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वन सुरक्षा के लिए संयुक्त दल गठित होगा

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जगदलपुर (वार्ता) , बुधवार, 16 सितम्बर 2009 (12:22 IST)
वनों की सुरक्षा संबंधी आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के वन अधिकारियों की अंतरराज्यीय समन्वय बैठक में इन प्रदेशों के सीमा क्षेत्रों में संयुक्त दल द्वारा गश्त करने का निर्णय लिया गया है।

छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में उड़ीसा के मुख्य वन संरक्षक सीसीएफ एओएफ बाखला, आंध्रप्रदेश वारंगल के सीसीएफ एस.के. चोटरे, महाराष्ट्र चन्द्रपुर के वन संरक्षक नरसिम्हा लू, छत्तीसगढ़ के सीसीएफ दिवाकर मिश्रा, बस्तर-जगदलपुर वन वृत्त के वन संरक्षक श्रीनिवास राव सहित वन विभाग के अन्य वरिष्ठ अधिकारी विशेष रूप से उपस्थित थे।

बैठक में इन प्रदेशों के सीमावर्ती इलाकों में अवैध वन कटाई और वनोपज की तस्करी के रोकथाम के उपायों पर विचार-विमर्श किया गया। चारों राज्यों के सीमावर्ती इलाकों में अवैध कटाई और वनोपज की तस्करी की रोकथाम पर गंभीर विमर्श-विमर्श किया गया।

बैठक में बताया गया कि तेंदुपत्ता, सालबीज, गौंद सहित अन्य वनोपज पर विभिन्न राज्यों में वैधानिक नियंत्रण एक समान नहीं होने के कारण तस्करी की रोकथाम करना कठित हो रहा है। उड़ीसा में सालबीज पर वन विभाग का नियंत्रण न होकर ग्राम पंचायतों के द्वारा संग्रहण के लिए अनुज्ञा पत्र जारी किए जाते हैं।

बैठक में वनों की सुरक्षा के लिए वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक सुनियोजित रणनीति बनाने पर गंभीर विचार-विमर्श किया गया। निर्णय लिया गया कि इन चारों राज्यों की सभी सीमा क्षेत्रों में संयुक्त दल का गठन कर गश्त की जाएगी और अंतरराज्यीय परिवहन अनुज्ञा पत्र में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल किया जाएगा।

सीमा क्षेत्रों में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए पुख्ता व्यवस्था, सीमा क्षेत्रों के परिक्षेत्र वन मंडलाधिकारियों की नियमित बैठकें और सीमा क्षेत्रों में वनोपज जाँच चौकियों पर अन्य राज्यों के कर्मचारिया को तैनात करने का निर्णय भी लिया गया। बैठक में परिक्षेत्र स्तर पर टेलीफोन और अन्य संचार साधनों की व्यवस्था उपलब्ध कराने पर चर्चा की गई।

छत्तीसगढ़ के प्रधान मुख्य वन संरक्षक आर के शर्मा ने कहा कि इस बैठक के निष्कर्षो का लाभ वनों की सुरक्षा में मिलेगा। उन्होंने कहा कि जैव विविधता के मामले में देश में छत्तीसगढ़ का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य में अनेक दुर्लभ वनस्पतियाँ मौजूद है। यहाँ के वन क्षेत्रों में अनेक जनजातियाँ रहती है जो वनों पर ही आश्रित होती है।

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