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प्यार तो बस हो जाता है

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- अशोक

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एक प्यार करने वाले से पूछा गया कि प्यार क्या होता है? कैसा लगता है? तो उसका जवाब था कि प्यार गेहूँ की तरह बंद है, अगर पीस दें तो उजला हो जाएगा, पानी के साथ गूँथ लो तो लचीला हो जाएगा... बस यह लचीलापन ही प्यार है, लचीलापन पूरी तरह समर्पण से आता है, जहाँ न कोई सीमा है न शर्त। प्यार एक एहसास है, भावना है। प्रेम परंपराएँ तोड़ता है। प्यार त्याग व समरसता का नाम है।

प्रेम की अभिव्यक्ति सबसे पहले आंखों से होती है और फिर होंठ हाले दिल बयाँ करते हैं। और सबसे मज़ेदार बात यह होती है कि आपको प्यार कब, कैसे और कहाँ हो जाएगा आप खुद भी नहीं जान पाते। वो पहली नजर में भी हो सकता है और हो सकता है कि कई मुलाकातें भी आपके दिल में किसी के प्रति प्यार न जगा सकें।

प्रेम तीन स्तरों में प्रेमी के जीवन में आता है। चाहत, वासना और आसक्ति के रूप में। इन तीनों को पा लेना प्रेम को पूरी तरह से पा लेना है। इसके अलावा प्रेम से जुड़ी कुछ और बातें भी हैं -

प्रेम का दार्शनिक पक्ष-
प्रेम पनपता है तो अहंकार टूटता है। अहंकार टूटने से सत्य का जन्म होता है। यह स्थिति तो बहुत ऊपर की है, यदि हम प्रेम में श्रद्धा मिला लें तो प्रेम भक्ति बन जाता है, जो लोक-परलोक दोनों के लिए ही कल्याणकारी है। इसलिए गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है, क्योंकि हमारे पास भक्ति का कवच है। जहाँ तक मीरा, सूफी संतों की बात है, उनका प्रेम अमृत है।

साथ ही अन्य तमाम रिश्तों की तरह ही प्रेम का भी वास्तविक पहलू ये है कि इसमें भी सामंजस्य बेहद जरूरी है। आप यदि बेतरतीबी से हारमोनियम के स्वर दबाएं तो कर्कश शोर ही सुनाई देगा, वहीं यदि क्रमबद्ध दबाएं तो मधुर संगीत गूंजेगा। यही समरसता प्यार है, जिसके लिए सामंजस्य बेहद ज़रूरी है।

प्रेम का पौराणिक पक्ष-
प्रेम के पौराणिक पक्ष को लेकर पहला सवाल यही दिमाग में आता है कि प्रेम किस धरातल पर उपजा-वासना या फिर चाहत....? माना प्रेम में काम का महत्वपूर्ण स्थान है, लेकिन महज वासना के दम पर उपजे प्रेम का अंत तलाक ही होता है। जबकि चाहत के रंगों में रंगा प्यार जिंदगीभर बहार बन दिलों में खिलता है, जिसकी महक उम्रभर आपके साथ होती है।

प्रेम का वर्जित क्षेत्र-
सामान्यतः समाज में विवाह के बाद प्रेम संबंध की अनुमति है। दूध के रिश्ते का निर्वाह तो सभी करते हैं, इसके अलावा निकट के सभी रक्त संबंध भी वर्जित क्षेत्र माने जाते हैं, जैसे- चचेरे, ममेरे, मौसेरे, फुफेरे भाई-बहन या मित्र की बहन या पत्नी आदि। किसी बुजुर्ग का किसी किशोरी से प्रेम संबंध भी व्याभिचार की श्रेणी में आता है। ऐसा इसलिए भी है कि एक सामाजिक प्राणी होने के नाते नियमों की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य भी है।

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