भोपाल। मध्यप्रदेश में बंपर वोटिंग के बाद अब सभी की निगाहें 3 दिसंबर की तारीख पर टिक गई है, जब चुनाव परिणाम आएंगे। चुनाव परिणाम से पहले इन दिनों प्रदेश में नतीजों को लेकर अटकलों और कंन्पूजन अपने चरम पर है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हर कोई अपने हिसाब से वोटिंग के बढ़े प्रतिशत का सियासी विश्लेषण करने में जुटा हुआ है। इस बार प्रदेश में चुनाव परिणाम को लेकर ऐसा कंन्फूजन है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस कोई भी बहुमत को लेकर आशान्वित नहीं है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के नेता भले ही सरकार बनाने का दावा कर रहे हो लेकिन सीटों की संख्या पूछने पर वह गोलमाल जवाब देते नजर आते है। ऐसे में चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा उसको लेकर सिर्फ कयास ही लगाए जा सकते है।
1-लाड़ली बहना को लेकर लाख टके का सवाल?-मध्यप्रदेश में इस बार बंपर वोटिंग के पीछे महिला वोटर्स की भूमिका प्रमुख मानी जा रही है। ऐसे में प्रदेश की सियासी फिंजा में यह सवाल सबसे बड़ा है कि चुनावी साल में क्या लाड़ली बहना योजना गेमचेंजर साबित होने जा रही है। इसको लेकर भी सियासी विश्लेषकों की एक राय नहीं है। सियासी विश्लेषकों की मानें तो लाड़ली बहना का असर होता तो महिला वोटर्स में यह रूझान पूरे प्रदेश में दिखाई देता है इसका सीधा फायदा सत्ताधारी पार्टी को मिलता है और उसके पक्ष में एक लहर दिखाई देती, लेकिन चुनावी धरातल पर ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया। भाजपा ने लाड़ली बहना के आसपास अपनी पूरी चुनावी रणनीति को केंद्रित रखा है।
कुछ सियासी विश्लेषक और सत्ताधारी पार्टी भाजपा लाड़ली बहना योजना को विधानसभा चुनाव में गेमचेंजर के तौर पर देख रही है। भाजपा वोटिंग के दिन से लेकर अब तक लाड़ली बहना को लेकर सोशल मीडिया पर काफी अक्रामक दिखाई दी और उसने महिलाओं के बड़े वोट प्रतिशत को भाजपा के पक्ष में बताया है। वहीं सियासी विश्लेषक कहते हैं कि गांवों में लाड़ली बहना योजना का असर हुआ है इसमें कोई दो राय नहीं है औऱ यहीं कारण प्रदेश की ग्रामीण वोटर्स के बाहुल्य वाली विधानसभा सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है।
वहीं दूसरी ओऱ कांग्रेस महिलाओं के बढ़े वोट प्रतिशत को अपनी नारी सम्मान योजना से जोड़ते हुए प्रदेश में बढ़े मतदान परसेंट को बदलाव के लिए वोट बता रही है। फिलहाल चुनावी नतीजें ईवीएम में कैद है और बढ़ा वोट प्रतिशत लाड़ली बहना योजना का असर है या यह बदलाव का वोट है, यह तीन दिसंबर को पता चलेगा।
2-दिग्गजों की सीटों के लेकर कंफ्यूजन-मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार वोटिंग के बाद दिग्गजों की सीटों को लेकर कंफ्यूजन हर नए दिन के साथ बढ़ता जा रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने केंद्रीय स्तर के सात बड़े चेहरों को चुनावी रण में उतारकर सभी को चौंका दिया था लेकिन अब चुनावी नतीजे कई दिग्गजों को चौंका सकते है।
वहीं शिवराज सरकार के कई मंत्रियों का भविष्य भी ईवीएम में कैद हो गया है जिसको लेकर इन दिनों अटकलों का बाजार गर्म है। वहीं चुनावी वोटिंग के बाद कांग्रेस के दिग्गजों नेताओं में शामिल और लहार विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे नेता प्रतिपत्र गोविंद सिंह औऱ कांग्रेस विधायक प्रवीण पाठक ने डाकमत पत्रों और बुजुर्गों को वोट में जिस तरह से गड़बड़ी की आंशका जताई है उससे भी कई तरह के सवाल उठने लगे है।
3-जीत-हार का अंतर सिमटेगा!-कांटे के मुकाबले वाले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार जीत-हार का अंतर सिमटेगा। बंपर वोटिंग के बाद भी चुनावी विश्लेषक इस बात पर एकमत है कि इस बार चुनावी नतीजों मे जीत-हार का अंतर 2018 की तुलना में और सिमटेगा। चुनावी दृष्टि से फंसे मध्यप्रदेश चुनाव में कई हाईप्रोफाइल सीटों पर जीत-हार में गिनती के मतों का अंतर रह सकता है।
अगर 2018 के विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो प्रदेश में 10 से अधिक विधानसभा सीटों पर जीत-हार का अंतर एक हजार से कम था ऐसे में इस बार कांटे के मुकाबले वाले विधानसभा चुनाव में जीत-हार के अंतर पर सबकी निगाहें टिकी होगी।
4-निर्दलीय और अन्य बनेंगे किंगमेकर?- कांटे के मुकाबले वाले मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में इस बार बागी होकर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे नेता और कई सीटों सपा और बसपा दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के साथ किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकती है। प्रदेश की दो दर्जन से अधिक विधानसभा सीटें अधिक है जहां पर निर्दलीय और अन्य दलों के उम्मीदवार प्रभावी भूमिका में नजर आ रहे है। राजनीतिक विश्लेषक इस पर एक राय है कि इस बार चुनाव नतीजों पर निर्दलीय और छोटे दलों के उम्मीदवारों का स्पष्ट प्रभाव नजर आएगा।