नेहा और मितेष...एक खूबसूरत जोड़ा... तीन साल की लंबी कोर्टशिप के बाद यह रिश्ता विवाह के सुखद बंधन में बदला। उनके प्यार और एक-दूसरे के प्रति गजब की समझ रखने के रवैए के कारण दोस्तों और परिवार वालों ने उन्हें 'मेड फॉर ईच अदर' का खिताब भी दे डाला। शादी...उसके बाद केरल के खूबसूरत नजारों के बीच हनीमून और फिर वापस लौटकर जॉब और घर का नियमित रूटीन। एक साल कैसे उड़ गया पता ही नहीं चला...।
पिछले कुछ महीनों से अचानक नेहा को लगने लगा है कि यह पहले वाला मितेष नहीं है... और ठीक ऐसा ही कुछ मितेष के भी दिमाग में चल रहा है। नेहा को पलंग पर फेंका हुआ मितेष का टॉवल और सोफे पर पड़ी हुई शर्ट खिजा डालती है और मितेष को यह समझ नहीं आ रहा कि अचानक उसकी 'क्यूट' सी नेहा इतनी चिड़चिड़ी क्यों होती जा रही है? दोनों यही सोच रहे हैं कि कहीं- 'शादी का निर्णय लेकर उन्होंने गलती तो नहीं की?'
अब मिलिए 30 वर्षीय अरुण और 29 वर्षीय कल्पना से। इनकी भी शादी को लगभग डेढ़ साल होने आ गया है। लेकिन अरुण को लगता है कि आजकल कल्पना न तो ठीक से उसकी बातें सुनती है और न ही उसके जोक्स पर हँसती है। वहीं कल्पना को शिकायत है कि अरुण के जोक्स बहुत सड़े हुए हो गए हैं और घर की तरफ से तो वह बिलकुल ही लापरवाह है।
यही कारण है कि अब अरुण और कल्पना सुबह की शुरुआत से ही खीजने और झगड़ने लगते हैं। कई बार तो यह हुआ है कि पार्टी में जाने को तैयार होने के बाद दोनों में किसी छोटी सी चीज़ को लेकर बहस शुरू हुई और बात इतनी बढ़ गई कि पार्टी में जाना तो कैंसल हुआ ही न तो उस रात घर में खाना पका और अगले तीन दिनों तक दोनों में बोलचाल भी बंद रही। दोनों ही अपनी-अपनी बात को लेकर अड़े हुए थे और दोनों का ही मानना था कि सामने वाला उसे समझ नहीं पा रहा है।
ये दोनों ही उदाहरण सोचने पर मजबूर करते हैं। क्या वाकई शादी के एक साल के भीतर-भीतर रोमांस का जादू हवा होने लगता है? क्या इतनी जल्दी दो लोगों के बीच का गहरा प्यार उड़नछू हो जाता है? या फिर क्या वाकई आटे-दाल के भाव पता लगते ही नए-नए शादीशुदा जोड़ों के बीच का आकर्षण खात्मे की ओर आने लगता है?
कारण जो कुछ भी हो ऐसे लोगों की तादाद बढ़ती चली जा रही है जो शादी के एक साल या उससे भी कम समय में रिश्ता तोड़ने के बारे में सोचने लगते हैं या फिर निराशा के गर्त में 'यही किस्मत में लिखा था' सोचकर जीने लगते हैं। बहुत कम दंपति ऐसे होते हैं जिनका हनीमून और रोमांस जिंदगी भर खत्म नहीं होता।
क्या आप उन दंपतियों में से हैं जो शादी के एक साल बाद ही अपनी गलती पर सिर धुनने लगते हैं? अगर हाँ, तो आपको जरूरत है थोड़ी शांति से सोचने की।
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* सबसे बड़ी बात तो यह कि विवाह का बंधन केवल दो लोगों के बीच नहीं होता। इससे कई लोगों की खुशियाँ और आपके अपनों के खास एहसास जुड़े होते हैं। इसलिए जब एक बार आप इस बंधन में बंधने का निर्णय लेते हैं तो होश सलामत रखिए।
* यदि आप लंबे समय के प्रेम के बाद विवाह कर रहे हैं तो इस बात को दिमाग में रखिए कि जीवन के आने वाले दिनों में आप दोनों की ही जिम्मेदारियाँ बढ़ेंगी जो कि अब तक आपके आस-पास इकट्ठे कई लोग मिलकर भी निभा देते थे।
जाहिर है कि कई नए अनुभव और नई चुनौतियाँ भी सामने आएँगी। उनसे खीजने या उसके लिए किस्मत को कोसने के बजाय उन पर विचार करें और उनका सामना करें।
* यह बात हमेशा याद रखें कि प्रेम कभी भी खत्म होने वाला भाव नहीं है। जब आप किसी के साथ जिंदगी बिताने का निर्णय लेते हैं तो यह पति-पत्नी दोनों का ही दायित्व बन जाता है कि प्रेम के उस भाव को जिंदगी में कभी भी सूखने न दें।
छोटे-छोटे सरप्राइजेस, बोरिंग रुटीन के बीच एक रोमांटिक हॉलीडे या फिर डिनर या यूँ ही बैठकर सुनहरी यादों को ताजा करें। जीवन में छोटे-छोटे लम्हे ही असली मिठास भरने का काम करते हैं।
* सबसे जरूरी बात यह है कि एक-दूसरे की कमियों को कभी भी रिश्तों पर भारी न पड़ने दें। कमियाँ हर इंसान में होती हैं लेकिन जरूरी यह है कि उन्हें किस प्रकार से देखा जाता है। अगर आपके जीवनसाथी में कोई ऐसी कमी या खराब आदत है जो उसके लिए नुकसानदायक है, तो उसे धैर्य के साथ अपने प्रेम की सहायता से दूर करने की कोशिश करें।
* पति-पत्नी दोनों ही यदि तुलना करने या फिर एक-दूसरे पर छींटाकशी करने से बचें तो बेहतर है। छोटे-छोटे विवादों को हँसकर सुलझाने की कोशिश करें। 'तुम तो शादी के पहले ऐसे नहीं थे' या 'शादी के पहले तो तुम ऐसा नहीं करती थीं' जैसे वाक्यों से बचिए। इनसे ही असंतुष्टि की शुरुआत होती है।
अब आप दो अलग-अलग लोग नहीं एक यूनिट हैं...इसलिए खुद को उसी रूप में देखिए और यदि कुछ सामान्य बातों में सामंजस्य बैठाने पड़ें तो उससे हिचकिचाइए मत।
* केवल शिकायतों का पुलिंदा लेकर बैठने की बजाय हर २-१ माह में समय निकालकर एक-दूसरे की आवश्यकताओं तथा जिम्मेदारियों के बारे में बात करें। कोशिश करें कि पति-पत्नी किसी पर भी एकतरफा जिम्मेदारियों का बोझ न आए।
* जीवन में बच्चों के आने से भी काफी फर्क पड़ता है। ऐसे में भी दोनों मिलकर इस जिम्मेदारी को उठाएँ।
* चाहें शादी की तीसरी वर्षगाँठ हो या फिर पच्चीसवीं, मन में उत्साह और उमंग बनाए रखें। एक-दूसरे की पसंद को और एक-दूसरे के कामों को सम्मान दें। जिंदगी को भरपूर जिएँ।