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धुँआ-धुँआ सारा समां - भेड़ाघाट

हमें फॉलो करें धुँआ-धुँआ सारा समां - भेड़ाघाट

श्रुति अग्रवाल

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Shruti AgrawalWD
चमकती संगमरमर की लगभग सौ फीट ऊँची दीवारें... बीच में कल-कल बहती नर्मदा नदी पूरा माहौल बेहद पवित्र, बेहद शांत..पानी में चमकती सूर्य की किरणें... यह दिलकश नजारा है भेड़ाघाट का। पूर्णिमा की चाँदनी रात में यहाँ के सौंदर्य का वर्णन करना शब्दों में संभव नहीं है। ऐसे में आप नर्मदा में नौका-विहार करें तो रहस्यमय सौंदर्य का अनुभव करेंगे।


कई हिंदी फिल्मकारों ने यहाँ शूटिंग की है। जिसका रोचक वर्णन गाइड अनोखे अंदाज में सुनाते हैं। ये नाव चालक कम गाइड लगातार बोलते रहते हैं। यदि आप खामोशी से इस जगह की खूबसूरती निहारना चाहें तो बस इन्हें एक बार चुप होने का इशारा करना होगा।
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दो ऊँचे-ऊँचे संगमरमरी आईनों के बीच बहती नीली शांत नर्मदा आगे चलकर बेहद खूबसूरत धुआँधार जलप्रपात के रूप में गिरती है। चाँदनी रात में इस जैसा खूबसूरत स्थान शायद ही विश्व में कहीं हो। चाँदनी रात में सरकार की ओर से हर साल यहाँ उत्सव का आयोजन करवाया जाता है। जिसके तहत नौकाओँ की राजसी सज्जा की जाती है। साथ ही सारंगी, तबला जैसे पारंपरिक वाद्य-यंत्रों को कुछ नावों में खास तौर पर बजवाया जाता है।

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मुख्य आकर्षणः-
संगमरमरी चट्टानें- इस जलप्रपात क दोनों ओर खूबसूरत संगमरमर की चट्टाने हैं। इन उज्जवल-धवल चट्टानों के बीच नौका विहार की सुविधा नवंबर से मई तक उपलब्ध रहती है। चाँदनी रात में इसकी खूबसूरती और नौकाविहार का आनंद दुगना हो जाता है।

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धुआँधार जलप्रपात-
शांत नर्मदा चट्टानों के बीच से बहती है और धुँआधार जलप्रपात के रूप में गरजकर गिरती है। इसकी आवाज दूर से ही सुनाई देती है। पानी की तेजी गहरे धुएँ के रूप में दिखाई देती है। प्रकृति की खूबसूरती का एक और रूप!

सेलखड़ी की कलाकृतियाँ-
यहाँ नर्मदा में पाए जाने वाले सेलखड़ी पत्थरों (संगमरमर) पर उकेरी गई कलाकृतियाँ बनाने और बेचने का व्यवसाय यहाँ होता है। यहाँ आपको बच्चे हो, बूढ़े हो या जवान सभी इसी काम में लगे दिखाई देंगे। आप यहाँ से संगमरमर के खूबसूरत सामान ही नहीं खरीद सकते, बल्कि इन्हें कितनी खूबसूरती से बनाया जाता है यह भी निहार सकते हैं।

चौंसठ योगिनी मंदिर-
ऊँची पहाड़ी पर स्थित मंदिर में कई सीढ़ियाँ चढ़कर आप जब ऊपर पहुँचते हैं तो नीचे संगमरमर की चट्टानों के बीच बहती नर्मदा की लहरों का सौंदर्य आपकी सारी थकान हर लेता है। दुर्गा माँ का यह मंदिर दसवीं शताब्दी का है यहाँ कलचुरी काल की अन्य प्रतिमाएँ भी मौजूद हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर भूमिगत सुरंग के माध्यम से दुर्गावती महल से जुड़ा हुआ है।

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कैसे जाएँ-
हवाई मार्ग से- जबलपुर सबसे निकट का हवाई अड्डा है जो यहाँ से 23 किमी. दूर है। भोपाल और दिल्ली के लिए यहाँ से नियमित हवाई सेवा है।
रेल मार्ग से- मुंबई-हावड़ा मुख्य लाइन इलाहबाद से होते हुए जबलपुर रेल मुख्यालय है। सभी एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेन यहाँ रुकती हैं।
सड़क मार्ग से जबलपुर से बस, टैम्पो और टैक्सियाँ भेड़ाघाट के लिए चलती हैं।

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कब जाएँ- अक्टूबर से जून तक का समय यहाँ जाने के लिए श्रेष्ठ है। मानसून सीजन में आप धुँआधार जलप्रपात का धुँआ-धुँआ रूप नहीं देख पाएँगे।

बजट- यहाँ जाने के लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लगता है। आप यूँ ही बिना टिकट लिए यहाँ की खूबसूरती निहार सकते हैं। हाँ, नौकायान के लिए आपको शुल्क चुकाना होगा...कितना यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आप दूसरे लोगों के साथ मिलकर नाव किराए पर लेते हैं तो यह आपको 100 से 150 रूपए के बीच मिल जाएगी।

यदि अपने परिवार के लिए पूरी नाव बुक करना चाहते हैं तो नाव के आकार और रूप-रंग के अनुसार कीमत 350 से लेकर 500 रूपए हो सकती है। चाँदनी रात में विहार करने पर टिकिट शुल्क कुछ बढ़ा दिया जाता है। इसके अलावा जबलपुर में ठहरने के लिए सस्ते और मँहगें दोनो ही होटल आराम से मिल जाते हैं।

टिप्सः-
धुँआधार जलप्रपात देखते समय काफी सावधानी रखें। जोश में आकर रेलिंग पर चढ़ना और रेलिंग क्रास करना काफी खतरनाक साबित हो सकता है।

यहाँ नौकाविहार करते समय नाव का संतुलन न बिगाड़े। यहाँ कई जगह पानी काफी गहरा है।

अपने साथ सनक्रीम लोशन, कैप और चश्मा जरूर रखें। बात यदि चाँदनी रात की हो तो इनकी क्या जरूरत।

यहाँ कुछ सालों पहले मगरमच्छ पाए जाते थे। इसलिए अभी भी सावधानी रखना जरूरी है बच्चों को नौका विहार करते समय पानी में बार-बार हाथ डालने से रोकें।

पहाड़ियों पर नाम कुरेदकर इनकी प्राकृतिक सुंदरता खराब न करें। न ही यहाँ वहाँ कूड़ा खासकर पॉलिथिन फेंके।


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