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कांग्रेस कैसे तोड़ेगी भाजपा का व्यूह...

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, शुक्रवार, 1 नवंबर 2013 (15:20 IST)
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भाजपा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए पूरी तरह कमर कस चुकी है। कार्यकर्ताओं की फौज नेताओं के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए तैयार है। पार्टी ने भी कड़ी मशक्कत के बाद 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए 147 चेहरों का ऐलान कर दिया है। यह वे चेहरे हैं जिन्हें हर हाल में पार्टी के लिए चुनावी हैट्रिक लगानी है। दूसरी ओर कांग्रेस अभी टिकट वितरण की रस्साकसी से ही जूझ रही है।

टिकट वितरण में बाजी मारते हुए पार्टी ने जो व्यूह रचा उसने विपक्षी पार्टी के साथ ही भाजपा में विरोध की राजनीति कर रहे नेताओं को भी चौंका कर रख दिया है। उन नेताओं के ‍टिकट बहुत सख्ती से काटे गए हैं जिनके जीतने की संभावनाएं कम थीं। नागेंद्रसिंह, देवीसिंह सैयाम और रामदयाल अहिरवार जैसे मंत्रियों को तो टिकट से हाथ धोना ही पड़ा है साथ ही 22 विधायकों की भी छुट्टी कर दी गई है। हालांकि नागेन्द्रसिंह पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके थे।

पार्टी ने दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की मार्किंग करते हुए उनके प्रभाव को कम करने का भी प्रयास किया है। भाजपा कांग्रेस की चुनौती को हल्के में नहीं ले रही है। चुनावों में कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे ग्वालियर के 'महाराजा' और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव को कम करने के लिए पार्टी ने उनकी बुआ और सांसद यशोधरा राजे को मैदान में उतार दिया है। चंबल क्षेत्र में सिंधिया राजघराने की पैठ को देखते हुए भाजपा ने यह फैसला किया है। यशोधरा का टिकट क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश का संचार तो करेगा ही साथ ही वे ज्यादा मजबूती से पार्टी के लिए काम कर पाएंगे। विजयाराजे सिंधिया के करीबी और ग्वालियर से सांसद रहे जयभानसिंह पवैया को भी इसी रणनीति के तहत मैदान में उतारा गया है।

क्षेत्रगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने सागर से सांसद भूपेंद्रसिंह और बालाघाट के सांसद केडी देशमुख को चुनाव मैदान में उतारा है। पूर्व सांसद आरिफ बेग को टिकट देकर मुस्लिम समुदाय को भी साथ लेने का प्रयास किया गया है। 116 विधायकों के टिकट इस बात को साबित करते हैं कि पार्टी को इन चुनावों में एंटी कंबेंसी फैक्टर का डर नहीं है। सर्वे और इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के आधार पर कई हारे हुए उम्मीदवारों पर भी विश्वास जताया गया है।

टिकट वितरण को लेकर उपजे असंतोष का सामना करने के लिए भी प्रभावी रणनीति बनाई गई। कई विरोधियों को टिकट पुचकारा गया है तो अपने क्षेत्र से पलायन की तैयारी कर रहे दिग्गजों को फटकार कर वापस उन्हीं के क्षेत्र में पहुंचाया गया है। कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गजों की इच्छा को दरकिनार कर पार्टी ने कुछ सीटों को अपनी झोली में डालने का भी प्रयास किया है।

शहजादों को रेवड़ी की तरह टिकट नहीं बांटे गए हैं, लेकिन उनकी पूरी तरह अनदेखी भी नहीं की गई है। इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट मिले। दो बार चुनाव हार चुके नेताओं से भी कन्नी काटी गई है।

कुल मिलाकर भाजपा ने जिस तरह से टिकटों का बंटवारा किया है उससे साफ लगता है कि वह कांग्रेस को हल्के में नहीं ले रही है। ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी दूसरी सूची भी पांच नवंबर को जारी कर देगी। टिकट वितरण में बाजी मारकर भाजपा ने अपने प्रत्याशियों को कांग्रेस से ज्यादा समय दिया है। अगर वह इसका सदुपयोग करने में सफल रहे तो दबाव कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर होगा जो अब भी उम्मीदवार घोषित किए जाने की राह देख रहे हैं।

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