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क्‍या होती है Horse Trading, राजनीति में कब शुरू हुई, चुनाव परिणाम से पहले क्‍यों डरी हुई हैं पार्टियां?

हमें फॉलो करें क्‍या होती है Horse Trading, राजनीति में कब शुरू हुई, चुनाव परिणाम से पहले क्‍यों डरी हुई हैं पार्टियां?
, शनिवार, 2 दिसंबर 2023 (18:17 IST)
Horse Trading In Politics: देश के पांच राज्‍य मध्‍यप्रदेश, राजस्‍थान, छत्‍तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। इसके बाद आए एग्जिट पोल ने सभी दलों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। एग्जिट पोल के मुताबिक छत्‍तीसगढ़ में कांग्रेस जीत सकती है, जबकि मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में दोनों के बीच कांटे की टक्‍कर होने वाली है। इस बीच खबर है कि कांग्रेस जीत के बाद अपने विधायकों को अज्ञात जगहों पर भेजने वाली है, क्‍योंकि कांग्रेस को हॉर्स ट्रेडिंग का डर है। नेताओं को डर है कि कहीं विधायकों की खरीद फरोख्‍त कर डील करने की कोशिश न की जाए।

ऐसे में जानते हैं आखिर क्‍या है हॉर्स ट्रेडिंग,कहां से आया ये शब्‍द और कैसे ये राजनीतिक दलों की हार-जीत को प्रभावित कर सकता है।

क्या होती है हॉर्स ट्रेडिंग : दरअसल, जब राजनीति में एक पार्टी, दूसरी पार्टी के सदस्यों को लाभ का लालच देते हुए अपने में मिलाने की कोशिश करती है, जहां यह लालच पद, पैसे या प्रतिष्ठा का हो तो इस तरह की कोशिश को डील या हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है। अक्सर सरकार बनाने या बचाने के वक्त या फिर वोटिंग के वक्त इसका इस्तेमाल किया जाता है।

कब आया भारतीय राजनीति में : भारत की राजनीति में इस शब्द का इस्‍तेमाल 1967 से चला आ रहा है। 1967 के चुनावों में हरियाणा के विधायक गया लाल ने 15 दिनों के अन्दर ही 3 बार पार्टी बदली थी। आखिरकार जब तीसरी बार में वो लौट कर कांग्रेस में आ गए तो कांग्रेस के नेता बिरेंद्र सिंह ने प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि 'गया राम अब आया राम बन गए हैं'

कहां से आया हॉर्स ट्रेडिंग शब्‍द : दरअसल, इस शब्द का प्रयोग पहले घोड़ों की खरीद फरोख्त के लिए होता था। करीब 1820 के आस-पास घोड़ों के व्यापारी अच्छी नस्ल के घोड़ों को खरीदने के लिए बहुत जुगाड़ और चालाकी का प्रयोग करते थे। व्यापार का यह तरीका कुछ इस तरह का था कि इसमें चालाकी, पैसा और आपसी फायदों के साथ घोड़ों को किसी के अस्तबल से खोलकर कहीं और बांध दिया जाता था।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था Horse Trading पर?
साल 2014 में आम आदमी पार्टी ने हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिर विधायकों के खरीद फरोख्त को हॉर्स ट्रेडिंग क्यों कहा जाता है। इसे आदमियों का क्यों नहीं कहा जाता। जस्टिस एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने चुटकी ली थी। देश में हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए कानूनी स्तर पर प्रयास भी किए जा रहे हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं।
Edited By : Navin Rangiyal

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