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प्यार में पजेसिव क्यों होते हैं टीनएजर्स

रंजना किशोर मलिक

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किशोरावस्था का दौर ढेर सारे परिवर्तन अपने आप में लेकर आता है। बचपन की दहलीज को पार कर बड़े होने की तरफ कदम बढ़ाते किशोरों में हारमोन्स के साथ-साथ सामाजिक और खुद के अस्तित्व से जुड़ी भी कई सारी चीजें बदलती हैं। हर पीढ़ी के साथ जीवनशैली और संस्कृतिजन्य परिवर्तन लाजमी हैं और इसके साथ ही इन पर चलने वाली सनातन संस्कृतिपरक बहस का होना भी बेहद सामान्य सी बात है।

इसलिए आज के टीनएजर्स या युवाओं का मर्यादाओं और संस्कार से दूर होना, उनके गर्लफ्रेड-बॉयफ्रेंड वाले रिश्तों को कटघरे में खड़ा करना या वे सामान्य शिष्टाचार से भी दूर हो रहे हैं, इसकी शिकायत का पुलिंदा खोलने की बजाय फिलहाल हम बात करते हैं सिर्फ उनके रिश्तों और उनसे जुड़ी रिएक्शन्स की।

दस बार शीना का नंबर डायल करने और बात न हो पाने के बाद आखिर रोहन ने मैसेज छोड़ा-'आय नो शीना..यू आर नॉट गोइंग टू टेक माय कॉल...। ऑल इज़ ओवर नाओ...। अब तो सब क्लियर है... यू वान्ना ब्रेक दिस रिलेशनशिप। प्रिंक्स (प्रियेश) के साथ खुश रहना...आय कांट लीव विदाउट यू...इसलिए तुमसे बहुत दूर जा रहा हूँ। रोहन..।'

17 साल के रोहन ने इसके बाद पास रखे गिलास में भरा कीटनाशक गले में उड़ेल लिया। हालांकि सही समय पर माता-पिता के आ जाने और चिकित्सा मिल जाने के कारण उसे बचा लिया गया और अब वो एक मनोचिकित्सक के पास काउंसलिंग के लिए भी जा रहा है। स्थिति अब पहले से काफी बेहतर है..लेकिन सवाल है आखिर ऐसा हुआ क्यों..?

चलिए कुछ देर को इसके लिए फ्लैशबैक में चलते हैं। शीना और रोहन एक ही स्कूल और एक ही क्लास के विद्यार्थी हैं। पांचवीं कक्षा से वे साथ ही पढ़ रहे हैं और पिछले साल स्कूल की एक पार्टी के बाद रोहन और शीना बकायदा..घोषित रूप से गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड में बदल चुके हैं। इसके साथ ही बदल गई और भी कई सारी चीजें।

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शुरुआत में सबकुछ बहुत अच्छा और सारे फ्रेंड्स के बीच हवा में उड़ने, वीआयपी टाइप महसूस करने जैसा था लेकिन कुछ समय बीतते ही रोहन को शीना का अपने मित्रों से बात करना, तुरंत कॉल अटैंड न करना, मैसेज के जवाब न दे पाना.. जैसी चीजें तनाव से भरने लगीं। शीना के लाख बताने पर भी कि उस समय वो बिजी थी... रोहन बेहद गुस्से में आ जाता।

उसे लगने लगा था कि शीना का अब उसमें इंट्रेस्ट कम होता जा रहा है और वो उससे दूर हो रही है। उसे लगता था कि शीना उसके ही दोस्त प्रियेश के ज्यादा करीब होने लगी है।

उधर शीना, रोहन की रोक-टोक, ओवर पजेसिवनेस और बेवजह के सवालों से परेशान होने लगी थी फिर भी रिश्ता बरकरार था। जिस दिन रोहन ने शीना को दस मिस कॉल के बाद वह मैसेज किया, उस दिन शीना अपनी फ्रेंड की शादी में व्यस्त थी और मोबाइल फोन साथ ले जाना भूल गई थी। शादी की मस्ती में उसने इस बात को ज्यादा तवज्जो भी नहीं दी।

जब घर आकर उसने मैसेज देखा तो तुरंत कॉल बैक किया तब तक रोहन अस्पताल पहुंच चुका था। इस घटना ने शीना को भी मानसिक रूप से बेहद परेशान कर डाला। हालांकि बाद में सबकुछ सामान्य हो गया और अब रोहन ठीक है।

किशोरावस्था में अक्सर इस तरह की समस्याएं आती हैं। जब रिश्तों को लेकर बच्चे खुद से इतने गंभीर हो जाते हैं कि वे उस रिश्ते को किसी से बांटना नहीं चाहते, उस रिश्ते को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं या उस रिश्ते को अपनी रेप्युटेशन से जुड़ा अहम मुद्दा मान बैठते हैं। ऐसे में सामने वाले का कोई सहज कदम भी उन्हें खुद के खिलाफ लगने लगता है। जलन, प्रतिद्वंद्विता और पजेसिवनेस जैसे मुद्दे फिर सिर उठाने लगते हैं। जैसा टीना के साथ हुआ।

15 वर्षीय टीना बैंक में कार्यरत माता-पिता की इकलौती संतान है। उसके पैरेंट्स की दिनचर्या बेहद व्यस्त है। घर में सेवकों की भीड़ है और टीना की हर मांग मुंह खोलने के पहले पूरी की जाती है। स्कूल में टीना का अपना ग्रुप है और इस ग्रुप में होने की शर्त ही यही है कि फिर आपको सिर्फ टीना के ही साथ रहना होगा आप किसी भी और से दोस्ती नहीं कर सकते।

टीना इन दोस्तों को अपने साथ रखने के लिए महंगे उपहार देने से लेकर बाहर खाना खिलाने और घर तक अपनी गाड़ी में छोड़ने-लेने जाने का काम भी खुशी से करती है लेकिन अगर इस ग्रुप की किसी लड़की या लड़के ने किसी दिन उसके साथ पार्टी में जाने से मना कर दिया या वो किसी और के साथ डिस्को चला गया उस दिन से टीना उससे बात करना ही बंद कर देती है। यही नहीं वो अपनी दी हुई सभी चीजें वापस मांगना शुरू कर देती है और उस बंदे या बंदी को लेकर पूरे स्कूल के सामने मजाक उड़ाने से भी बाज नहीं आती।

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असल में भागदौड़ भरी आज की जिंदगी में छोटे होते परिवारों में जहां आपसी संवाद में कमी आई है वहीं भौतिक साधनों की भरमार के कारण बच्चे ज्यादातर वर्चुअल वर्ल्ड में जीते हैं। इन सबके चलते वे खुद को लेकर एक अलग ही दुनिया बना लेते हैं जहां सारे नियम-कानून उनके बनाए होते हैं। घर में उन्हें अपनी भावनाएं बांटने के लिए कम लोग मिलते हैं और इसके अलावा उन्हें सुविधा और संसाधन देकर कंफर्ट जोन में बैठा दिया जाता है।

ऐसे में घर के बाहर उनके आस-पास जो भी रिश्ते बनते हैं उन पर भी वे एकाधिकार चाहते हैं और इस एकाधिकार से ही सारी समस्याएं पनपती हैं। इसलिए सबसे बड़ी जरूरत है पैरेंट्स तथा घर के अन्य सदस्यों के बच्चों के साथ संवाद की। यदि घर में किशोर हो रहे बच्चों को समझने तथा समय देने वाले लोग हैं तो उनके मन में रिश्तों की गहराई को लेकर समझ भी बनेगी और वे रिश्तों को लेकर खुद को असुरक्षित भी महसूस नहीं करेंगे। वहीं बच्चों के साथ बात करने से आप उनके मन में चल रही उधेड़बुन को भी समझ सकते हैं और आपसी बातचीत से समस्या का हल निकाल सकते हैं।

याद रखिए कि यह समय बच्चों के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण टर्निंग प्वॉइंट है.. इसलिए इस समय उनका साथ देना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। बस रिश्तों की गहराई को उन्हें समझाएं फिर देखें वे किस खुशी से हर रिश्ते को जी पाते हैं।

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