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आप से तू और तू से तू-तू मैं-मैं क्यों?

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कुलवंत हैप्प

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जिन्दगी में हर किसी ने एक बार तो प्यार किया होगा, कुछेक लोगों का प्यार शिखर पर गया होगा और कुछेक का अधर में लटक गया होगा। प्यार वो समुद्र है, जो गहरा भी है और आकर्षक भी है। लाखों दिल टूटते हुए देखने के बाद भी दिल से मजबूर लोग इस समुद्र की तरफ बढ़ते हैं और कूद जाते हैं।

सरकारी लाभ की तरह इस समुद्र में कूदने वालों में से बहुत कम को इस समुद्र में किनारा मिलता है। कुछ लोग प्यार को रूहानी शक्ति कहते हैं और कुछ प्यार को केवल एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के प्रति आकर्षण कहते हैं। हीर-रांझा का प्यार रूहानी था, क्योंकि वहाँ जिस्मों का मेल नहीं था, वो प्यार पाक था, तभी तो लोग उसको आज तक याद करते हैं।

चलो बताओ उस प्यार को कितने लोग याद करते हैं, जो एक शादी के बंधन में बाँधकर इस दुनिया की भीड़ में खो गया। हिन्दी फिल्में भी प्रेम से शुरू होकर मिलन पर खत्म हो जाती है, मिलन के बाद की जिन्दगी बड़ी अजीबोगरीब होती है, जो शायद पहले जैसी रोमांटिक नहीं होती, तभी तो उस पर कोई फिल्म नहीं बनाता। इसमें कोई शक नहीं कि मिलन के बाद रिश्ते बदलते हैं।

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प्रेमी-प्रेमिका पति-पत्नी में बदलते हैं और शुरू होती है आम जिन्दगी की दास्तां, यहाँ पर दोनों में कड़वाहट भी पनपती है और कुछ प्रतिशत प्यार बचता है। मुझे याद है मस्तानी जब मुझे पहली बार मिली थी, तो उसके चेहरे पर अजब सा नूर था। मानो तो किसी अंधमयी सुरंग में कई हजारों बॉल्ट के बल्ब जलाकर उसको रोशनी से भर दिया हो. वो मेरे पास आई और बोली आज आप क्या कर रहे हैं?

उसके स्वर में आदर सम्मान था और अपनेपन का अहसास था। वो उस समय मेरे कॉलेज में पढ़ती थी। मैंने कहा कुछ नहीं, तो आप आज मेरे साथ चलो। मैंने पूछा कहाँ? वो बोली शहर में ढेरों जगह हैं, कहीं भी। बस फिर क्या था हम दोनों एक पार्क में पहुँचे। दोनों में ढेरों बातें हुईं। कुछ दिनों बाद फिर उसका कॉल आया और बोली मैं आपसे प्यार करती हूँ, क्या आप भी मुझसे प्यार करते हैं। मैंने भी फटाक से हाँ बोल दिया। दिखने में सुंदर थी, और कहते हैं न जिन्दगी में वो जरूरी है कि आपको कौन चाहता है, न कि आप किसे चाहते हैं। दोनों में प्यार शुरू हो गया। हर रोज उसके फोन आने लगे, और मेरे भी जाने लगे।

अब उसमें कुछ चेंज था, बदलाव था, पता है क्या दोस्तो, 'आप' शब्द गायब था, अब उसकी जुबां से तुम निकलता था. वो बोलती तुम कहाँ पर हो, मैं तुम्हारा कब से इंतजार कर रही हूँ। कहते हैं न, जब आदमी प्यार के चक्कर में पड़ता है तो नफा नुकसान कम ही देखता है और ऐसे शब्दों में कहाँ फर्क नजर आता है। एक दो साल बाद मेरी और मस्तानी का प्रेम विवाह हो गया। हम दोनों खुश थे, क्योंकि हम सोचते थे नसीबवाले होते हैं जो प्यार को पा लेते हैं।

  अब बात तू-तू, मैं-मैं तक आगे बढ़ चुकी है। आपकी जिन्दगी में भी ये बदलाव आया हो। आखिर यह बदलाव क्यों होता है। क्यों नहीं रह सकते बिना लड़ाई-झगड़े के और इन मतभेदों के।      
अब तो मस्तानी को कुछ भी काम होता तो सीधे ही कहती रूप तू ऑफिस से आते समय फलाँ सामान लेते आना या तू ऐसा कर लेगा क्या। यानी अब 'तुम' हम दोनों के लिए तू हो गया। धीरे-धीरे बढ़ते इस प्यार में अब औपचारिकता नाम की कोई चीज नहीं रही।

कुछ महीनों के बाद मस्तानी को लगा मुझमें कुछ बदलाव जरूरी हैं, वो मुझे बदलने की कोशिश करने लगी, वो भूल गई कि जिससे उसने प्यार किया था, वो तो ये ही था, जिसको मैं बदलने की कोशिश कर रही हूँ। शायद यहाँ पर मैं भी भूल गया था कि अब वो मेरी प्रेमिका नहीं पत्नी है। उसका हर बात में नुक्स निकलना अब मुझे भी अच्छा नहीं लगता। मैं उसको कुछ कहूँ तो उसको भी अच्छा नहीं लगता, ये लाजिमी है, दोनों में तकरार होना भी शुरू हो गई।

अब बात तू-तू, मैं-मैं तक आगे बढ़ चुकी है। आपकी जिन्दगी में भी ये बदलाव आया हो। आखिर यह बदलाव क्यों होता है। क्यों नहीं रह सकते बिना लड़ाई-झगड़े के और इन मतभेदों के। कहीं ये कम होते हैं तो कहीं ज्यादा लेकिन होते सभी जगह हैं। कैसी लगी ये दास्ताँ जरूर लिखना मेरे दोस्तो। यह कहानी मेरी नहीं, सभी की है।

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