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अनिश्चितता के भँवर में फँसी भाजपा

कहीं बागी बने सिरदर्द तो कहीं विरोधियों से परेशानी

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नई दिल्ली से मनोज वर्मा , बुधवार, 26 नवंबर 2008 (22:51 IST)
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और दिल्ली में भले भारी बहुमत का दावा करे, लेकिन हकीकत में छत्तीसगढ़ को छोड़ शेष तीनों राज्यों के बारे में भाजपा नेताओं के दावों में आत्मविश्वास का अभाव दिखाई देता है।

राजस्थान और मध्यप्रदेश में बहुमत को लेकर पार्टी का दम फूल रहा है, तो दिल्ली में भाजपा की उम्मीदें बसपा के प्रदर्शन पर टिकी हैं। इस बीच ऐसी खबरों के बाद कि बसपा कांग्रेस के साथ भाजपा को भी नुकसान पहुँचा रही है, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अचानक सुर बदल लिया है। पार्टी अब बसपा को अधिक भाव नहीं दे रही है।

वैसे पिछली बार दो तिहाई बहुमत से मध्यप्रदेश में सरकार बनाने वाली भाजपा को इस बार कांग्रेस के साथ-साथ अन्य दलों से भी जूझना पड़ रहा है। अंदरखाने भाजपा के केंद्रीय नेता मान रहे हैं कि फिलहाल भाजपा दूसरे दलों से आगे रहेगी, लेकिन कितनी सीटों से इस पर केंद्रीय नेता मौन हैं।

ग्वालियर संभाग में सपा और बसपा भाजपा और कांग्रेस दोनों को चुनौती देते नजर आ रही हैं तो बुंदेलखंड क्षेत्र को लेकर भाजपा नेतृत्व खासा सहमा हुआ है। इस क्षेत्र में उमा भारती की भाजश कम से कम दो दर्जन सीटों पर खेल बिगाड़ रही है।

पार्टी शुरुआत में भारती को हल्के से ले रही थी, लेकिन अब पार्टी के केंद्रीय नेता मान रहे हैं कि कुछ सीटों पर भारती मुसीबत बन रही हैं। सूत्रों की मानें तो भारती के भाषणों ने ही भाजपा के केंद्रीय नेताओं को साध्वी प्रज्ञा का मामला उठाने के लिए मजबूर किया।
मालवा संभाग जिसे भाजपा अपना गढ़ मानती है, को लेकर भी पार्टी में अधिक विश्वास नजर नहीं आ रहा है। पार्टी 130 से 150 सीटों पर जीत मान कर चल रही है, लेकिन अंदरखाने पार्टी का एक आँकड़ा 105 सीटों का भी है।

इधर, राजस्थान में टिकट के वितरण के बाद पार्टी में हुई बगावत और नाराजगी ने केंद्रीय नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। राज्य की लगभग चालीस सीटों पर वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे किरोड़ीमल मीणा और पार्टी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए विश्वेंद्रसिंह के चलते नुकसान का खतरा लग रहा है। निर्दलीय भी अलग समस्या बन गए हैं। राजस्थान के चुनाव प्रभारी वैंकेया नायडू कहते हैं मैं सीटों का दावा नहीं करना चाहता, लेकिन यह दावे से कह सकता हूँ कि सरकार भाजपा की ही बनेगी।

राजस्थान में भाजपा कम से कम 90 सीटों पर अपनी जीत तय मान कर चल रही है। 200 विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में भाजपा का यह आकलन बहुमत से पीछे है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश की तुलना में राजस्थान में 160 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच लगभग सीधा मुकाबला है। ऐसी स्थिति में भाजपा का खेल बिगड़ सकता है।

सूत्रों का तो यहाँ तक कहना है कि राजस्थान में भाजपा ने दमदार निर्दलीय प्रत्याशियों पर अभी से नजरें टिका दी हैं। दिल्ली में दस साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस से सत्ता छीनने के लिए भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व 25 से 30 सीट तय मान रहा है, जो बहुमत से कम हैं।

पार्टी का आकलन है कि 20 सीटें ऐसी हैं, जिन पर बसपा की मौजूदगी पार्टी के दिल्ली में सरकार बनाने या न बनाने का रास्ता खोलेगी। सिर्फ छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार बनाने को लेकर आशान्वित है।

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