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प्यार व सम्मान का संतुलन

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हेलो दोस्तो! कई बार जीवन में सभी बातें समान रूप से अहमियत रखती हों तो यह समझ नहीं आता कि जरूरत पड़ने पर किस बात को तरजीह दें। बेहद अपनों के बीच किस प्रकार फैसला लें कि कोई अन्य आहत न हो। कॅरिअर, सेहत और खुद से जुड़े लोगों की अपेक्षाओं के बीच कैसे तालमेल करें। ऐसा क्या तरीका हो कि किसी बेहद अपने के दिल को कभी कोई ठेस न पहुँचे और दूसरे निजी रिश्ते भी निभ जाएँ

इसी प्रकार की सोच में डूबे रहते हैं ओम प्रकाश (बदला हुआ नाम)। ओम प्रकाश ने बहुत गहरे एवं लंबे प्रेम के बाद दिशा से शादी की। घरवालों को भी उन्होंने मना लिया पर अब जीवन उतना आसान व सहज नहीं रह गया है जितना पहले था। उन्हें लगता है पहले सभी खुश थे पर अब सबको लगता है उनकी अनदेखी हो रही है। माँ-बाप के अकेले बेटे होने के कारण वे उनसे बेहद जुड़े हुए हैं इसलिए माता-पिता को लगता है कि सभी हमेशा साथ-साथ बैठें-गप्प करें।

उधर दिशा इस बात से परेशान है कि पहले काम से निपटकर जिस प्रकार का निजी समय वे बिताते थे, तमाम तरह की बातें करते थे वह अब नहीं होता है, इसलिए जीवन में वह खुशी महसूस नहीं होती है। ओम प्रकाश को यह समझ में नहीं आता कि वह ऐसा क्या करें कि उनकी जिंदगी में सब कुछ बिल्कुल आदर्श रूप से चलने लगे।

ओम प्रकाश जी आप इस बात से हैरान परेशान हैं कि शादी के बाद खुशी बढ़ने के बजाय घट क्यों गई। जब तक आपकी शादी नहीं हुई थी आप यही सोचते थे कि जब सब साथ रहेंगे तो कितना मजा आएगा। मुलाकात के बाद बिछुड़ने की कोई कमी नहीं खलेगी। हर पल खुशियों से भरा होगा पर ऐसा नहीं हुआ।

जिन बच्चों से माँ-बाप बहुत अपेक्षा व अधिकार रखते हैं वहाँ इस प्रकार की समस्या ज्यादा आती है। शादी से पहले वे इसलिए खुश थे कि जब आप उन्हें समय देते थे वह समय केवल उन्हीं का होता था। जो समय आप दिशा के साथ गुजारते थे उसे आपके माता-पिता घर से बाहर के समय में गिनते थे। आप बाहर किस तरह से अपना समय बिता रहे हैं उस पर वे विचार नहीं करते थे।
आपने अपनी पढ़ाई, कॅरिअर और उनके प्रति हमेशा एक जिम्मेदाराना व्यवहार रखा है इसलिए वे आपके बाहर समय बिताने को भी सही ठहराते थे इसलिए जितना भी समय देते थे उसी में संतुष्ट थे। पर, अब जब जल्दी घर आते हैं और दिशा के साथ समय बिताना चाहते हैं तो उन्हें लगता है कि उनके बेटे को उनकी परवाह नहीं रही। हम तो बस हालचाल पूछ लेने भर तक ही सीमित हो गए हैं।

यदि अपने माता-पिता को खुश रखने के लिए आप दिशा से दूरी बनाए रखेंगे तो न आप खुश रहेंगे और न ही आपके माँ-बाप। बेहतर यही है कि आप जैसे जीना चाहते हैं वैसा ही जिएँ।
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ओम प्रकाश जी जब सामान्य रूप से शादी होती है तब भी ध्यान बँटने के कारण ऐसी समस्या आती है। पर उन शादियों में पति-पत्नी के बीच ढेर सारा संवाद बनने, दोस्ती होने में थोड़ा समय लगता है। इस अवधि में माँ-बाप सभी धीरे-धीरे इस बदलाव को समझ लेते हैं, सँभल जाते हैं। पर जब प्रेम, दोस्ती व गहरे प्रेम के बाद शादी हो तो घर वाले उस प्यार को इतनी जल्दी स्वीकार नहीं कर पाते हैं। उन्हें लगता है अचानक यह कौन है जिस पर उनका बेटा जान छिड़कता है। आखिर दोनों के बीच ऐसा क्या मंथन चलता रहता है जो इनकी बातें खत्म ही नहीं होतीं।

ओम प्रकाश जी यदि अपने माता-पिता को खुश रखने के लिए आप दिशा से दूरी बनाए रखेंगे तो न आप खुश रहेंगे और न ही आपके माँ-बाप। बेहतर यही है कि आप जैसे जीना चाहते हैं वैसा ही जिएँ। कुछ समय बाद इसी की सबको आदत पड़ जाएगी। माँ-बाप भी इस नए बदलाव को जीवन का हिस्सा मान लेंगे। जो फैसला तर्कसंगत होता है उससे अधिक दिनों तक किसी को तकलीफ नहीं होती है। हाँ, अपने माँ-बाप को जितना सम्मान एवं अधिकार देना चाहिए दें। पहले की तरह ही बाहर भी समय बिताएँ पर माँ-बाप को बताकर।

घर की जिम्मेदारी में माता-पिता को शामिल करें ताकि वे व्यस्त रहें और अपना अधिकार समझें। दूसरा पक्ष यह है कि आप लोग अधिक फुर्सत निकाल पाएँगे। अपने अन्य दोस्तों को भी घर पर बुलाएँ ताकि माँ-बाप आपकी अलग दुनिया की जरूरत को समझ सकें। कई बार माँ-बाप बच्चों को बड़ा मानने को तैयार नहीं होते हैं। वे नहीं समझ पाते हैं कि उनका एक अलग संसार बन गया है, जो उसके लिए उतना ही जरूरी है। आप जैसा चाहते हैं वैसा ही जीते रहें तो, धीरे-धीरे सबको उसी में राहत महसूस होने लगेगी।

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