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प्यार में ज्यादती स्वीकारना गलत

लव-मंत्र

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हेलो दोस्तो! किसी के मन को पढ़ना, समझना और फिर उसे समझाना इतना कठिन नहीं लगता है जितना खुद के बारे में पक्की राय बनाना। चार दिन पहले हम जिस बात पर विश्वास करते हैं, उसे सौ फीसदी सही मानते हैं, थोड़े ही दिनों बाद हम पूरी तरह से उसके विपरीत कदम उठाने लगते हैं। यहाँ तक कि पहली सोच के पूरी तरह खिलाफ निर्णय ले लेते हैं। तब अपने आप पर आश्चर्य होता है कि उस दिन क्यों यह फैसला सही लग रहा था लेकिन निर्णय के लिए भी हजार तर्क जमा हो चुके होते हैं।

हालाँकि दिल की गहराई में पुराने फैसले पर भी यकीन बना होता है। दरअसल, ऐसे फैसले बदलने के पीछे समाज के साथ-साथ चलने का दबाव और उकसावा होता है। हमारे संगी-साथी इस बात का यकीन दिलाते हैं कि यही निर्णय उचित है। हमें भी पुराना फैसला ताश के महल की तरह ढहता महसूस होता है।

यह स्थिति खासकर किसी भावनात्मक रिश्ते से निकलने में सबसे ज्यादा नजर आती है। रचना भी कमल के झगड़ालू स्वभाव, चीख-पुकार और हावी होने वाली प्रवृत्ति से त्रस्त है और कई बार उसे छोड़ने का मन बना चुकी है पर ऐन मौके पर उसका मन बहुत सारी वजहों से बदल जाता है। दो या तीन दिन वह नहीं छोड़ने के फैसले से खुश रहती है फिर धीरे-धीरे वह उसे छोड़ने के बारे में सोचने लगती है। यह प्रक्रिया उसे बेहद उदास बनाती जा रही है। उसे तोड़ती जा रही है। उसे जिंदगी बोझिल सी लगने लगी है। जीने का उसका उत्साह पूरी तरह शिथिल पड़ता जा रहा है और वह अपने को नकारा और धरती पर बोझ समझने लगी हैं।

रचनाजी, आप इसलिए इतनी उदास व दीन-हीन बनी हुई हैं कि आप फैसला लेते समय अपने आपको केंद्र में नहीं रखती हैं। आप अपने आप से ज्यादा सामने वाले को प्रमुखता देती हैं। आपके जानने वाले भी दूसरे को तरजीह देकर ही निर्णय लेने को प्रोत्साहित करते हैं और इसे ही सही ठहराते हैं। इसलिए दूसरे पर दया, उसकी खुशी का तर्क आपको अलग होने से रोक तो लेता है पर आपको संतुष्ट नहीं कर पाता है।

दो दिनों तक तो आपको लगता है कि आप कोई देवी समान हैं, कुर्बानी की प्रतिमूर्ति, क्षमा की देवी, प्यार करने वालों की खुशी में ही अपनी खुशी तलाशने वाली, दोस्तों व रिश्तेदारों की नजर में सहनशीलता की मिसाल। ये सारे विशेषण आपको थोड़ी देर के लिए कष्ट से निकाल देते हैं पर जैसे ही आप व्यावहारिक जीवन का सामना करती हैं आपका वह काल्पनिक गुब्बारा फट जाता है और आप अपनी सही स्थिति का नजारा देख पाती हैं।

रचनाजी, जिस आधार पर आप अपने फैसले बदलती हैं वह अपरिपक्व और असामान्य है। ऐसा निर्णय एक नाबालिग बच्चे के साथ तो उचित ठहराया भी जा सकता है पर एक वयस्क के लिए इस प्रकार की दया व एहसास अनुचित है। यह रिश्ता समता पर आधारित नहीं है। इसीलिए आपको सब कुछ फीका-फीका और खोया हुआ-सा लगता है। यूँ भी महिलाओं को अपनी पसंद को तरजीह देने की शिक्षा नहीं मिलती है और साथ ही समाज भी हर समय उसे यह सीख याद दिलाता रहता है।

यही कारण है कि जीना दूभर होने पर भी एक औरत आखिरी क्षण तक रिश्ता निभाने का प्रयास करती है। अपने सुख के बारे में सोचना उसे गुनाह लगता है। ऐसी कुर्बानी का अपना मजा हो सकता है यदि सामने वाला इसकी अहमियत समझे और वह मानसिक रूप से परिपक्व व सामान्य हो। पर ऐसा नहीं होने पर दूसरा साथी हजारों मन भारी बोझ तले खुद को दबा हुआ पाता है।

किसी की जो भी मजबूरी रही हो पर बार-बार बेवजह गुस्सा करना, अहंकार व दबंगता दिखाना, गाली-गलौज करना, बेइंतहा मूडी होना, दूसरे पर हर बात में हावी होने की कोशिश करना, सही नहीं ठहराया जा सकता है। फिर चाहे आप मूड आने पर जितनी भी प्यारी बातें करें, मुहब्बत के फव्वारे चलाएँ, इसका असर लंबा नहीं रह सकता है।

एक सामान्य व्यक्ति जो दिलोजान से ऐसे व्यक्ति को संभालने की कोशिश कर रहा है अंततः टूट जाता है और हार जाता है। कोई भी जज्बा तभी तक फलता-फूलता है जब तक उसका जवाब उसी जज्बे में मिले। रचनाजी, बेहतर यही होगा कि आप कमल से सख्ती से पेश आएँ। एकदम से छोड़ने के बजाय उसे बुरे व्यवहार को बदलने को कहें। न तो आप रोएँ और न ही उसे पुचकारें बल्कि अपनी नाराजगी जताने के लिए थोड़ी दूरी बनाएँ।

यूँ तो वह उसके जीने का, व्यवहार का पैटर्न बन चुका है, जिसे बदलना आसान नहीं है। डरने और अपने ऊपर कोफ्त करने के बजाय कोई काम शुरू कर दें। अभी जवान हैं इसलिए जीवन में आपके लिए सब कुछ संभव है। अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए खुद का रूटीन बनाएँ और उसके अनुसार चलें। अपनी पसंद का खाना बनाकर खाएँ। अगर वह आप पर हाथ उठाता है तो उसका सीधा-सीधा विरोध करें। जैसा आप जीना चाहती हैं वैसे ही जिएँ। ऐसा करने पर या तो वह बेकाबू होकर आपको और भी परेशान करेगा या फिर सुधरने की कोशिश। दोनों ही स्थिति में आपको फैसला लेने में आसानी होगी।

यदि वह सुधरने की कोशिश करता है तो बहुत अच्छी बात है। आप अपने इरादे पर डटी रहें ताकि उसे नई बातों को समझने में मदद मिले और जीवन में दोनों को जीने का मजा आए। अगर वह ज्यादा विचलित होकर आपका जीना हराम कर देता है तो आप टालने वाले फैसले पर जल्दी पहुँच सकती हैं। असामान्य व्यवहार को प्यार के नाम पर सहना नहीं चाहिए। ऐसा करने से उस व्यक्ति को सामान्य होने में मदद नहीं मिलती है।

लव-मंत्र के लिए आप अपनी समस्याएँ भेज सकते हैं। समस्याओं को आधार बनाकर समाधान की चर्चा स्तंभ में रह सकती है लेकिन इस स्तंभ पर किसी तरह का पत्र व्यवहार अथवा ईमेल से उत्तर नहीं दिया जाता है। हमारा ई-मेल आईडी है : [email protected]

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