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अपनी पसंद को पाने का हक!

अति‍ विश्वास से भी बचना ही बेहतर

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हेलो दोस्तो! दो दोस्त जब बेहद करीब आ जाते हैं तो उन्हें लगता है कि वे एक-दूसरे के बारे में सब कुछ जानते हैं। उनके बीच कोई बात रत्ती मात्र भी छिपी नहीं है। उन्हें महसूस होता है कि दोनों के जीवन में घटने वाली हर गंभीर घटना की जानकारी उन्हें अवश्य होगी। और यदि यह दोस्ती प्यार में बदल गई तो वे आँख मूँदकर एक-दूसरे पर विश्वास करने लगते हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है उनका भरोसा भी पक्का होता जाता है। उन्हें अहसास होता है कि यह निश्चिंतता ही प्यार का दूसरा नाम है।

प्यार की धुन पर कदम मिलाकर चलने वाले इन प्रेमियों के होश व हवास उस समय उड़ जाते हैं जब एक ही पदचाप पूरी तरह सुनाई नहीं देती। बिना किसी सूचना के ही एक की बाँसुरी अलग राग अलापने लगती है। छेड़े गए उस राग को समझना सामने वाले के लिए नामुमकिन सा जान पड़ता है। दिल की हर झंकार को समझने वाला साथी तब मामूली सा संवाद बनाने में भी खुद को असमर्थ पाता है। ऐसे में एक इशारे में पूरी-पूरी पुस्तक का मायने समझने वाले व्यक्ति के लिए इस बेरुखी का मतलब निकालना कठिन हो जाता है। कुछ ही दिनों में रंगारंग कहानियों से लिखा यह रिश्ता कोरे कागज से ज्यादा कुछ नहीं रह जाता है। तब एक साथी को यह समझ नहीं आता कि वह इस वर्तमान को सच माने या बीते कल को।

ऐसे ही एक दर्दनाक मोड़ पर आ खड़े हुए हैं राजेश निगम (बदला हुआ नाम)। राजेश पिछले दो वर्षों से एक लड़की से प्यार करते हैं और दोनों के बीच इस दौरान सुगम संगीत सा संवाद रहा था, पर पिछले कुछ माह से उनकी दोस्त या तो फोन नहीं उठाती है या फिर तुरंत बातचीत खत्म कर देती है। पूछने पर अपने भाई, अंकल का बहाना कर फोन करने से मना करती है। भली-भाँति अपने दोस्त को जानने वाले राजेश को उसकी बातों में सच्चाई नजर नहीं आई। उसे अन्य दोस्तों से पता चला‍ कि वह किसी और लड़के से बात करने में व्यस्त रहती है। उसका समय भी नए बॉयफ्रेंड के साथ ही घूमने-फिरने में बीतता है। राजेश के पूछने पर वह इस बात से इनकार करती है। राजेश को समय देने के नाम पर वह कोई न कोई बहाना कर टाल जाती है।

राजेश जी, आपने लिखा है कि आप अपनी दोस्त की इस हरकत से बहुत परेशान हैं और आपको समझ नहीं आता कि अब आप क्या करें। इस बेरुखी का भी रिश्ता दो लोगों के चाहने से बनता है। दोनों जितना अधिक उसमें रुचि दिखाते हैं, वह उतना ही प्रगाढ़ होता जाता है। कई दफा दोनों ‍की दिलचस्पी एक-दूसरे में इतनी गहरी और समान हो जाती है कि वहाँ हर प्रकार का भेदभाव खत्म हो जाता है। ऐसे में देश, धर्म, जात-पात कुछ मायने नहीं रखता है। पर इसी का दूसरा रूप देखें तो फिर कोई कितना भी सगा हो, एक-दूसरे को पसंत नहीं करे तो वहाँ अपनेपन की मिठास व गहराई चाहकर भी नहीं पनपती है। ऐसे में रिश्ते के दावे खोखले होते हैं जिस पर सामाजिकता की केवल मुहर लगी होती है। पर जहाँ न तो समाज की कोई बेड़ी हो और न ही दिल का नैतिक बंधन वहाँ कोई किसी को सफाई देना भी जरूरी नहीं समझता। ऐसा हो ही सकता है कि किसी के जीवन में कोई अन्य अपने आने की दस्तक दे। पर ऐसा अचानक नहीं होता है। जब दो लोग प्यार करते हैं तो ऐसा भी नहीं होता कि कोई आकर अचानक 'आई लव यू' बोले और सब कुछ भूलकर एकदम से कोई उसमें खो जाए। हर रिश्ता अपना स्थान पाने में समय लेता है।

राजेश जी, आपके दोस्त ने भी रातोरात अपनी पसंद नहीं बदली होगी। आपके साथ-साथ वह दूसरे दोस्त को भी जानती होगी। हर व्यक्ति की अपनी पसंद होती है। उस दृष्टिकोण से उसने उसे अपनी पसंद के ज्यादा करीब पाया होगा। इसलिए वह उधर झुकती चली गई। यदि वह आपके रिश्ते को लेकर गंभीर होती तो वह इसमें सुधार लाने की कोशिश करती। आपसे इस बारे में संवाद बनाती। पर उसने एक विकल्प मिलने की वजह से आपके रिश्ते को मजबूत करने की जहमत नहीं उठाई। हो सकता है आपको भी जितनी रुचि उसमें लेनी चाहिए थी, जितना संवाद बनाना चाहिए था आपने नहीं बनाया होगा।

आप अपनी दोस्त से सीधी बात कर लें। आपसे दोस्ती तोड़ने या आपको अनदेखा करने के पीछे उसकी क्या मंशा है। यदि वह नए रिश्ते को लेकर गंभीर होगी तो आपको साफ-साफ जवाब दे देगी।
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जहाँ पर समाज के पहरे नहीं हैं वहाँ रिश्तों की पहरेदारी खुद करनी पड़ती है। वह भी बेहद सतर्कता व प्यार से। शायद किसी भी रिश्ते में चैन पाने के लिए आप चैन से बैठ नहीं सकते। खुशी, अपनापन और सारा लाड-प्यार पाने के लिए उतनी ही शक्ति लगानी पड़ती है। वह भी बेहद सतर्कता व प्यार से। शायद किसी भी रिश्ते में चैन पाने के ‍लिए आप चैन से बैठ नहीं सकते। खुशी, अपनापन और सारा लाड़-प्यार पाने के लिए उतनी ही शक्ति लगानी पड़ती है।

एक बच्चा भी माँ का ध्यान आकर्षित करने के लिए हजार प्रकार की चुहलबाजियाँ करता है। भक्त अपने भगवान की तारीफ करने के अनेक प्रकार के भजन व गीत रचते हैं। तब कहीं उन्हें भरोसा होता है कि उनका प्रभु उन्हें याद रखेगा और उनसे अपना मुँह नहीं मोड़ेगा। पर दो प्यार करने वाले कुछ ही दिनों में निश्चिंत हो जाते हैं। वे फर्ज से अधिक हक व अधिकार की दुहाई देने लगते हैं।

राजेश जी, आप अपनी दोस्त से सीधी बात कर लें। आपसे दोस्ती तोड़ने या आपको अनदेखा करने के पीछे उसकी क्या मंशा है। यदि वह नए रिश्ते को लेकर गंभीर होगी तो आपको साफ-साफ जवाब दे देगी। यदि उसे अभी उस पर पूरा यकीन नहीं होगा तो वह आपको भी पूरी तरह ना नहीं कहेगी। बेहतर यही होगा कि आप उसकी दुविधा व नीयत भाँपकर जीवन में आगे बढ़ जाएँ। समय कीमती है उसे खुशी पाने के लिए लगाएँ, न कि दुख या कष्ट पाने के लिए। जब एक बार आपको किसी से प्यार हुआ, तो इसका सीधा मतलब है कि आपमें वह क्षमता है कि कोई आपको पसंद करे। आपके लिए कोई बेहतर रिश्ता अवश्य होगा। इस दुखी तजुर्बे का उपयोग आप सकारात्मक रूप से करें और नए रिश्ते में इस बुरे अनुभव की सीख से चार चाँद लगाएँ।

लव-मं‍त्र के लिए पाठक अपनी समस्याएँ भेज सकते हैं। समस्याओं को आधार बनाकर समाधान की चर्चा इस स्तंभ में रह सकती है लेकिन किसी तरह का पत्र-व्यवहार अथवा ईमेल से उत्तर देना संभव नहीं है। हमारा ईमेल आईडी है : [email protected]

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