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मंदसौर जिले में 2 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर, इस बार आसान नहीं है भाजपा की राह

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Mandsaur Assembly Election: किसी समय दशपुर के नाम से पहचाने जाने वाले मंदसौर में ‍भी चुनावी रणभेरी बज चुकी है। इस जिले में 4 विधानसभा सीटें हैं और वर्तमान में चारों पर ही भाजपा का कब्जा है। इनमें दो सीटों पर तो शिवराज सरकार के मंत्री मैदान में हैं। हालांकि चुनावी जानकारों को इस बार संशय है कि भाजपा एक बार फिर सभी सीटें जीतने में सफल होगी। जिला मुख्‍यालय मंदसौर के अलावा मल्हारगढ़, सुवासरा-सीतामऊ और गरोठ विधानसभा सीटें हैं। हालांकि मंदसौर संसदीय क्षेत्र में कुल 9 सीटें आती हैं। इनमें 3 नीमच जिले की और एक रतलाम जिले की जावरा सीट भी शामिल है। 
 
मंदसौर में यशपाल का जोर : विधानसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक जमा चुके विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया पर भाजपा ने एक बार फिर भरोसा जताया है। 2018 में सिसोदिया ने कांग्रेस के दिग्गज नेता नरेन्द्र नाहटा को 18000 से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। इस बार कांग्रेस ने नाहटा के स्थान पर विपिन जैन को मैदान में उतारा है। नाहटा को कांग्रेस ने नीमच की मनासा सीट से टिकट दिया है। हालांकि मुख्‍य मुकाबला यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। 
 
वरिष्ठ पत्रकार मुस्तफा हुसैन कहते हैं कि मंदसौर भाजपा की परंपरागत सीट है, लेकिन विपिन जैन को उतारकर कांग्रेस ने क्षेत्र की कारोबारी जमात को अपने पक्ष में खींचने का दांव चला है। हालांकि यह दांव कितना कारगर होगा यह तो मतगणना के बाद ही चलेगा। क्षेत्र में कारोबार से जुड़े जैन, पोरवाल और अग्रवाल बड़ी संख्‍या में हैं।
 
मुस्तफा कहते हैं कि यशपाल की क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। वे पूरे समय बहुत भी सक्रिय रहे हैं। उनका जनता से सतत संपर्क रहा है। उनके कार्यकाल में शहर को मेडिकल कॉलेज मिला है, अन्य विकास कार्य भी उन्होंने करवाए हैं। दरअसल, सिसोदिया के काम उनके लैंडमार्क हैं। ऐसे में सिसोदिया की स्थिति तुलनात्मक रूप से काफी मजबूत है।  
 
मल्हारगढ़ में जगदीश बनाम परशुराम : अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित मल्हारगढ़ सीट पर भी भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। भाजपा ने जहां राज्य के वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा को एक बार फिर इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने पिछली बार चुनाव हारे परशुराम सिसोदिया पर ही फिर दांव लगाया है। देवड़ा भाजपा का बड़ा चेहरा हैं और इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। देवड़ा 2003 में सुवासरा-सीतामऊ से भी चुनाव जीत चुके हैं। 
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पत्रकार मुस्तफा हुसैन कहते हैं कि कांग्रेस द्वारा परशुराम सिसोदिया को उतारना काफी हैरत भरा फैसला लगता है। क्योंकि पिछले चुनाव में परशुराम करीब 12 हजार वोटों से चुनाव हारे थे। जबकि, इस सीट पर श्याम लाल जोकचंद बड़े दावेदार के रूप में उभरे थे। उनकी अनदेखी कांग्रेस को भारी पड़ सकती है। श्याम लाल को किसानों का हितैषी नेता माना जाता है। वे पिछले 5 सालों से इस क्षेत्र में लगातार काम कर रहे हैं। साथ ही वे मेघवाल कम्युनिटी से आते हैं, जिसके करीब 40 हजार वोटर हैं। 
 
मुस्तफा कहते हैं कि श्याम लाल द्वारा बागी तेवर अपनाने से कोई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी तीसरे स्थान पर चला जाए। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि श्याम लाल ने जब निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया था, तब 15 हजार से ज्यादा समर्थक मौजूद थे। श्याम लाल का आरोप है कि कांग्रेस ने जिस नेता को टिकट दिया है उन्होंने कभी भी जनता की लड़ाई नहीं लड़ी। 
 
क्या डंग का फिर बजेगा डंका? : सुवासरा-सीतामऊ सीट से भाजपा शिवराज सरकार के मंत्री हरदीप सिंह डंग को टिकट दिया है। कांग्रेस ने एक बार फिर राकेश पाटीदार को चुनावी रण में उतारा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक हरदीप इस सीट पर जीत की हैट्रिक बना चुके हैं। 2 बार वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे, जबकि सिंधिया की बगावत के बाद हुआ उपचुनाव उन्होंने भाजपा के टिकट पर जीता था। डंग ने उपचुनाव 29000 से ज्यादा वोटों से जीता था। लेकिन, 2018 का चुनाव वे मात्र 350 वोटों से ही जीते थे। 
 
मुस्तफा कहते हैं कि भले ही डंग ने उपचुनाव 29 से ज्यादा वोटों से जीता हो, लेकिन इस चुनाव में उनके लिए हालात बेहतर नहीं हैं। क्योंकि भाजपा कार्यकता उनसे नाराज हैं। भाजपा का पुराना नेता होने के नाते इस सीट पर पूर्व विधायक राधेश्याम पाटीदार का दावा सबसे मजबूत था। ऐसे में पाटीदार डंग को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस सीट पर पाटीदार वोटर भी बड़ी संख्‍या में हैं। ऐसे में राधेश्याम की नाराजगी डंग के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है। दूसरी ओर, कांग्रेस ने पाटीदार समाज के व्यक्ति को ही उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में परिणाम कुछ भी हो सकता है। 
 
सोजतिया का मुकाबला सिसोदिया से : कांग्रेस की सरकार में गृहमंत्री रहे सुभाष सोजतिया को पार्टी ने मंदसौर जिले की गरोठ विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। सोजतिया पिछली बार भाजपा उम्मीदवार देवीलाल धाकड़ के मुकाबले करीब 2100 वोटों से ही चुनाव हारे थे। भाजपा ने इस बार धाकड़ का टिकट काटकर चंदर सिंह सिसोदिया को उम्मीदवार बनाया है। हालांकि भाजपा इस सीट पर लगातार 2 बार से चुनाव जीतती आ रही है। 
 
पत्रकार मुस्तफा हुसैन कहते हैं कि देवीलाल धाकड़ के खिलाफ क्षेत्र में काफी नाराजगी थी। इसलिए उन्होंने खुद टिकट लेने में रुचि नहीं दिखाई। चूंकि पिछली बार सोजतिया काफी कमर अंतर से चुनाव हारे थे, इसलिए इस बार उनकी स्थिति तुलनात्मक रूप से मजबूत है। एंटी इनकम्बेंसी भाजपा प्रत्याशी चंदर सिंह की मुश्किल बढ़ा सकती है।
 
मंदसौर जिले में कौन जीतेगा और कौन हारेगा इसका पता तो मतगणना के बाद ही चलेगा, लेकिन मतदाता के रुझान को देखते हुए लगता है कि मंदसौर और मल्हारगढ़ सीट पर भाजपा स्पष्ट रूप से बढ़त बनाए हुए है, जबकि सुवासरा-सीतामऊ सीट पर टक्कर देखने को मिल सकती है। वहीं, गरोठ सीट कांग्रेस की झोली में जा सकती है। 


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