भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से जातिगत जनगणना का दांव खेलने के बाद मध्यप्रदेश में ओबीसी राजनीति एक बार गर्मा गई है। कांग्रेस ने भले ही ओबीसी राजनीति का कार्ड बड़े वोट बैंक को साधने के लिए चला हो लेकिन इसका फायदा कहीं न कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी हो रहा है। मध्यप्रदेश की चुनावी सियासत में यह राजनीति का कैसा रंग है जिसमें विपक्ष का सबसे बड़ा हथियार मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राजनीतिक रूप से मजबूती प्रदान कर रहा है, आइए इसको सिलसिलेवार समझते है।
चुनावी रण में OBC राजनीति की एंट्री-मध्यप्रदेश के चुनावी रण में सत्ता वापस की कोशिश में जुटी कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले जातिगत जनगणना का बड़ा दांव चला है। पिछले दिनों शाजापुर जिले के कालापीपल में राहुल गांधी ने प्रदेश के चुनावी रण में ओबीसी का मुद्दा उठाते हुए एलान कर दिया कि कांग्रेस सरकार आते ही जातिगत जनगणना कराई जाएगी। राहुल ने कहा कि जाति जनगणना नहीं होने के कारण देश में ओबीसी की संख्या के बारे में किसी को नहीं पता। राहुल ने कहा कि अब समय आ गया है कि हिंदुस्तान का एक्सरे हो और जातीय जनगणना हो। देश में ओबीसी कितने है और कितनी भागीदार है,यह सबको पता चलना चाहिए। कांग्रेस की सरकार आने के बाद पहला फैसला जातीय जनगणना कराने का होगा।
राहुल गांधी ने भाजपा को घेरते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने 2011 में जातीय जनगणना कराई थी लेकिन मोदी सरकार ने आंकड़े नहीं जारी किए। मोदी सरकार को देश को नहीं बताना चाहती है कि देश में कितने ओबीसी है। राहुल ने कहा कि देश की चार राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री है जिसमें तीन ओबीसी है वहीं भाजपा के 10 मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ एक शिवराज सिंह चौहान ओबीसी मुख्यमंत्री है। राहुल ने सीधे पीएम मोदी सवाल पूछते हुए कहा कि आप खुद को ओबीसी नेता कहते है लेकिन महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण क्यों नहीं किया गया?
राहुल के OBC कार्ड से मजबूत हुए शिवराज?- मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चुनावी प्रचार का शंखनाद करते हुए राहुल गांधी ने ओबीसी वोटरों को रिझाने के लिए भले ही जातिगत जनगणना का कार्ड खेला हो लेकिन कांग्रेस के इस कार्ड से कही न कही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सियासी तौर पर फायदा पहुंचा है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस बार दिग्गज चेहरे केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल के साथ भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को चुनावी मैदान में उतार दिया है। ऐसे में जब मध्यप्रदेश में भाजपा विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है और उसने किसी को भी मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं घोषित किया है, ऐसे में अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन होगा यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है।
मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान भी ओबीसी वर्ग से आते हैं और वह मध्यप्रदेश की राजनीति में भाजपा के ओबीसी के सबसे बड़े चेहरे है। बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी खेल रहे शिवराज सिंह चौहान इस बार भी बुधनी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में है और अगर भाजपा सत्ता में पांचवी बार लौटती तो वह मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे होंगे। शिवराज सिंह चौहान के अलावा प्रहलाद सिंह पटेल भी ओबीसी वर्ग से आते है और वह भी मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल होंगे। लेकिन ऐसे में जब विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद लोकसभा चुनाव होंगे और मध्यप्रदेश लोकसभा चुनाव में भी ओबीसी वोटरों की बड़ी भूमिका होगी तब कही न कहीं शिवराज सिंह चौहान रेस में आगे निकलते दिखाई देंगे।
OBC वोटर्स बनेगा गेमचेंजर?-मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट की मुताबिक प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता लगभग 48 प्रतिशत है। रिपोर्ट के मुताबिक मध्यप्रदेश में कुल मतदाताओं में से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के मतदाता घटाने पर शेष मतदाताओं में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाता 79 प्रतिशत है। ऐसे में ओबीसी वोटरों की विधानसभा चुनाव में भी बड़ी भूमिका होने जा रही है। ऐसे में सत्तारूढ़ दल भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ही ओबीसी वर्ग को लुभाने में जुट गई है।