क्या आप कर्जदार हैं? आपने कर्ज किससे और क्यों लिया? कितना ब्याज चुका रहे हैं? कितना कर्ज और बचा है? कितनी बार कर्ज ले चुके हैं। कर्ज का बोझ कब से है? ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे लोगों से ऐसे सवाल कभी भी पूछे जा सकते हैं।
यह कवायद ग्रामीणों की माली हालत जानने के लिए हो रही है। इसमें रोजगार गारंटी योजना के आकलन के साथ मजदूरों द्वारा किए गए काम का अध्ययन भी होगा। केंद्र और राज्य सरकार का यह संयुक्त सर्वे एक साल चलेगा।
इसमें सर्वेयर गाँव में जाकर ग्रामीणों से कर्ज के बारे में हर छोटी-बड़ी जानकारी प्रोफार्मा में भरेंगे। इसके अलावा सर्वे में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) की पड़ताल भी की जाएगी।
सर्वे दल गाँवों में जाकर पूछेगा कि नरेगा में काम मिला या नहीं? मजदूरी का भुगतान हुआ या नहीं। हुआ तो किस माध्यम से। इसी तरह ग्रामीण किस तरह की मजदूरी कर रहे हैं। व्यावसायिक प्रशिक्षण लिया या नहीं। यदि पढ़ाई-लिखाई की है तो रोजगार कार्यालय में पंजीयन कराया या नहीं।
कौन करेगा सर्वे- नेशनल सेम्पल सर्वे ऑर्गनाइजेशन और मप्र का आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग मिलकर इस काम को अंजाम देगा। इसके लिए मास्टर ट्रेनरों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
सारी जानकारी सामने आएगी-संचालनालय के अफसरों की मानें तो सर्वे इतना व्यापक है कि ग्रामीण व्यक्तियों से जुड़ी सभी जानकारी सामने आ जाएगी। इसमें ग्रामीण से पूछा जाएगा कि कर्ज पुश्तैनी तो नहीं हैं? यह सहकारी समिति, बैंक, नियोक्ता, बड़े भूमि मालिक, साहूकार, दुकानदार, व्यापारी, रिश्तेदार या दोस्तों में से किससे लिया। इसका उद्देश्य शिक्षा, चिकित्सा, कानूनी, शादी, भूमि खरीदी, भवन निर्माण या पुराना कर्ज चुकाने जैसे खर्च थे? (नईदुनिया)