मध्यप्रदेश के अन्य मंदिरों की तरह ही यह मंदिर भी प्रकृति से मनुष्य के जुड़ाव को प्रदर्शित करता है। यहाँ प्रकृति ने स्वयं दो पर्वतों के बीच एक खाई को जोड़कर ओम का आकार ग्रहण किया है।
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मंदिर के उत्तर में विंध्य पर्वत और दक्षिण में सतपुड़ा के बीच नर्मदा नदी मूक वाहक की तरह है। पहले नदी में बहुतायत में घड़ियाल थे। अब भी यहाँ बड़ी संख्या में मछलियाँ हैं जिन्हें हाथों से दाना खिलाने का सुख प्राप्त किया जा सकता है। नदी पर स्थित पुल यहाँ की सुंदरता को द्विगुणित करता है।
ओंकार मांधाता मंदिर
यह मंदिर नर्मदा द्वारा काटे गए एक मील लंबे और आधा मील चौड़े द्वीप पर स्थित है। इसके नर्म पत्थरों को काटकर बारीक नक्काशी उकेरी गई है और विशेष रूप से इसका ऊपर का भाग देखने लायक है। मंदिर की छत भी बहुत सुंदरता से उकेरी गई है। मंदिर को घेरे हुए बरामदे में बने स्तंभों पर वृत्त, बहुकोणीय आकृतियाँ और वर्ग बने हुए हैं।
सिद्धनाथ मंदिर
यह मध्यकाल की ब्राह्मण कला का बेहतरीन नमूना है। इसकी विशेषता बाहरी दीवारों पर हाथियों की खूबसूरत नक्काशी है।
चौबीस अवतार
यहाँ हिंदुओं और जैन मंदिरों का समूह है। हरेक मंदिर स्थापत्य के लिहाज से बेहतरीन कला का नमूना पेश करता है।
सातमातृका मंदिर
ओंकारेश्वर से छ: किलोमीटर दूर यहाँ दसवीं शताब्दी के मंदिरों का समूह है।
काजल रानी की गुफा
ओंकारेश्वर से नौ किलोमीटर दूर यह प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थल है। क्षितिज तक फैले चौड़े हरियाले मैदान धरती से अंबर का मेल खाते से लगते हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौंदर्य अवर्णनीय है।
कैसे जाएँ
हवाई मार्ग
सबसे निकट का हवाई अड्डा इंदौर 77 किमी. दूर है जो मुंबई, भोपाल और दिल्ली से जुड़ा है।
सड़क मार्ग
यह इंदौर, उज्जैन और खंडवा से सड़क मार्ग से जुड़ा है।
रेल मार्ग
सबसे निकट का रेल मुख्यालय ओंकारेश्वर रोड 12 किमी. दूर है। यह पश्चिम रेलवे के रतलाम-खंडवा सेक्शन से जुड़ा है।
कब जाएँ
अक्टूबर से मार्च तक आप कभी भी यहाँ जा सकते हैं। अक्टूबर-नवंबर का महीना आदर्श कहा जा सकता है।