-विशाल मिश्रा
उषा को दी दगा अपनों ने लेकिन
वो देती है दुआ दुनिया में सब को
यह शे'र सुश्री उषा ठाकुर के लिए बिलकुल फिट बैठता है। उनका विरोध यहाँ अपनों ने ही किया। ऐसे गुट और लोग जोकि पार्टी के 'घनिष्ठ संबंधी' माने जाते थे, ने ऐन वक्त पर जाकर विरोध की ऐसी टाँग अड़ाई कि फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सहारा भी उनको टिकट नहीं दिला सका। जबकि इस सीट पर उन्होंने विधायक रामलाल यादव (भल्लू भैया) को पटखनी दी थी।
देश में शायद ही कोई पार्षद होगा जो टू व्हीलर पर घूमता दिखे। लेकिन क्षेत्र की 'दीदी' विधायक बनने के बाद भी आपको या तो अपनी हीरो होंडा खुद चलातीं या किसी भैया की दुपहिया गाड़ी पर पीछे बैठी दिख जाती थीं।
किसी समय उनके संगी-साथी रहे मनगढ़त बातें बनाते हुए कहते रहे कि इनके बनाए हिन्दू चेतना मंच के नाम पर कुछ गलत हो रहा है। क्षेत्र की अनेक कॉलोनियों में बोरिंग, कच्ची सड़कों का सीमेंटीकरण और क्षेत्र के कांग्रेसी नेताओं की बोलती बंद कराने वाली उषा को पाँच साल के कार्यों का यह सिला मिलेगा। उन्होंने तो क्या कभी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा।
'दीदी' ने शादी क्यों नहीं की तो जवाब में उनके पिता कहते हैं कि उसकी शादी तो हो चुकी है, देशभक्ति के साथ ही अब उसे जीवन बिताना है। क्षेत्र के कार्यकर्ता और मतदाता इसे किस रूप में लेते हैं 27 नवंबर को सूरज की पहली किरण के साथ लगने वाली उनकी मुहर ही बताएगी कि पार्टी का यह निर्णय कितना सही है और कितना गलत।