भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल इन दिनों एक खास तरह के बाजार से गुलजार है। राजधानी में भोपाल रियासत के समय में लगभग 100 साल पहले लगने वाले 'परी बाजार' की यादों को फिर ताजा करने के लिए 'मीना बाजार' लगाया गया है, जहां केवल महिलाओं को ही प्रवेश दिया जा रहा है।
संत रविदास हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम की ओर से लगाए गए इस बाजार में प्रदेश के दूरदराज से आई महिला कलाकारों ने अपने स्टॉल लगाए हैं। गुरुवार को प्रदेश की कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री कुसुम मेहदेले ने इसका उद्घाटन किया। मीना बाजार 12 जुलाई तक चलेगा।
महदेले ने शुभारंभ के बाद स्टॉल पर पहुंचकर उत्पादों के संबंध में चर्चा की। उन्होंने उत्पादों की सराहना करते हुए महिला कलाकारों को ग्रामोद्योग योजनाओं की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि निगम ने रियासती दौर के मीना बाजार के रूप में परी बाजार को दोहराने का प्रयास किया है।
मीना बाजार में पर्यटन विकास निगम के सहयोग से एक फूड स्टॉल भी लगाया गया है। 4 दिनी इस बाजार में विभिन्न प्रतियोगिताएं होंगी। रियासती दौर में उपयोग किए जाने वाले वस्त्र एवं परिधान के साथ ही छायाचित्रों को प्रदर्शित किया जाएगा।
भोपाल रियासती दौर में महिलाओं की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया था। नवाब सिकंदर बेगम ने सन् 1860 में एक स्कूल की स्थापना की थी। सुल्तानजहां बेगम भोपाल रियासत की अंतिम महिला शासक थीं जिन्होंने शिक्षित छात्राओं के लिए लेडीज क्लब की स्थापना की थी।
ब्रिटेन की महारानी सन् 1909 में जब भोपाल आईं तो लेडीज क्लब का नाम प्रिंसेस ऑफ वेल्स क्लब रखा गया। क्लब में खेलकूद की प्रतिस्पर्धाएं और महिलाओं पर केंद्रित विषयों पर परिचर्चा होती थी।
वर्ष 1916 में बेगम सुल्तानजहां ने महिला क्लब के माध्यम से मीना बाजार लगाया। बाजार में महिलाओं द्वारा निर्मित हस्तशिल्प सामग्री बिक्री के लिए रखी जाती थी तथा केवल महिलाओं को ही उसकी खरीदी की अनुमति थी। उनके इस प्रयास से महिलाओं का जहां आत्मसम्मान बढ़ा, वहीं उन्हें समाज में समानता का अधिकार भी मिला।
बेगम सुल्तानजहां स्वयं बाजार में दुकानों का निरीक्षण कर महिलाओं को प्रोत्साहित करती थीं। उस दौर में मीना बाजार को परी बाजार इसलिए कहा जाता था क्योंकि पढ़ी-लिखी बच्चियां सुंदर वस्त्र धारण कर परी के रूप में इन मेलों में भाग लेती थीं।
पुराने भोपाल में आज भी एक मोहल्ला परी बाजार कहलाता है। नवाब हमीदुल्ला खां के शासन काल में भी सन् 1943 में उनके जन्मदिन पर बड़े स्तर पर मीना बाजार लगाने का उल्लेख मिलता है। (वार्ता)