भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा को सत्ता में बरकरार रखने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में प्रदेश पर पूरा फोकस कर दिया है। आज से अगले एक हफ्ते में पार्टी के तीन शीर्ष नेता मध्यप्रदेश में रहेंगे और पार्टी के के कार्यक्रमों में शामिल होंगे। आज केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह प्रदेश के बालाघाट जिले मे वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के कार्यक्रम में शामिल होंगे। वहीं 27 अप्रैल को महाकौशल के अंतर्गत आने वाले शहडोल जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के समापन कार्यक्रम में शामिल होकर जनसभा को संबोधित करेंगे।
प्रधानमंत्री शहडोल के साथ भोपाल में भी पार्टी के कार्यक्रम में शामिल होने के साथ दो वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को हरी झंडी दिखाएंगे। इसके साथ 26 जून को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 26 जून को भोपाल पहुंचेंगे, जहां वह पार्टी के बूथ लेवल कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होंगे।
आदिवासी वोटर्स पर भाजपा का पूरा फोकस- मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के जरिए आदिवासी क्षेत्रों पर अपना पूरा फोकस कर रही है। भाजपा यात्रा के जरिए आदिवासी क्षेत्रों में घर-घर तक पहुंचकर केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की शिवराज सरकार की ओर से आदिवासी समाज के हितों के लिए किए गए कामों को बताने की कोशिश में है। मोदी सरकार के 9 साल के कार्यकाल में गरीब कल्याण की योजनाओं के बुकलेट घर-घर तक पहुंचा रही है। यह सभी यात्राएं 27 जून को शहडोल पहुंचेगी जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीरांगना रानी दुर्गावती बलिदान दिवस कार्यक्रम और वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा के समापन कार्यक्रम में भी होंगे शामिल।
प्रदेश के 5 अंचलों से गुजरेगी यात्रा-रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस के अवसर पर भाजपा की ओर से आदिवासी क्षेत्रों में निकाली जा रही वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा की शुरुआत आज केंद्रीय गृहमंत्री बालाघाट से करेंगे। प्रदेश के 5 अंचलों से प्रारंभ हो रही वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा बालाघाट से शहडोल, छिंदवाड़ा से शहडोल, सिंगरामपुर से शहडोल, कलिंजर फोर्ट (उप्र) से शहडोल और धौहनी ( सीधी से शहडोल) तक निकाली जाएगी। आदिवासी बाहुल्य गांवों से होकर गुजरने वाली वीरांगना रानी दुर्गावती गौरव यात्रा का शुभारंभ बालाघाट में गृह मंत्री अमित शाह, छिंदवाड़ा में सांसद दुर्गादास उईके, सिंगरामपुर में नबतरी विजय शाह, रानी दुर्गवाती के जन्मस्थान कालिंजर में संपतिया उईके और धोहनी सीधी में सांसद हिमाद्रि सिंह करेगी।
विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स गेमचेंजर?-मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के आदिवासी वोटरों पर फोकस करने का बड़ा कारण आदिवासी वोटर्स का विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर साबित होना है। 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्यप्रदेश की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी, अनुसूचित जातियां (एससी) क़रीब 15.6 प्रतिशत हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।
आदिवासी वोटर्स जिसके साथ उसकी बनी सरकार-अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी।
इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी। ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका को भाजपा को पंद्रह साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा।