- यशवंतसिंह पँवार, झाबुआ। क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता एवं पूर्व सांसद दिलीपसिंह भूरिया ने पार्टी बदलने के मामले में एक नया रेकॉर्ड कायम किया है। करीब एक साल कांग्रेस में रहने के बाद पार्टी छोड़कर वे पुनः भाजपा में शामिल हो गए हैं। उनके इस निर्णय पर क्षेत्र में मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ हो रही हैं।
मूलतः कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर आरंभ करने वाले दिलीपसिंह भूरिया वर्ष 1972 में पहली बार पेटलावद विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। इसके पश्चात वर्ष 1980 से लगातार 18 सालों तक वे सांसद रहते हुए कांग्रेस की मजबूती के लिए कार्य करते रहे। वर्ष 1997-98 में भूरिया का कांग्रेस से पहली बार मोह भंग हुआ और उन्होंने भाजपा का झंडा उठा लिया। भाजपा प्रत्याशी की हैसियत से वर्ष 1998 एवं 99 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने लड़ा, लेकिन उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया के सामने पराजित होना पड़ा।
भुला दिया भूरिया को : वर्ष 2003 में झाबुआ जिले की पाँचों विधानसभा सीटों पर एवं प्रदेश में भाजपा का ऐतिहासिक जीत का डंका बजा तो दिलीपसिंह भूरिया को भाजपा ने भुला दिया। यहाँ तक कि 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा ने अपना प्रत्याशी तक बनाना उचित नहीं समझा। इस उपेक्षा से नाराज होकर बाद में तीसरे मोर्चे को खड़ा करने की कोशिश करते हुए भूरिया गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से जुड़ गए। तीन वर्षो तक कांग्रेस-भाजपा की नीतियों को घातक बताते हुए वे तीसरे मोर्चे को आगे बढ़ाने की वकालत करते रहे। पिछले साल सितंबर माह में उनका कांग्रेस मोह एक बार पुनः जागा और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। एक वर्ष से अधिक समय तक कांग्रेस में रहने के पश्चात अब वे पुनः भाजपा में शामिल हो गए हैं। भूरिया के इस निर्णय के पीछे उनकी पुत्री की राजनीति को आगे बढ़ाना प्रमुख कारण माना जा रहा है।
पुत्री भाजपा की मंत्री रही हैं : जब भूरिया कांग्रेस में थे तो 1993 में उन्होंने अपनी पुत्री निर्मला भूरिया को कांग्रेस प्रत्याशी बनाते हुए पेटलावद क्षेत्र से जीत दिलवाई थी। जब वे भाजपा में गए तो वर्ष 1998 के चुनाव में निर्मला भूरिया पेटलावद से भाजपा प्रत्याशी बनीं और पहली बार भाजपा का इस क्षेत्र में खाता खुला। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में भी स्थिति जस की तस रही। विधायक होने के बावजूद निर्मला की भाजपा में उपेक्षा होती रही और मंत्रिमंडल गठन के दौरान हर बार उनका नाम काट दिया गया, लेकिन उन्होंने भाजपा को कभी नहीं छोड़ा।
मुश्किलें आती बेटी को : इसी वर्ष मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा निर्मला भूरिया को पूरा सम्मान देते हुए अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। यदि दिलीपसिंह भूरिया कांग्रेस में बने रहते तो पेटलावद क्षेत्र में उनके फोटो एवं नाम का भरपूर उपयोग कांग्रेसी करते और पेटलावद से भाजपा प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही उनकी पुत्री निर्मला को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता।
क्या हो सकता है?
* भाजपा भूरिया के लगभग 40 वर्षों के लंबे राजनीतिक अनुभवों का आदिवासी क्षेत्रों में भरपूर उपयोग कर सकती है।
* पेटलावद से निर्मला भूरिया को भाजपा ने अपना प्रत्याशी पहले ही घोषित कर दिया है। दिलीपसिंह से भाजपा की ताकत में इजाफा हो सकता है।
* भूरिया अब खुलकर अपनी पुत्री का प्रचार कर सकेंगे।
* भाजपा के पास रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट के लिए उम्मीदवार का अभाव है। वह दिलीपसिंह भूरिया को लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी बना सकती है। विधानसभा चुनाव में भी उन पर दाँव खेला जा सकता है।
प्रतिक्रिया
दिलीपसिंह भूरिया के भाजपा प्रवेश पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ हैं। उनके समर्थक पटाखे चला रहे हैं, वहीं कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि अपने स्वार्थ के लिए लगातार पार्टियाँ बदलना उनका राजनीतिक शौक बन चुका है। उनके भाजपा में जाने से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।