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दो काग़ज और कुछ लफ्ज

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आज मैं वो करने जा रहा हूँ जो मेरे लिए सबसे मुश्किल था। वो है अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालना। आज मैं अपने हर अहसास को चंद लफ्जो के जरिये तुम तक पहुँचाना चाहता हूँ।

मुझे आज भी याद है, वो पहला दिन जब तुम मेरे पास आई थी। हाथों में खनकती चूड़ियाँ, माथे पर बड़ी-सी बिंदी, कानों में इठलाती झुमकियाँ और होठों पर आया हुआ हल्का-सा तबस्सुम, जैसे मेरे आस-पास का हर कण इनके मिश्रित प्रभाव से खिल उठा था।

मैं नहीं जानता था वो एक पल मेरे मानसपटल पर इतनी गहरी छाप छोड़ जाएगा। वो एक पल मेरे जीवन के हरेक पल से जुड़ जाएगा, वो एक पल काफिला बनकर मेरे वजूद से गुजर जाएगा और मैं सिर्फ मैं नहीं रह जाऊंगा, तुम्हारा अस्तित्व मुझसे, मेरे जीवन से, मेरे हर पल से, मेरे दिन से, मेरी रातों से, मेरे होने से, मेरे न होने से, हर एक वस्तु से जो मुझसे जुड़ी है, इस तरह से जुड़ जाएगा कि मुझे उसमें खुद को ढूंढने में उम्र निकल जाएगी।

मैं आज भी तुम्हारी एक झलक को अपनी आँखों में बसाकर पूरा दिन गुजार लेता हूं, अपनी रातों को समझाता रहता हूँ और सुबह फिर तुम्हारे दीदार का इंतजार करता रहता हूं। यदि इस तरह उम्र गुजर जाए तब भी रंज न होगा।

इतने पर भी कभी तुम्हें स्पर्श करने को मन लालायित नहीं हुआ। लगता है तुम्हें छू लूंगा तो सपना टूट जाएगा। तुम्हारे देह की सुगंध ही मेरे चारों ओर इस तरह से बिखरी रहती है कि लगता है तुम यहीं कहीं हो मेरे बहुत करीब।

मैं नहीं जानता तुम मुझे कितना जान पाई, तुम मेरे बारे में क्या सोचती हो। मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता कुछ नहीं मांगता। प्रेम कुछ पाने का नाम नहीं। मेरे लिए प्रेम का अर्थ समर्पण। आज मैं तुमसे बिना कुछ मांगे अपना सब कुछ समर्पित करता हूँ। क्योंकि मेरे पास मेरा कुछ बचा ही नहीं। उस पर सिर्फ तुम्हारा अस्तित्व है। तुम को तुम्हारा ही सब कुछ दे रहा हूँ। जीवन में जितने पल बचे है सिर्फ तुम्हे महसूस करता रहूंगा। शायद प्रेम इसे ही कहते हैं।

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