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लुभाने लगे तालाब और स्तूप

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मध्य प्रदेश के प्राचीन धरोहरों की तरफ पूरी दुनिया के पर्यटक मानो खिंचे चले आ रहे हैं। बिहार के बौद्ध सर्किट की तरह ही मध्य प्रदेश भी विश्व पर्यटन पर अपना अमिट अक्स छोड़ने लगा है। भोपाल की गैस त्रासदी दिल दहलाने वाली जरूर है लेकिन इस शहर का एक दूसरा रूप भी है जो मन और आंखों को मोहने वाला है।

तालाबों के शहर भोपाल की गंगा जमुनी संस्कृति आधुनिकता का आवरण पहने सैलानियों के मन प्राण पर छा रही है। भोपाल ही नहीं खजुराहो और मांडू जैसे पर्यटन क्षेत्र भी पर्यटकों के जमघट के गवाह बन रहे हैं।

प्राचीन धरोहरों से समृद्ध यह प्रदेश आधुनिकता के हाईवे पर भी किसी से पीछे नहीं है। राजधानी भोपाल को नए शॉपिंग कॉम्प्लेक्स व मॉल जैसे आधुनिक रूपों ने भी सजाया है। अरेरा और शामला हिल्स स्थित रेस्तरां, म्यूजियम और होटल सैलानियों के लिए खासे चर्चित हो रहे हैं। 'भोपाल ब्यूटी' के नाम से चर्चित ऊपरी तालाब में स्पीडबोटों में आनंद की अठखेलियों में डूबते-उतराते धनी लोग एक अनोखा दृश्य उपस्थित करते हैं। तालाबों के उत्तर में पुराना शहर है।

भोपाल से 46 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में गोलाई लिए एक पहाड़ी का अभ्युदय हुआ है, जिसे सांची के नाम से जाना जाता है। इस पहाड़ी पर भारत के कुछ अति प्राचीन बौद्ध स्थल बने हुए हैं। सांची का बौद्ध स्तूप अपनी गरिमा और ऐतिहासिकता के साथ मध्य प्रदेश की गरिमा में चार चांद लगा रहा है। कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने स्तूप बनाने के लिए अपनी पत्नी के जन्म स्थान के पास इस जगह को चुना।

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बुर्जों से सजा यह स्थल धार्मिक अवशेषों का संग्रह करने के लिए बनाया गया था। इस इलाके में यह पहला बौद्ध स्मारक है। अल सुबह और शाम इन स्तूपों की छटा में जो निखार आता है, उसे देख कर ही महसूस किया जा सकता है। सांची के आसपास सोनारी, सतधारा, अंधेर, गिरासपुर जैसे बौद्ध स्थल बिखरे पड़े हैं।

सांची से 10 किलोमीटर उत्तर-पूर्व बेतवा और बेस नदियों से सिंचित विदिशा ईशा पूर्व ५वीं और ६ठी शताब्दी में वाणिज्य का एक बड़ा केंद्र था। विदिशा भी पर्यटकों के लिए प्राचीन धरोहरों का एक अप्रतिम स्थल साबित होता है। इस सरजमीं के इतिहास को सम्राट अशोक, सिंधिया और मुगलों के आगमन ने समृद्ध किया है। खजानों के देवता कुबेर यक्ष की पत्थर की तीन मीटर ऊंची प्राचीन मूर्ति पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र बन रही है।

वहाँ के अन्य प्राचीन आकर्षणों में प्रेम आलिंगन में बद्ध 11वीं सदी में ढली साँप दंपत्ति, हनुमान एवं प्रेम के देवता कामदेव की मूर्तियाँ शामिल हैं। खजुराहो मंदिर यूनेस्को की विश्व-विरासत की सूची में शामिल है। विश्व पर्यटन के मानचित्र में खजुराहो का नाम प्रमुखता से उभर रहा है। खुजराहो कामशास्त्र पर आधारित मूर्तियों का समूह है। यह परिसर चंदेल वंश के राजाओं के समय 950 ई. से 1050 ई. के बीच बना था, जिसमें 85 मंदिर थे, हालाँकि अब सिर्फ 22 मंदिर ही बचे हैं।

इनके अलावा यहाँ सिर्फ कंदरिया महादेव का मंदिर ही बचा है। यह मंदिर पाँच मुख्य वर्गों में विभाजित है, जिनमें तीन वर्ग छोटे मंदिरों के हैं। मंडप में प्रवेश करने पर सभाकक्ष पड़ता है, फिर एक गलियारा पार करने पर मंदिर का गर्भगृह मिलता है, जहाँ प्रतिमा स्थापित है। ऊँचे चबूतरे पर स्थित इन मंदिरों में कुछ बड़े, कुछ छोटे मंदिर हैं।

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