हेलो दोस्तो! आप अपनी मंजिल की ओर पूरे विश्वास से कदम बढ़ाते हैं और आपका अपने आप से ही यह दावा होता है कि आपकी मंजिल आपको साफ-साफ नजर आ रही है। पर थोड़ी दूर चलकर ही आपको एक मोड़ नजर आता है और आपकी रफ्तार धीमी होने के साथ-साथ रुक जाती है। आप असमंजस में पड़ जाते हैं कि आखिर आपको किस ओर कदम बढ़ाना चाहिए। आपके मन में ख्याल आता है कि जिस मोड़ को आप छोड़ रहे हैं कहीं वही सही दिशा तो नहीं।
और यह फैसले की घड़ी सबसे कठिन होती है। साफ नजर आने वाली मंजिल का सफर अंतहीन लगने लगता है और दूसरे मोड़ का पड़ाव साफ नजर नहीं आता है। इस पीड़ा से उबरने के लिए आप किसी शुभचिंतक की राह देखते हैं।
ऐसी ही पीड़ा से जूझ रहे हैं रतन (बदला हुआ नाम)। रतन ने दूसरे मजह ब की एक लड़की से चुपचाप शादी कर ली है। इतने गहरे रिश्ते और दोनों अब अलग-अलग ही रहते हैं। इतने गहरे रिश्ते में बँधने के बाद आयशा (रतन की पत्नी) को जैसी भावना और विश्वास रतन के प्रति दिखाना चाहिए थी, वह नदारद है। वह इस रिश्ते को उजागर करना नहीं चाहती है। इस पोशीदगी के कारण रतन इस समस्या को किसी से बाँट भी नहीं सकता है। रतन को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि उनकी पत्नी अपने एक रिश्ते के भाई को ज्यादा तरजीह देती है। उसकी एक बात भी वह टाल नहीं सकती है।
रतन जी, आप इस बात से दुखी व परेशान हैं कि आपका अपनी पत्नी पर न तो कोई नियंत्रण है और न ही भरोसा। आप उसके लिए सबसे अहम हैं, वह यह अहसास कराना जरूरी नहीं समझती है। आपकी बीमारी से ज्यादा उसे उस भाई की फिक्र रहती है। आपके फोन काटकर वह उस भाई का फोन सुनने लगती है। मिलने और बात करने का समय देकर उसे वह सब याद नहीं रहता है। निश्चित तौर पर ये आसार अच्छे नहीं हैं। अपने मन में इतनी पीड़ा लेकर रिश्ते को परवान चढ़ाना नामुमकिन होगा।
जिस रिश्ते में बुनियादी फैसला दो लोगों का हो वहाँ ढेर सारा प्यार, अटूट विश्वास और एक-दूसरे के प्रति अथाह समर्पण, इज्जत और समझदारी चाहिए। प्यार व विश्वास की ताकत के बिना समाज से टक्कर लेना असंभव काम होगा। ऐसा लगता है आपने इस शादी में थोड़ी जल्दबाजी दिखाई है वरना कोई व्यक्ति अचानक इतना अधिक नहीं बदल जाता है। जब अलग ही रहना था तो शादी की कोई जरूरत नहीं थी। खैर अब क्या कदम उठाया जाए इस पर विचार करने की आवश्यकता है। एक तो यह किया जा सकता है कि आप कुछ दिनों के लिए उसमें रुचि न दिखाएँ और देखें इसकी क्या प्रतिक्रिया होती है। ऐसा करने से आपको भी शांति से सोचने का मौका मिलेगा।
आपका रिश्ता जिस मुकाम पर है वहाँ केवल भावनात्मक नजरिये से काम नहीं चलेगा। आपको तार्किक दृष्टिकोण से भी तमाम पहलुओं का विश्लेषण करना पड़ेगा। आपकी साथी इस रिश्ते को उस गंभीरता से नहीं ले रही है जिस प्रकार आप ले रहे हैं। एक-दूसरे के लिए कितनी तड़प बाकी बची है यह जाँचना भी जरूरी है। कुछ दिनों तक यह दूरी बनाने पर आप लोग अपने-अपने दिलों में झाँककर सच्चाई का पता लगा सकते हैं। यदि वह मस्ती में जीती है और आपकी सुध-बुध नहीं लेती है तो निश्चित ही उससे गंभीरता से बात करनी पड़ेगी। अगर यह शादी कानूनी है तो मामला और भी पेचीदा है। कुछ दिनों तक दूरी बनाने के बाद आप उसके संपर्क करने पर अपनी बात रख सकते हैं। न संपर्क करें फिर भी आप अपनी ओर से बात शुरू कर सकते हैं। आपसी रजामंदी से फैसला लेकर रिश्ते को आगे बढ़ाना या तोड़ना सबसे अच्छा उपाय है। सबसे बुरा और नासमझी भरा कदम होता है प्रेम भरे रिश्ते का दुश्मनी भरा अंत। ऐसी नौबत न आए उसका प्रयास आपको सतर्क रहते हुए करना पड़ेगा। जिसे प्यार किया हो, उसके दुश्मन बन जाएँ, इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है।
कायदे से अभी मन में कड़वाहट न लाएँ। हो सकता है, वह आपको बेहद अपना मानती हो इसलिए अधिक औपचारिक होने के बजाय सामान्य जैसा व्यवहार करती हो। पर, आपकी परवाह तो उसे होनी चाहिए। शांत मन से संवाद स्थापित करना सबसे जरूरी है। कम से कम उसका मन जानने के लिए आपको अतिरिक्त स्नेह, जिम्मेदारी और परिपक्वता दिखानी पड़ेगी। आप एक रणनीति के तहत उसे यह दिलासा दें कि उसकी भलाई और उसकी इच्छा व खुशी के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार हैं। इस प्रकार आश्वासन से, हो सकता है, वह अपने भीतर चल रहे मंथन से अवगत कराए। इस मोड़ पर कदम उठाने के लिए आप लोगों को बेहद ईमानदारी से अपने-अपने दिलों की बात सुननी चाहिए।
यदि वह तमाम उलझनों के बाद भी आपका साथ निभाना चाहती है तो आप लोगों को एक साथ रहना शुरू कर देना चाहिए। और अगले कदम के तौर पर अपने अभिभावकों को सूचित भी कर देना चाहिए। साथ रहने से प्यार बढ़ता है और छोटी-मोटी समस्याएँ सुलझ जाती हैं। रिश्ता तोड़ने के बजाय जोड़ने का प्रयास करें। जब बात न बने तो तोड़ने में उसे भी शामिल करें कि इसे कैसे तोड़ा जाए कि आप दोनों की ज्यादा बदनामी न हो।