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एक शादीशुदा और एक कुँवारी

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अक्सर ऐसी बेमेल अवैध जोड़‍ियों को देखकर आपको आश्चर्य हो सकता है कि आखिर एक अच्छी-भली लड़की को शादीशुदा मर्द में क्या दिखाई दिया? लेकिन इसमें नया कुछ नहीं है। इसके पीछे दो कारण प्रमुख हैं। एक तो फिल्मों की अभिनेत्रियाँ जो शादीशुदा मर्द का हाथ थाम रही है और दूसरा मानव मनोविज्ञान।

अभिनेत्रियों का इस तरह के मर्दों को अपनाना जायज नहीं तो स्वीकार्य इसलिए हो जाता है कि फिल्मों में काम करने वाली लड़कियों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता फलस्वरूप अच्छे घरों के लड़के उन्हें पत्नी नहीं बना सकते। फिल्म अभिनेत्रियाँ मनोरंजन के लिए उन्हें मंजूर है लेकिन जीवनसाथी के रूप में नहीं। ऐसे में किसी विवाहित मर्द को चुनना ही उनकी मजबूरी है। अक्सर छोटे शहरों की लड़कियाँ उस मजबूरी को नहीं देख पाती है और नकल के फेर में शादीशुदा मर्द से संबंध स्थापित कर यह दर्शाने की कोशिश करती है कि वह समय के साथ चल रही है। अपनी जिंदगी खुद दाँव पर लगाती है।

जहाँ तक मनोविज्ञान का सवाल है, यह सर्वमान्य सत्य है कि एक ही व्यक्ति आपको हमेशा ही अच्छा नहीं लग सकता। यह बेहद स्वाभाविक है कि थोड़े समय में आपको कोई और बेहतर लगने लगे लेकिन भारतीय संस्कार जब आड़े आते हैं, जब एक पति-एक पत्नी व्रत जैसी धारणाएँ याद आती है तब चोरी-छुपे ऐसे रिश्ते पनपते हैं।

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इसके पीछे छुपे कारणों पर नजर डाली जाए तो हमारे यहाँ शादियाँ पारंपरिक ढंग से होती है। इस तरह की शादियों में पति-पत्नी एक-दूसरे से जो पाते हैं, उसमें पाने का सुख तो होता है लेकिन विजय की अनुभूति नहीं। दोनों जानते हैं कि उनके बीच रिश्ते का जो बंधन है, वह जाति, खानदान, रीति रिवाज, हैसियत, कुंडली, खूबसूरती आदि कितने ही आधार पर खड़ा है। यानी पारंपरिक शादी में अक्सर रोमांच का अभाव रहता है। मियाँ-बीवी दोनों जानते हैं कि उन्हें एक-दूसरे से क्या, कितना और क्यों पाना है। उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं रहता कि उन्हें एक-दूसरे से जो मिल रहा है, उसी में संतुष्ट रहें। अधिकांश लोग ऐसी ही बेरंग जिंदगी जी रहे हैं।

ऐसे में अगर कोई तीसरा जिंदगी में आ जाए तो यह तीसरा वह सबकुछ देता है जो पति को अपनी पत्नी से या पत्नी को अपने पति से नहीं मिल रहा है। ऐसी ही स्थिति में बीज पड़ता है उस अवैध प्रेम का - प्रेम जो समाज की निगाह में गुनाह है। लेकिन इस प्रेम का नशा ही कुछ और है क्योंकि इसमें जीत का एहसास है।

इस प्रेम संबंध में हमें तीसरे से जो मिलता है, वह सात फेरे के रिश्ते की वजह से नहीं, किसी समझौते के कारण नहीं,किसी शारीरिक जरूरत के चलते नहीं, वह मिलता है क्योंकि उस तीसरे ने हममें कुछ खास पाया। इस प्रेम में एक उपलब्धि है क्योंकि उस तीसरे ने लाखों लोगों में हमें चुना है। हालाँकि अब जो रिश्ते सामने आ रहे हैं उनमें शारीरिक आकर्षण अधिक और प्यार जैसा मामला कम होता है।

आप कह सकते हैं कि शायद ऐसा वहीं होता है जहाँ पति-पत्नी में प्यार न हो। लेकिन ऐसा नहीं है, ऐसे कपल्स की ज़िंदगी में भी कोई आ सकता है जहाँ दोनों में पूरा प्यार और विश्वास हो। शायद आपको भरोसा न हो लेकिन ऐसा भी हो रहा है।

क्यों होता है ऐसा? क्योंकि संसार में कोई भी परफेक्ट नहीं होता। लव मैरिज में भी दो व्यक्ति एक-दूसरे को इसलिए नहीं अपनाते कि दोनों दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्त्री-पुरुष हैं। दोनों एक-दूसरे को इसलिए चुनते हैं क्योंकि जीवन के किसी मोड़ पर दोनों ने एक-दूसरे को अपने अनुकूल पाया। ऐसा बिल्कुल मुमकिन है कि आज कोई लड़की आपको बहुत अच्छी लगी और आपने उससे शादी कर ली लेकिन साल, दो साल बाद कोई और लड़की मिली जिसमें कुछ और खासियतें हैं जो आपकी खुद की चुनी पत्नी में नहीं, और आपको वह भी अच्छी लगने लगे। यही हाल किसी लड़की का भी हो सकता है जिसने किसी लड़के को खुद चुना हो, कुछ सालों बाद कोई और लड़का उसे अच्छा लगने लगे क्योंकि उसमें कुछ और खूबियाँ हैं।

कहने का मतलब यह कि पारंपरिक शादी हो या लव मैरिज, ज़िंदगी में किसी तीसरे के आने के चाँसेस हर जगह हैं। कहीं बात बढ़ती है, कहीं दबकर रह जाती है। क्योंकि प्रेमी या प्रेमिका के लिए परिवार तोड़ना बहुत कम लोग चाहेंगे। ऐसे में अधिकतर रिश्ते गुपचुप ही चलते हैं। कुछ हिम्मतवाले समाज की परवाह किए बिना आगे भी बढ़ जाते हैं।

सही और गलत आप कुछ भी मानिए। समाज में ऐसे रिश्ते तेजी से फैल रहे हैं जो इन्हें नहीं मानता वह पिछड़ा हुआ है और जो जमाने की परवाह किए बगैर बेखटके रिश्तों में रोमांस की पींगें बढ़ा रहा है वह लाइफ के भी मजे लूट रहा है। दबे-छुपे उनकी चर्चा सब करते हैं लेकिन सामने आकर कुछ कहने का साहस किसी में नहीं क्योंकि आखिरकार वह उन दोनों या कहें तीनों का पर्सनल मामला है।

इन रिश्तों में शादीशुदा मर्द नुकसान में नहीं है लेकिन कुँवारी लड़की की नैया डुबना तय है। उधर अगर शादीशुदा महिला है तो उसकी बदनामी निश्चित है और यहाँ कुँवारा कोरा बच जाएगा। यही हमारा समाज है।

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