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फ्रायड का पत्र मार्था के नाम

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'व्यक्ति की सारी क्रियाएँ उसकी सेक्स भावना से परिचालित होती हैं, का सिद्धांत स्थापित करने वाला मनोवैज्ञानिक...

वियना
15 जून, 1882
मेरी प्यारी मधुर रानी,
अभी तक मैं नहीं जानता था कि इन पंक्तियों को अपने सपनों की रानी तक किस प्रकार पहुँचा पाऊँगा। सोचता हूँ, अपनी बहनों से कहूँगा कि ऐली की मार्फत हम दोनों की मुलाकात इतवार के दिन पक्की तय करा दें और तभी मैं यह ढीठ पत्र तुम्हें चुपके से पकड़ा दूँगा, लेकिन फिर भी मैं लिखना नहीं टाल सकता, क्योंकि जिन कुछ मिनटों के लिए हम साथ होंगे, उनमें तुमसे सब कुछ कहने का न अवसर मिलेगा और न ही शायद मुझमें आवश्यक साहस पैदा हो सके।

तुम हैम्बर्ग जा रही हो उसके बारे में मामूली चालाकी और तरकीब से हमें काम लेना है न? प्रिये मार्था! तुमने मेरी जिंदगी को कितना बदल दिया है। आज जब मैं तुम्हारे घर था, तुम्हारे पास कितना अद्भुत लग रहा था, लेकिन ऐली ने जो कुछ मिनटों के लिए हमें अकेला छोड़ा, उसका अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करना मुझे रुचिकर न लगा। यह मुझे उस आतिथ्य का, जो इतने प्रेमपूर्वक मुझे अर्पित किया गया था, अपमान करने जैसा प्रतीत हुआ।

मैं तुम्हारे पास होते हुए कोई नीच काम कर ही कैसे सकता था? मैंने चाहा कि उस संध्या और सैर का कभी अंत न हो। कैसे लिखूँ कि कौन सी चीज मुझे ज्यादा आंदोलित कर रही थी? उस समय मैं विश्वास नहीं कर सका कि मुझे तुम्हारी प्रिय आकृति के दर्शनों से महीनों के लिए दूर होना पड़ेगा। मुझे इस बात का भी विश्वास नहीं होता कि जब नए प्रभाव मार्था पर पड़ते हैं तो इसमें मुझे कोई खतरा नहीं है। इतनी उम्मीद, संदेह, खुशी और यातना दो सप्ताहों की इस संकुचित अवधि में भर उठी है।

अविश्वास की भावना मुझमें अब जरा भी नहीं है। यदि थोड़ा भी संदेह मुझमें होता तो इन दिनों के बीच अपनी भावनाओं को मैं तुम पर कभी भी जाहिर न करता। मार्था, वह पत्र, जिसका तुमने वादा किया था मुझे मिलना ही चाहिए! मिलेगा न?

तुम जा रही हो और तुम्हें मेरा चिट्ठियाँ लिखना सहन करना ही होगा। हम ऐसा इंतजाम कैसे करें जिससे कोई यह बात नहीं जाने। पहले तो तुम्हारी खातिर और दूसरे क्योंकि मैं एक गरीब आदमी हूँ, इस मूर्खतापूर्ण विचारशून्य पर सभी मुझे शर्मिन्दा करेंगे। सिर्फ मार्था ऐसा नहीं करेगी मुझे आशा है। और मैं जानता हूँ इसके सिवाय मैं और कुछ कर ही नहीं सकता। मैंने मार्था का जादू अनुभव कर लिया है। एक तरकीब मुझे सूझी है।

तुम्हारे चाचा के घर में एक पुरुष का लेख शायद सबकी उत्सुकता का कारण बने, इसलिए क्यों न मार्था अपने कोमल कर से कुछ लिफाफों पर पते लिखकर मुझे दे दो और मैं उनके कीमती शून्य को अपनी यातनाओं से भरकर तुम्हें भेज दूँ। मार्था के जवाबों के बिना मेरा काम नहीं चल सकता। कल जो बात हमें अजीब लगी थी, आज वही अनिवार्य बन गई है और न मिलने पर पीड़ा देती है। अभी तक मुझे अपने पते का भी तो ठीक निश्चय नहीं।

वैसा नहीं हो सकेगा। जो मुझे अभी कहना है वह मैं मार्था से कह नहीं सकूँगा। मुझमें आत्मविश्वास की कमी है जो मुझसे वह बात पूरी कहला सके, जिसको तुझ किशोरी की नजरें और भाव-भंगिमाएँ मुझे कहने से रोकती भी हैं और उसकी इजाजत भी देती हैं। आखिरी बार जब हम एक-दूसरे से मिलेंगे तब मैं अपनी प्यारी को, अपनी आराध्या को दू कहकर संबोधित करना चाहूँगा, जिसे शायद बहुत समय तक हमें गुप्त रखना पड़ेगा।

यह सब लिखने में मुझे कितना प्रयास करना पड़ा है। अगर मार्था मुझसे एकमत नहीं है तो अपने संयम को तोड़कर जो पंक्तियाँ मैंने लिखी हैं, उनको पढ़कर या तो वह हँस देगी या मुँह सिकोड़ लेगी और मुझे एक लंबा उत्कण्ठापूर्ण दिन बिताने के बाद ही वह अवसर मिल पाएगा, जब कि मैं उसकी आँखों में झाँककर अपने संशय से निवृत्ति पा सकूँ।

लेकिन मैंने साहस किया है और मैं किसी अजनबी को नहीं, बल्कि उस लड़की को लिख रहा हूँ, जो मेरी सबसे प्रियतमा मित्र है। माना कि बहुत थोड़े दिनों से ही पर विचारों की असंख्य उलझनों के बाद।

मैं अपनी मित्र से इस पत्र पर पूरा विचार करने की प्रार्थना करता हूँ।

डॉ. सिंग्मंड फ्रायड
* फ्रायड और मार्था का विवाह धन की अत्यंत कमी के कारण बड़ी कठिनाई के साथ हो पाया। मित्रों से प्रार्थना की गई कि वे अपने उपहार वस्तुओं के रूप में न देकर नकदी के रूप में दें।

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