Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

प्यार : भावना एक, रूप अनेक

- राजशेखर व्यास

Advertiesment
हमें फॉलो करें वेलेंटाइन दिवस
प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय!
राजा प्रजा जेहि रुचे, सीस देई लै जाये।

PR


प्यार! यह छोटा-सा शब्द अपने आप में कितना अनूठा और अनुपम है। गन्ने की मिठास, सागर की गहराई, चंद्रमा की शीतलता, सूर्य की तपन, आकाश की पवित्रता, धरा का धैर्य, नदी की चंचलता...मानो सभी इस नन्हे से शब्द प्यार में सिमट गए हों। यह जिंदगी को काव्यात्मक रूप दे देता है, कठोरता को कोमलता में बदल देता है और यह मानवीय भावनाओं को निकृष्ट से उत्कृष्ट बना देता है।

यह मानव-हृदय को सहनशीलता, त्याग, सरलता आदि गुणों से अलंकृत कर देता है। 'प्यार' सच्चे मोती की तरह होता है जिसमें विरले ही पैठ पाते हैं। यह अद्भुत रत्न की तरह है, जिसके स्पर्श से मानव-मन में नैतिकता, पवित्रता और विनम्रता का जन्म होता है। इसका दायरा सीमाओं से परे होता है। उम्र, जाति, अमीरी-गरीबी व सुंदर-असुंदर के बंधन से परे यह केवल आंतरिक सौंदर्य देख पाता है। अगर हमारा नजरिया संकीर्ण न हो तो हमें प्यार के ढेरों रूप देखने को मिलते हैं। देखें कि प्यार के वे कौन से रूप हैं जिनसे हमें जीवन में रूबरू होना पड़ता है।

वात्सल्य : प्यार पंखुड़ी एक गुलाब की सी
बचपन का प्यार, अंत तक का सहारा, सबसे पहला और अद्भुत प्यार होता है 'वात्सल्य'। यह प्यार हमें माता-पिता से ही मिल पाता है। यह प्यार निःस्वार्थ, निष्कपट, निष्पक्ष और मासूम होता है। बच्चा जब गर्भ में रहता है तो सबसे पहले मां का ही प्यार मिलता है। मां की अंगुलियों के स्पर्श से उसे इसका अहसास होता है। वह इस दुनिया में जब पहला कदम रखता है तो डरा सहमा-सा रहता है, शायद इसलिए ही रोता है पर जब वह अपनी मां के आंचल में आता है तब मां के शरीर के गंध, उसकी अंगुलियों के नेह-स्पर्श को पहचान कर अपने-आपको सुरक्षित समझ चुपचाप सो जाता है।

इस समय मन की कोई लालसा नहीं होती है। बचपन में मिला यह प्यार उसे अंत तक सहारा देता है। इसलिए कहा जाता है कि शैशवावस्था में पौष्टिक भोजन के साथ 'उचित' प्यार की भी जरूरत होती है। इस अवस्था में दिया गया पर्याप्त प्यार बच्चे में आत्मविश्वास भरता है। यही प्यार की जड़ उसके जीवन में आने वाले संघर्षों की आंधी में उसे उखड़ने नहीं देती है।

webdunia
ND

स्नेह : सद्गुणों का रिटर्न गिफ्ट
प्यार का दूसरा रूप होता है 'स्नेह'। 'स्नेह' जो हमें अपने से बड़ों, पड़ोसियों और गुरुजनों से मिलता है। स्नेह ऐसा प्यार है जो हमें हमारे सद्गुणों के कारण मिलता है। यह एक तरह का प्रतिदान होता है, अर्थात बदले में मिला प्यार। हम बड़ों का सम्मान करेंगें तो हमें उनसे प्यार मिलेगा, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा रखेंगे तो उनसे हमें स्नेह के साथ-साथ ज्ञान की प्राप्ति होगी। जरूरी नहीं है कि एक बच्चा जो अपने माता-पिता का दुलारा हो, वह सबका प्यारा होगा। वह कितना भी सुंदर और गुणवान क्यों न हो, अगर वह विनम्र न हो तो वह स्नेह की छत्रछाया से दूर होता चला जाता है। उसे तो सबका प्यारा बनने के लिए उस योग्य होना ही होगा। 'स्नेह' आप किसी से जिद से नहीं पा सकते, उसके लिए आपको स्वयं उस रस सागर में गोता लगाना होगा। दुर्योधन अर्जुन से कमतर नहीं था। उसमें वे सभी गुण थे, जो अर्जुन में थे पर अपने अहंकार के कारण वह गुरुजनों व बुजुर्गों के उस स्नेह, शिक्षा व आशीर्वाद से वंचित रह गया, जिसे अर्जुन ने अपनी विनम्रता से सहज ही प्राप्त किया और सर्वश्रेष्ठ बना। हम अपने से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्यार देगें तो हमारे बीच का स्नेह स्रोत कभी सूख नहीं पाएगा।

हमारे घरों की चहारदीवारी में जो वैमनस्य की दरार पड़ रही है, वह नहीं पड़ेगी। प्यार का हलका-सा स्पर्श रोते हुए व्याक्ति के होठों पर मुस्कान दे सकता है, उसके तनाव की बदली को छांट देता है। स्नेह में पगे हुए स्वर किसी को सुख का अहसास दे जाते हैं, उसके मन को निर्मल कर जाते हैं।

इतना पवित्र : यह है खरा सोना...
देह से इतर यहां हम उस पवित्र प्यार की बात कर रहे हैं, जिसे साधारण व्यक्ति नहीं समझ पाता है। हर किसी के बस की बात नहीं है उस महान प्यार को पाना और देना। यह प्यार दो आत्माओं का प्यार है, दैहिक से उठकर अलौकिक प्यार है। इस प्यार में हमें प्रतिदान की आवश्यकता नहीं रहती, यह हमें समर्पण करना सिखाता है, त्याग करना सिखाता है। हमें व्यभिचार से दूर कर संपूर्ण पवित्रता की ओर ले जाता है। हममें नैतिक साहस लाता है।

यह वह प्यार है जो राधा और मीरा ने कृष्ण से किया था। राधा जिसने शरीर, आयु के बंधन से मुक्त होकर कृष्ण को चाहा था। उन्होंने अपना दांपत्य जीवन निभाते हुए कृष्ण को अपने दिल में जगह दी थी। उनकी आत्मा ने कृष्ण की आत्मा को चाहा था। उनका प्यार कृष्ण के कर्तव्य-पथ पर बाधक नहीं बना। राधा के प्यार में अहंकार की झलक नहीं, स्वाभिमान की खुशबू मिलती है। उन्होंने अपने प्यार में दीनता नहीं आने दी।

कृष्ण के गृहस्थ-जीवन में अपना अधिकार मांगने नहीं गईं पर कृष्ण के चरण उनके हृदय में अंत तक अंकित रहे। कृष्ण का थोड़ा-सा प्यार पाकर वह तो चिर-विरहणी बन गईं। महान रूसी उपन्यासकार तुर्गनेव ने भी अपने से कई साल बड़ी शादीशुदा महिला से प्यार किया था। वह महिला अपने पति को तलाक देने को तैयार नहीं हुई तो उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया पर उस महिला को कभी दिल से निकाल न सके। प्यार अपने साथी को कभी भी तकलीफ नहीं पहुंचाता है।

अनबूझ पहेली जैसा प्यार
प्यार का एक और रूप है, जो थोड़ा अजीब, अनबूझ पहेली की तरह है। इसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है। यह पता नहीं किस तरह दो अजनबी को बहुत करीब ला देता है। यह जीवन का रहस्य है, अंधी शक्ति है। इसके समक्ष मानो मनुष्य निस्सहाय हो जाता है। लगता है मानो यह नियति के रूप में आता है और जीवन को काव्यात्मक आलोक दे जाता है। यह वह रूप है जो भावशून्य व्यक्ति में भी भावना की हिलोरें उत्पन्न कर देता है, मन को उद्धिग्न कर देता है।

webdunia
PR


प्यार के अनेक रूप हैं पर यह रूप थोड़ा अजीब और अनबूझ पहेली की तरह है, उसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है। कोशिश जारी है, क्योंकि पता नहीं कैसे दो अजनबी अचानक इतने करीब आ जाते हैं। यह जीवन का रहस्य है, अंधी शक्ति है। इसके सामने आदमी असहाय दिखता है। यह नियति के रूप में आता है और जीवन को काव्यात्मक आलोक दे जाता है।

वो एक लफ्ज की खुशबू ना रख सका महफूज
मैं उसके हाथ में प्यार की सारी किताब क्या देता?

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi