- राजेश सिरोठिया
भोपाल। मध्यप्रदेश में तेरहवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में मतदान के नए कीर्तिमान को लेकर सभी हैरत में हैं। राज्य के दोनों प्रमुख दल मतदान के इस आयाम को अपने पक्ष में बताने और जताने की कोशिश कर रहे हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2003 में 67.25 फीसद मतदान हुआ था। यह मध्यप्रदेश बनने के बाद से सर्वाधिक मतदान था। लेकिन 2008 में तो मतदाताओं ने अपने मौन को मुखर करते हुए जागरूकता के नए आयाम (69.31 फीसदी) स्थापित कर डाले। हालाँकि पिछली बार तो दस साल से काबिज दिग्विजयसिंह सरकार को हटाने के लिहाज से मतदान हुआ था, लेकिन इस बार सरकार के खिलाफ या कांग्रेस के पक्ष में कोई लहर जैसी चीज चुनाव प्रचार के दौरान नजर नहीं आई।
इसलिए सभी दल तब अपने पक्ष में 'अंडर करंट' का दावा करते रहे। बिजली को छोड़कर कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जो कि 'कोर इश्य' बनकर उभरा हो। लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज ने लाड़ली लक्ष्मी तथा मुख्यमंत्री कन्यादान जैसी सामाजिक सरोकारों की योजना के जरिए भाजपा के खिलाफ जाते बिजली के मुद्दे को ढँकने की कोशिश की।
ऐसे में फिर रिकॉर्ड मतदान का आखिर क्या निहितार्थ हो सकता है? दो दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाले मध्यप्रदेश में मतदान का प्रतिशत कम होना सत्तारूढ़ दल के पक्ष में तथा ज्यादा होना सरकार के पक्ष का माना जाता था। पिछले चुनावों तक यह तर्क काफी हद तक सही भी था। पिछले चुनाव में तीसरी शक्ति के बतौर उभरती बसपा में ऐन चुनाव के मौकों पर हुए बिखराव के बाद पिछली बार दो दलीय परपंरा ही कायम रही। लेकिन इस बार कांग्रेस और भाजपा के साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय की सोशल इंजीनियरिंग पर काम करते हुए तीसरी शक्ति के बतौर उभरने के लिए पूरा जोर लगाया।
उत्तरप्रदेश की मायावती सरकार से मिलती ऑक्सीजन ने भी इसमें जान फूँकने की कोशिश की। फिर भाजपा से निकली मॉस लीडर की छवि वाली तेजतर्रार साध्वी उमा भारती भी मैदान में थीं। समाजवादी पार्टी ने भी अपनी घटती ताकत के बावजूद अपने वोट प्रतिशत को ध्यान में रखते हुए दो सौ प्रत्याशी मैदान में उतारे। कहीं गोंगपा और कहीं समानता दल तो फिर कहीं कांग्रेस और भाजपा के कुछ दिग्गज बागी। चुनावी समर में सीधे मुकाबलों को बहुकोणीय आयाम मिलने के कारण भी सबने अपने-अपने समर्थकों की टीम ज्यादा से ज्यादा वोट बटोरने के लिहाज से मैदान में झोंकी।
जाहिर है कि वोटर मोबलाइजेशन का काम सभी दलों की ओर से होने के कारण भी मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। इसके अलावा राजनीतिक पंडितों को लगता है कि मुंबई में हुई देश की सबसे बड़ी आतंकी घटना के चलते शहरी क्षेत्रों में मतदान के प्रतिशत को बढ़ाया है। किस में कितना है दम इसका खुलासा तो 8 दिसंबर की दोपहर को ही होगा। लेकिन तब तक दावे-प्रतिदावे करने का गालिब ख्याल अच्छा है।