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हैलवेशियस के नाम बेन्जेमिन फ्रैंकलिन का पत्र

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हमें फॉलो करें सुकरात हैलवेशियस
प्रिये,
अपने प्यारे पति के सम्मान में जीवनभर अकेले रहने का अपना जो फैसला तुमने पिछली रात अत्यंत दृढ़ वाणी में सुनाया, उसे सुनकर मैं अपने घर जाकर बिस्तर पर गिर पड़ा। मैंने अपने को मरा हुआ समझा और स्वयं को एलीसियन फील्ड्स में पाया।

वहाँ मुझसे पूछा गया, 'क्या तुम्हें किन्ही विशेष व्यक्तियों से मिलना है? 'मुझे दार्शनिकों के पास ले चलो।' 'इस बाग में ही दो रहते हैं। दोनों बहुत अच्छे पड़ोसी और मित्र हैं।' 'कौन हैं वे?' 'सुकरात और हैलवेशियस।'

'मैं दोनों की ही बेहद इज्जत करता हूँ, पर पहले मैं हैलवेशियस से मिलूँगा, क्योंकि फ्रांसीसी भाषा तो मुझे थोड़ी सी आती भी है, पर ग्रीक का तो मैं एक शब्द भी नहीं जानता।

हैलवेशियस ने सम्मानपूर्वक मुझसे बातें की, क्योंकि उन्हीं के कहे अनुसार मेरे यश के कारण कुछ समय से वे मुझे जानते थे। उन्होंने, युद्ध के बारे में और फ्रांस में धर्म, स्वतंत्रता एवं सरकार के बारे में मुझसे हजारों बातें पूछीं।'

'आप अपनी मित्र श्रीमती हैलवेशियस के बारे में कुछ भी नहीं पूछ रहे। वह अब भी आपको अत्यधिक प्यार करती है। अभी दो घंटे पहले ही तो मैं उनके घर पर था।'

'आह! तुम मुझे मेरे उस सौभाग्य की याद दिला रहे हो! पर अब मुझे यहीं प्रसन्न रहना चाहिए। कितने ही वर्षों तक मैंने उसके सिवाय और किसी के बारे में कुछ भी नहीं सोचा। आखिर मुझे साँत्वना मिल गई है।

मैंने एक और स्त्री से विवाह कर लिया है। वह लगभग उसी जैसी है। यह सच है कि वह उस जितनी खूबसूरत तो नहीं है, पर उसमें उतनी ही समझ और कल्पनाशक्ति है और वह मुझे असीम प्रेम करती है।

उसका निरंतर यही प्रयास रहता है कि मैं खुश रहूँ। इस समय भी वह सर्वोत्तम अमृत व भोजन की खोज में गई है, जिससे संध्या समय मुझे तृप्त कर सके। तुम ठहरो और उससे मिलो।'

'मैंने उनसे कहा, 'मैं देखता हूँ कि आपकी पुरानी साथिन आप से अधिक वफादार निकली, क्योंकि उसके सामने कितने ही अच्छे रिश्ते आए पर उसने सबको इनकार कर दिया।

मैं आपके सामने स्वीकार करता हूँ कि स्वयं मैंने उसे अत्यधिक प्यार किया, पर उसने मुझसे बहुत ही कठोर बर्ताव किया और आपके प्यार की खातिर मुझको भी एकदम इनकार कर दिया।'

मैं तुम्हारे दुर्भाग्य पर तुमसे सहानुभूति प्रकट करता हूँ, क्योंकि असल में वह बहुत ही अच्छी औरत है और अत्यंत अच्छे स्वभाव की है, लेकिन ऐबे-द-ला रौचे और ऐबे मारलट अब भी उसके घर आते हैं या नहीं? 'जी हाँ, बराबर आते हैं, क्योंकि उसने आपके एक भी मित्र को विमुख नहीं होने दिया है।'

'अगर तुम कहीं कॉफी और क्रीम देकर ऐबे मारलट से सिफारिश कराते तो शायद तुम सफल होते, क्योंकि वह स्कॉट्स अथवा सन्त टॉम्स जैसा ही तार्किक है और अपने तर्कों को ऐसे क्रम से रखता है कि वे अकाट्य बन जाते हैं अथवा कहीं तुम किसी पुरानी साहित्यक कृति की बढ़िया जिल्द देकर ऐबे-द-ला रौचे से अपने विरुद्ध कुछ कहलावा देते तो और भी अच्छा होता, क्योंकि मैंने खूब देखा था कि वह जिस बात की सलाह देता था, वह निश्चय ही उससे उल्टा करती थी!'

तभी नई श्रीमती हैलवेशियस अमृत लेकर अंदर आर्ईं और मैंने उन्हें फौरन पहचान लिया, क्योंकि वह मेरी अमेरिकन मित्र श्रीमती फ्रैंकलिन थीं। मैंने उसे फिर प्राप्त करना चाहा पर उसने मुझे डाँट दिया। 'मैं पचास वर्ष चार महीनों तक तुम्हारी पत्नी रही हूँ। लगभग आधी शताब्दी! बस उतने से संतोष करो!'

अपनी पुरानी साथिन के इस इनकार से निराश होकर मैंने तत्काल उस एहसास फरामोश अँधेरी जगह को त्याग देने का निश्चय किया और इस अच्छी दुनिया में लौट आया, जिससे तुम्हें और सूर्य को देख सकूँ.... लो यह मैं हूँ। आओ, हम अपना बदला ले ले...

फ्रैंकलिन
(पैसी) जनवरी, 1780

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