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चुनाव आठ दिन शेष, दलों ने प्रचार में झोंकी ताकत

हमें फॉलो करें चुनाव आठ दिन शेष, दलों ने प्रचार में झोंकी ताकत
भोपाल , रविवार, 17 नवंबर 2013 (19:05 IST)
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भोपाल। मध्यप्रदेश में 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आठ दिन का समय शेष बचा है। सभी 230 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव प्रचार अभियान पूरे शबाब पर है और सभी प्रत्याशियों तथा उनकी पार्टियों के नेताओं ने मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में प्रचार के लिए जहां उसके स्टार प्रचारक एवं 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी कल प्रदेश में भोपाल सहित चार स्थानों पर सभाएं लेने आ रहे हैं।

अब तक वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली, अध्यक्ष राजनाथ सिंह की कुछ सभाएं हो चुकी हैं और अनेक होने वाली हैं।

दूसरी ओर, कांग्रेस की ओर से अब तक अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अंबिका सोनी, मोहन प्रकाश सभाएं कर चुके हैं तथा आगे भी उनकी सभाओं के आयोजन होने हैं। वहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज जबलपुर में एक चुनावी सभा को संबोधित करने वाले हैं।

दोनों प्रमुख दलों, कांग्रेस तथा भाजपा के स्टार प्रचारक विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में सभाएं ले रहे हैं। वहीं कहीं-कहीं मतदाताओं के बीच पहुंचकर भी उन्हें पार्टी के पक्ष में मतदान के लिए अपील कर रहे हैं। बसपा तथा सपा भी अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में मतदाताओं से सघन जनसंपर्क में जुटी है।

इन दलों का प्रचार अभियान कमोबेश अपेक्षित दिशा में ही चल रहा है। उदाहरण के लिए भाजपा जहां केन्द्र में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा राज्य के साथ केन्द्र सरकार के अन्याय जैसे मुद्दो को उछालकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर रही है। वहीं कांग्रेस किसानों में व्याप्त असंतोष, कानून-व्यवस्था तथा प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर राज्य की भाजपा सरकार पर निशाना साध रही है।

महिला उत्पीड़न के आंकड़ों का हवाला देकर कांग्रेस शिवराज सरकार को महिलाओं की सुरक्षा में असफल करार देने की कोशिश कर रही है। मतदाताओं ने आम तौर पर एक तरह की रणनीतिक चुप्पी ओढ़ रखी है जो मतदान की गोपनीयता की निर्वाचन आयोग की मंशा के अनुरुप ही है। लेकिन उन्हें टटोलने पर यही सामने आता है कि उन्हें भाजपा का केंद्र विरोधी प्रचार आकर्षित नहीं कर रहा है और कांग्रेस द्वारा राज्य सरकार को घेरने के लिए दी जा रही दलीलें भी उन्हें प्रभावित नहीं कर पा रही हैं।

मतदाताओं को इस बार सड़क, बिजली, पानी, रोजगार, भ्रष्टाचार जैसे स्थानीय मुद्दे अधिक प्रभावित कर रहे हैं। राज्य के विकास को लेकर सरकार द्वारा किए जा रहे दावें और कांग्रेस द्वारा उन्हें दी जा रही चुनौतियां भी मतदाताओं की रूचि का विषय उभरकर सामने नहीं आ सकी हैं।

चुनाव में राज्य सरकार के पक्ष या विरोध में कोई लहर नहीं दिख रही है। इसके अलावा क्षेत्रीय विधायक तथा उनके समर्थकों की पिछले पांच साल के दौरान जनता की समस्याओं के निराकरण के लिए उनकी उपलब्धता तथा क्षेत्रीय मतदाताओं के साथ उनका व्यवहार भी इस चुनाव में अहम रोल अदा कर रहा है।

हर बार की तरह इस बार भी जातीय समीकरण चुनावी हार-जीत का काफी अड़ा कारण बनने जा रहे हैं। आम तौर पर राजनीतिक दलों ने भी इसी सच्चाई को स्वीकारते हुए अपने प्रत्याशियों का चयन किया है। जातिगत आधार पर मतदाताओं को लुभाना तथा मतदान के लिए प्रेरित करना विभिन्न दलों का प्रचार अभियान का एक अहम हिस्सा है।

राज्य में बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) तथा सपा की पिछले कुछ सालों में बढ़ी हुई ताकत भी इसी वास्तविकता का प्रमाण है, क्योंकि इन दलों का आधार भी पिछड़ी तथा दलित जातियों तथा जनजातियों के बीच उनकी सक्रियता के कारण बढ़ा है। (भाषा)

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