Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कौन जीतेगा मध्यप्रदेश में चुनाव

Advertiesment
हमें फॉलो करें मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव
भोपाल , गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013 (10:49 IST)
FILE
भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनावी रिकॉर्ड के आंकडे बताते हैं कि सरकार किसी की भी बनी हो लेकिन कांग्रेस एवं भाजपा के बीच हमेशा कांटे की टक्कर रही है। हालांकि कुछ अन्य दलों ने वोटों में सेंधमारी कर चुनावी गणित को गड़बड़ किया है।

मध्यप्रदेश में पिछले 7 चुनावों के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि कांग्रेस और भाजपा के बीच मतों का अंतर दो बार को छोड़कर कभी भी 6 प्रतिशत से अधिक नहीं रहा जबकि अन्य दल लगभग 20 प्रतिशत तक मत लेकर चुनावी गणित गड़बड़ाते रहे हैं।

वर्ष 1977 में जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी लेकिन उसमें हुई आपसी खींचतान के चलते उससे जल्दी ही जनता का मोहभंग हो गया और वर्ष 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने 47.51 मत प्राप्त कर दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई थी जबकि भाजपा को 30.34 प्रतिशत मत मिले थे और अन्य दल एवं निर्दलीयों ने 22.15 प्रतिशत मतों पर कब्जा किया था।

इसी प्रकार वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शहादत के बाद वर्ष 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही और उसे 48.57 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा 32.47 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर सकी। इस चुनाव में अन्य दल एवं निर्दलीय 18.96 मत ही प्राप्त कर सके।

पिछले 7 चुनाव में वर्ष 1980 एवं 1985 के चुनाव ही ऐसे चुनाव रहे जब दो प्रमुख दलों के बीच मतों का अंतर क्रमश: 17.17 एवं 16.10 प्रतिशत रहा जबकि अन्य चुनाव में यह अंतर 6 प्रतिशत से अधिक नहीं रहा।

वर्ष 1990 में केंद्र में राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स मामले के प्रभाव के चलते कांग्रेस के प्रति नाराजगी का असर मध्यप्रदेश में भी दिखाई पडा और वर्ष 1985 में 48.57 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली कांग्रेस 33.49 प्रतिशत मतों पर सिमटकर सत्ता से बाहर हो गई जबकि भाजपा पहली बार 39.12 प्रतिशत मत प्राप्त कर स्वयं के बूते पर सत्ता में आने में सफल रही। इस वर्ष अन्य एवं निर्दलीय 26.39 मत प्राप्त कर सके थे।

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद उपजे दंगों के चलते भाजपा सरकार को भंग कर दिया गया तथा इसके बाद भाजपा को पूरा भरोसा था कि सहानुभूति मतों के चलते वह दुबारा सत्ता पाने में सफल होगी लेकिन वर्ष 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा से 2 प्रतिशत अधिक मत पाने में सफल रही और सत्ता में आ गई।

वर्ष 1993 में कांग्रेस को 40.79 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा 38.82 प्रतिशत मत प्राप्त कर सत्ता से बाहर हो गई। अन्य दल एवं निर्दलीयों को 20.39 प्रतिशत मत मिले।

वर्ष 1998 में भी यही कहानी दोहराई गई तथा केवल 1.25 प्रतिशत मतों के अंतर से कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आने में कामयाब रही थी। इस वर्ष कांग्रेस को 40.79 प्रतिशत मत मिले जबकि भाजपा को 38.82 मत ही मिल सके। अन्य दल एवं निर्दलीयों ने 20.39 प्रतिशत मत प्राप्त कर भाजपा का गणित पूरी तरह गड़बड़ा दिया।

कांग्रेस के 10 वर्ष के शासनकाल के दौरान बिजली, पानी एवं सड़क समस्याओं से परेशान प्रदेश की जनता ने एक बार फिर भाजपा में अपना भविष्य देखा और उसे दो तिहाई बहुमत दिया। उस समय भाजपा को जहां 42.50 प्रशित मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 37.70 ही रह सका जबकि अन्य दल एवं निर्दलीय 19.80 प्रतिशत मत प्राप्त कर सके।

वर्ष 2008 में भाजपा के मतों में भी लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन वह कांग्रेस से लगभग 5 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त कर एक बार फिर सत्ता में आने में कामयाब रही।

इस वर्ष भाजपा को जहां 37.70 प्रतिशत मत मिले वहीं कांग्रेस को 32.40 मत प्राप्त कर सत्ता से बाहर बैठना पड़ा। इस चुनाव में अन्य दल एवं निर्दलीयों ने अपने मतों के प्रतिशत में बढ़ोतरी करते हुए 29.90 प्रतिशत मत प्राप्त किए।

अब इस साल आगामी 25 नवंबर को यहां विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और पिछले चुनाव परिणामों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि जो भी दल दूसरे के मुकाबले 2 से 5 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त करेगा वह सत्तासीन होने में कामयाब हो सकता है। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi