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चंबल घाटी में 'बसंती' ने किया भाजपा का प्रचार

हमें फॉलो करें चंबल घाटी में 'बसंती' ने किया भाजपा का प्रचार
भिण्ड , शनिवार, 23 नवंबर 2013 (11:09 IST)
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भिण्ड। मध्यप्रदेश में कभी डाकुओं के लिए कुख्यात रही चंबल घाटी आज भी करीब साढ़े तीन दशक पुरानी सुपरहिट फिल्म 'शोले' की दीवानगी को भुला नहीं पाई है। बॉलीवुड के इतिहास में सफलता के मील का पत्थर मानी जाने वाली इस फिल्म से जुड़ा कोई भी कलाकार अगर इस क्षेत्र में आ जाए तो लोग उसे हाथोहाथ लेते हैं।

डाकुओं की समस्या पर आधारित इस फिल्म में 'बसंती' का किरदार निभाने वाली जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्टार प्रचारक हेमा मालिनी भिण्ड जिले की गोहद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी लालसिंह आर्य के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा में पहुंचीं तो लोगों ने उनसे बसंती के संवाद सुनाने की फरमाइश कर दी। लोगों को उनके भाषण सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है।

भाजपा की सांसद रहीं हेमामालिनी भी लोगों के मूड को देखकर रंग में आ गईं और शुरू किया डायलॉग्स सुनाना। जनता खुश होकर ताली बजाती है। सभा में ऐसे लोग भी आए, जो कांग्रेस के समर्थक हैं लेकिन बसंती को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाए।

हेमामालिनी ने कुछ डायलॉग सुनाए फिर बड़ी खूबसूरती से 'शोले' के संवादों में भाजपा के प्रचार को भी शामिल कर लिया। वे कहती हैं कि बसंती तांगे पर बैठकर नहीं आई है। आज का गब्बर जंगल में नहीं रहता है। वह रूप बदलकर आप सबके बीच रहता है। इसे पहचानो और इन गब्बरों को हराकर मध्यप्रदेश में चौतरफा कमल ही कमल खिलाओ। कमल की सरकार बनाओ।

बाद में हेमामालिनी पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दे पर आ गईं। उन्होंने कहा कि देश-प्रदेश का कोई विकास कर सकता है तो वह है भाजपा। गरीबों, दलितों और आमजन की हितैषी भाजपा को प्रदेश में पूरी ताकत से समर्थन दें। आज पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर चल रही है।

हेमामालिनी ने कहा कि भाजपा ने महिला, किसान, बेरोजगारों व मजदूरों का ख्याल रखा है। इस सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए जनता भाजपा प्रत्याशी को जिताएं। जो अच्छा काम करता है उसे वोट देने में संकोच नहीं करना चाहिए।

भदौरिया से क्या पूछा हेमा मालिनी ने...


इसी भीड़ में गोहद के पास के एक गांव के वीरेन्द्र भदौरिया भी हैं। 60 साल के करीब पहुंच रहे 6 फुट लंबे, गठीले बदन और घनी बड़ी मूंछों वाले भदौरिया की आंखों में खास तरह की चमक है। पता नहीं, उन्होंने उनकी बातें सुनीं या नहीं, पर उनकी नजरें एकटक हेमामालिनी पर लगी रहीं।

जब उनसे पूछा कि क्या सोच रहे हैं? तो भदौरिया पहले तो अचकचा गए, लेकिन बाद में बताने लगे कि 'शोले' 44 बार देखी है। पिताजी से कभी बहाने से पैसे लेते या कभी चोरी से जेब से निकाल लेते और कभी थोड़ा-थोड़ा जोड़कर बस से ग्वालियर जाते थे और टॉकीज में 'शोले' देखकर लौटते थे।

जब उनसे पूछा कि क्या कभी पकड़े गए? तो उन्होंने कहा- कभी नहीं। उन्होंने यह भी बताया कि 'शोले' 44वीं बार 5 साल पहले टीवी पर देखी थी। भदौरिया थोड़ा और खुलते हैं। वे बताते हैं कि जवानी में उनकी ख्वाहिश थी कि उनकी शादी हेमामालिनी जैसी शक्ल-सूरत वाली लड़की से हो।

आखिर हेमा जैसी शक्ल-सूरत वाली क्यों? हेमा खुद क्यों नहीं? आखिर ख्वाहिश पालने में क्या जाता है? जब उनसे यह पूछा गया तो वे कहने लगे कि हेमा खुद संभव नहीं हो सकती। उनकी बसंती जैसी छवि वाली लड़की चंबल क्षेत्र में मिलना कोई मुश्किल भी नहीं था।

जब उनसे पूछा कि फिर क्या हुआ? उन्होंने बताया कि पिताजी का खौफ था इसलिए यह बात कह नहीं पाए और बाद में उन्हीं की मर्जी से बैंड-बाजा बज गया। इसके तुरंत बाद वे तेजी से निकल गए।

इसके बाद हेमा अगले पड़ाव की ओर बढ़ गईं और चंबल के बाशिंदे मूंछों पर ताव देकर अपने अपने ठिकानों की तरफ। हेमा मालिनी को देखने आने वालों में नौजवान कम और बुजुर्ग ज्यादा थे।

चंबल क्षेत्र में लोग होशियार हैं। उन्होंने हेमामालिनी के 'बसंती' अंदाज के तो खूब मजा लिए लेकिन उनकी राजनीतिक अपील से प्रभावित हुए या नहीं, इसका पता लगाना बड़ा मुश्किल था। (वार्ता)

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