे कहते हैं कि नेताओं को चाहिए कि वे देश हित के बारे में केवल भाषण ही न दें, बल्कि कुछ ठोस काम करके दिखाएँ तभी वे जनता का विश्वास जीत पाएँगे वरना आने वाले दिनों में देश में लोकतंत्र केवल नाम की चीज रह जाएँगी। नेताओं को अब देश की जनता की चिंता नही है केवल अपनी और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत करने की चिंता है इसलिए जनता को अब नेताओं की बातों में भरोसा नहीं रह गया है।
सरकारी आँकड़ों को उठाकर देखें तो कानपुर लोकसभा क्षेत्र में 1952 से अब तक पाँच बार (1962, 1967, 1977, 1980, 1984) में मतदान का प्रतिशत 50 फीसदी से ऊपर रहा है।
1952 में जब पहली लोकसभा का चुनाव हुआ था तो कानपुर में केवल 34.60 फीसदी लोगों ने वोट डाले थे, लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव के बाद मतदान का प्रतिशत लगातार गिरता ही रहा और कभी भी 50 फीसदी का आँकड़ा पार न कर पाया।
वर्ष 2004 में जहाँ कानपुर की 43.47 फीसदी जनता ने अपने सांसद का चयन किया था वहाँ इस बार 2009 के लोकसभा चुनाव में तो यह आँकड़ा और गिर कर केवल 36.88 फीसदी ही रह गया।
आईआईटी कानपुर के निदेशक संजय गोविंद धांडे से जब यह पूछा गया कि क्या सरकार के मतदाताओं को जागरूक करने और पप्पू न बनने के तमाम सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों का मतदाताओं पर कोई खास असर नहीं पड़ा तो उन्होंने कहा कि सरकार इस तरह के अभियान केवल टीवी और अखबारों में चलाती है।
उन्होंने कहा कि हमारे देश की कितनी जनता टीवी और अखबार देखती है, जो उस पर इस तरह के अभियानों का असर पड़ेगा। वे कहते हैं कि सरकार को चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों की जनता और छोटे-छोटे कस्बों की जनता को मतदान के प्रति जागरूक बनाने पर ज्यादा ध्यान दे। जहाँ तक बड़े शहरों की पढ़ी-लिखी जनता की बात है तो वह हमेशा से ही कम मतदान करती रही है हालाँकि उसे भी जागरूक करना बहुत जरूरी है।