खजुराहो भारत के उन प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसे देखने के लिए दुनिया के हर कोने से पर्यटक यहाँ तक िखंचे चले आते हैं। यूनेस्को ने इसे वैश्विक धरोहर घोषित किया है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिर जीवन, आनंद और सौंदर्य के प्रतीक हैं।
खजुराहो के मंदिरों में भारतीय कला की हजारों अद्भुत कृतियाँ हैं, इन कृतियों से झलकता सौंदर्य यहाँ का सबसे बड़ा आकर्षण है। इन कृतियों में मोहक मुद्राओं वाले युगलों की मूर्तियाँ यहाँ पर्यटकों को सर्वाधिक मोहित करती हैं। खजुराहो के ये मंदिर भारतीय दर्शन और स्थापत्य कला के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि माने जाते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार हर प्रतिमा के पीछे उनके सृजक का कोई-न-कोई संदेश है। इस संदेश को भारतीय इतिहास और संस्कृति के विशेषज्ञ अपने-अपने ढंग से परिभाषित करते हैं, लेकिन एक बात तो तय है कि इन मूर्तियों का सौंदर्य इतना प्रभावी है कि इतिहास में रुचि न रखने वाले लोग भी इनके आकर्षण से बच नहीं सकते।
इतिहास खजुराहो का इतिहास बहुत रोचक है।
खजुराहो में 85 मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों ने ईसवी 950 से ईसवी 1050 इन सौ वर्षों के दौरान खजिरवहिल्ला अर्थात् खजूर के बगीचों में करवाया था।
तेरहवीं शताब्दी में चंदेल साम्राज्य के पतन के बाद लंबे समय तक इन मंदिरों का कोई रखरखाव नहीं किया गया। खजुराहो के इन उपेक्षित मंदिरों के आस-पास खजूर के वृक्ष बढ़ते गए और इन वृक्षों की छाँव तले ये मंदिर छिप गए।
सन् 1838 में अँग्रेज सेना के इंजीनियर टीएस बर्ट ने इन मंदिरों को दुबारा खोज निकाला। इस तरह अँधेरे में छिपे ये कलात्मक मंदिर पुन: अस्तित्व में आए, किंतु इतने लंबे समय तक उपेक्षित रहने के कारण इस समय तक 85 में से केवल 22 मंदिर ही शेष बचे हैं। खजूर के वृक्षों के आधार पर ही इस जगह का नाम पड़ा खजुराहो। प्राचीनकाल में इसका नाम वत्स हुआ करता था।
खजुराहो के मंदिर तीन समूहों में विभाजित हैं- पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी। नागर शैली में बने ये मंदिर शैव, वैष्णव और जैन संप्रदाय के हैं। यहाँ जितनी भी मूर्तियाँ हैं, उन्हें पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है। प्रथम वर्ग में देवताओं की प्रतिमाएँ हैं, जिनकी आराधना की जाती है। द्वितीय वर्ग में देवगणों की प्रतिमाएँ हैं। तृतीय वर्ग में सुंदरियों और अप्सराओं की प्रतिमाएँ हैं। इस वर्ग की प्रतिमाओं की बहुलता है। चतुर्थ वर्ग के अंतर्गत तत्कालीन भारतीय जीवन की प्रतिमाएँ हैं। पाँचवें वर्ग में पशु-पक्षियों की प्रतिमाएँ हैं।
इन पाँचों के अतिरिक्त एक वर्ग और है। इस वर्ग के अंतर्गत आने वाली प्रतिमाओं को ‘उत्तान श्रृंगार की जीवंत पुतलिकाएँ’ कहा जाता है। इन प्रतिमाओं को देखते समय देखने वाले की दृष्टि बहुत महत्वपूर्ण होती है। जिस दृष्टि और जिस मनोभाव के साथ आप इन प्रतिमाओं की ओर देखेंगे, आपको इनमें वैसे ही भाव नजर आएँगे।
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खजुराहो के प्रमुख मंदिर लक्ष्मण मंदिर यह खजुराहो का सबसे आकर्षक मंदिर है। इसकी दीवारों पर नृत्य करती महिलाओं की सुंदर प्रतिमाएँ बनाई गई हैं। इस मंदिर का निर्माण ईसवी 930 में यशोवर्मन ने करवाया था।
राजा यशोवर्मन का नाम लक्ष्मण भी था इसलिए इसे लक्ष्मण मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है, जिसकी ऊँचाई सौ फुट है। भगवान विष्णु के साथ ही यहाँ देवी लक्ष्मी और ब्रह्मदेव की प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं।
हजार वर्ष पुराना यह मंदिर समय की रेत पर बने एक स्थायी निशान की तरह है क्योंकि खजुराहो के 22 मंदिरों में से लक्ष्मण मंदिर ही इस समय सबसे मजबूत और बेहतर स्थिति में है।
चौंसठयोगिनी मंदिर यह मंदिर 1100 वर्ष पुराना है। खजुराहो की शिवसागर झील के किनारे स्थित इस मंदिर को ग्रेनाइट के पत्थरों से बनवाया गया है। यह मंदिर काली माता का है, किंतु इसमें स्थापित काली माता की मूर्ति अब खंडित हो चुकी है।
चित्रगुप्त मंदिर इस मंदिर का नाम भले ही चित्रगुप्त मंदिर है किंतु वास्तव में यह सूर्य देवता का मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में सात घोड़ों पर सवार सूर्यदेव की प्रतिमा है। इस मंदिर का निर्माण ग्यारहवीं शताब्दी में महाराजा गंडदेव ने करवाया था।
विश्वनाथ मंदिर आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व पंचायतन शैली में महाराजा धंगदेव ने इसका निर्माण करवाया था। इस मंदिर में तीन सिर वाले ब्रह्माजी की मूर्ति है, जिसका कुछ भाग खंडित हो चुका है।
दूल्हा देव मंदिर खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए शिव मंदिरों में यह सबसे नया है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें सहस्रमुखी शिवलिंग है। इसके शिवलिंग पर एक हजार छोटे-छोटे शिवलिंग बनाए गए हैं।
वराह मंदिर इस मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा वराह रूप में स्थापित है। ढाई मीटर से भी ऊँचे एक पत्थर को तराश कर बनाई गई यह प्रतिमा इस मायने में विशिष्ट है कि इस पर अनगिनत देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ बनाई गई हैं।
कंदरिया महादेव मंदिर यह खजुराहो का सबसे विशाल मंदिर है। यह 117 फुट लंबा, 117 फुट ऊँचा और 66 फुट चौड़ा है। ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर का द्वार किसी कंदरा की तरह प्रतीत होता है इसलिए इसे कंदरिया महादेव (कंदरा में रहने वाले महादेव) कहते हैं।
मतंगेश्वर मंदिर इस मंदिर का निर्माण ईसवी 920 में राजा हर्षवर्मन ने करवाया था। यह मंदिर खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में भगवान का 8 फुट ऊँचा शिवलिंग है। यह खजुराहो के प्राचीन मंदिरों में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहाँ अभी भी पूजा- अर्चना की जाती है। इन मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ के जगदंबा मंदिर, चतुर्भुज मंदिर, ब्रह्मा मंदिर, और वामन मंदिर भी दर्शनीय हैं।
जनश्रुतियाँ : खजुराहो के संबंध में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। कहते हैं, कि उस समय बच्चे गुरुकुल में पढ़ते थे। उन्हें सांसारिक बातों का ज्ञान कराने के लिए इन मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। यह भी कहा जाता है कि चंदेल राजा तंत्र-मंत्र में विश्वास रखते थे। उनकी मान्यता थी, कि सांसारिक बातों में रमने के बाद ही मनुष्य की अनंत के प्रति यात्रा शुरू होती है।
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नृत्य महोत्सव : खजुराहो में प्रतिवर्ष ‘खजुराहो नृत्य महोत्सव’ आयोजित किया जाता है, जिसमें देश-विदेश के ख्यात नर्तक और नृत्यांगनाएँ भाग लेते हैं। यह महोत्सव शुद्ध रूप से भारतीय नृत्य कला पर केंद्रित रहता है। शास्त्रीय नृत्य के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव के रूप में वर्ष में एक बार सम्पन्न होने वाले इस महोत्सव के दौरान खजुराहो के आकर्षण में चार चाँद लग जाते हैं।
अन्य आकर्षण : खजुराहो के आस-पास भी कुछ मनोरम पर्यटन स्थल हैं, जिनमें पांडव जलप्रपात, रेंच जलप्रपात और पन्ना राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।
खरीददारी : घूमने-फिरने का एक महत्वपूर्ण भाग होती है- खरीददारी। यदि आप खजुराहो घूमने जाने की योजना बना रहे हैं और खरीददारी के भी शौकीन हैं तो यहाँ के बाजार आपका इंतजार कर रहे हैं। खजुराहो के बाजार में आपको मिट्टी की बेहतरीन मूर्तियाँ मिलेंगी। इन मूर्तियों के रूप में आप खजुराहो में बिताए पलों को सहेज कर रख सकते हैं। यहाँ पर मिलने वाली नटराज की मूर्ति बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ हर मंगलवार को एक हाट-बाजार लगता है जो कि ताँबे और लोहे की कलात्मक वस्तुओं की खरीददारी के लिए एक आदर्श स्थान है।
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कैसे पहुँचें : खजुराहो देश के विभिन्न शहरों से सड़क व वायुमार्ग के द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली और आगरा से इंडियन एयरलाइंस और जेट एयरवेज के विमान प्रतिदिन खजुराहो के लिए उड़ान भरते हैं।
नजदीकी रेलवे स्टेशन : खजुराहो के सबसे समीप महोबा रेलवे स्टेशन है, जो यहाँ से 64 किमी दूर है। इसके अतिरिक्त हरपालपुर (94 किमी), सतना (117 किमी), झाँसी (175 किमी) तक अपनी सहूलियत के अनुसार रेलमार्ग से पहुँचा जा सकता है। इन स्थानों से खजुराहो के लिए अनेक बस व टैक्सियाँ उपलब्ध हो जाती हैं।
कहाँ ठहरें : खजुराहो देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है इसलिए यहाँ पर ठहरने के लिए बेहतरीन होटल्स, लॉज और गेस्ट हाउस हैं। अपने बजट के मुताबिक आप तीन सितारा या सामान्य होटल में ठहर सकते हैं। यहाँ जैन धर्मशालाएँ आपको कम खर्च में रहने के लिए बेहतर सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
कब जाएँ : खजुराहो जाने के लिए सितंबर से मार्च के मध्य का समय बेहतर रहता है। गर्मियों में खजुराहो में तापमान सामान्यत: 42 डिग्री के ऊपर रहता है व सर्दियों में यहाँ ज्यादा ठंड नहीं पड़ती और तापमान 20 से 30 डिग्री के मध्य रहता है, जो कि घूमने-फिरने के लिए अनुकूल है।