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सिटी ऑफ जॉय : मांडू

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विंध्याचल की खूबसूरत पर्वतमालाओं के बीच 2000 फीट की ऊँचाई पर बसा मांडू मालवा के परमारों द्वारा शासित रहा है। मुगलों को भी यह स्थान बेहद पसंद था इसलिए इसका नाम उन्होंने शादियाबाद रखा जिसका अर्थ होता है आनंद नगरी। सचमुच मांडू इस नाम को साकार करता है। यहाँ के पग-पग पर बिखरे नैसर्गिक सौंदर्य को देखकर आपका मन आनंदित हो उठेगा।

  मांडू में पत्थर बोलते हैं और बरसों पुरानी प्रेम कहानी को बयाँ करते हैं। इमारतें जो बाज बहादुर ने रानी रूपमती के प्रेम तोहफे के रूप में बनवाई थीं। आज भी ये पत्थर उसी दास्तान को दोहराते हैं।      
पूर्व के शासकों ने जो इमारतें बनवाई हैं वे प्रकृति के सौंदर्य के साथ इस तरह एकाकार हो चुकी हैं कि उनके बिना मांडू अधूरा ही रहता। जहाज महल, हिंडोला महल, रानी रूपमती का महल सब कुछ असीम शांति लिए हुए है। यहाँ रहस्यमयी सौंदर्य और स्थापत्य के दर्शन करते हुए आप कहीं खो जाते हैं और अपने आपको एक अनोखी दुनिया में पाते हैं। मांडू आकर किसी प्राचीन नगर को रूबरू देखने का अहसास होता है।

स्थापत्य के नजरिए से देखें तो यहाँ की जामी मस्जिद और होशंगशाह का मकबरा ताज महल बनाने वालों के लिए प्रेरणादायी बना। मांडू में पत्थर बोलते हैं और बरसों पुरानी प्रेम कहानी को बयाँ करते हैं। इमारतें जो बाज बहादुर ने रानी रूपमती के प्रेम तोहफे के रूप में बनवाई थीं। आज भी ये पत्थर उसी दास्तान को दोहराते हैं। रूपमती के महल से बाज बहादुर के महल का नजारा दिखाई देता है तो आपको लगता है आप उसी काल में हैं। रूपमती के महल से हरी-भरी घाटियाँ और नर्मदा की पतली चाँदी जैसी रेखा देखना, बादलों को छूकर गुजरना बारिश के मौसम में गजब का रहस्य पैदा करता है। यही कारण है कि मुगलों के समय में मांडू छुट्टियाँ बिताने का आदर्श स्थान रहा।

दरवाज
मांडू के आस-पास 45 किमी. के परकोटे में 12 दरवाजे हैं। शहर के अंदर जाने के लिए दिल्ली दरवाजे से जाना पड़ता है। इसके बाद तो दरवाजों की श्रृंखला है..आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, रामपोल दरवाजा, जहाँगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा और भी बहुत से दरवाजे हैं। इन सभी की बनावट बेहतरीन कला का नमूना है।

शाही महल : जहाज मह
यह दो कृत्रिम तालाबों मुंज तालाब और कापुर तालाब के बीच बना है। संभवतः यह सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने बड़े हरम के रूप में बनवाया था। इसके खुले गलियारे, बाहर निकली हुई बालकनी और खूबसूरत छत शाही शौक को आसानी से बयाँ करते हैं। रात के समय इसे तवेली महल से निहारना बहुत सुखदायी है।

हिंडोला मह
यह दर्शकों के लिए बैठक व्यवस्था के रूप में बनाया गया था। इसके आस-पास की दीवारें कुछ झुकी हुई सी हैं जिसके कारण इसे हिंडोला महल कहा जाता है। बलुआ पत्थरों में नक्काशी का नायाब नमूना यहाँ देखने को मिलता है। यहाँ के खूबसूरत स्तंभ मन मोह लेते हैं। इसी महल के पास कई छोटे-छोटे भवन हैं जो अपने अतीत की कहानी कहते हैं। इन्हीं के बीच चंपा बावड़ी है जो अंदर ही अंदर कमरों से जुड़ी है, इसके माध्यम से गर्म व ठंडे पानी का प्रबंध किया जाता था। यहीं पर दिलावर खान की मस्जिद, नाहर झरोखा, दो बड़े कुँए उजली और अँधेरी बावड़ी हैं।

होशंगशाह का मकबर
भारत में अपनी तरह का पहला संगमरमर का नमूना! यह अफगानी कला का बेजोड़ उदाहरण है। इसका गुंबद देखने लायक है, नाजुकी लिए हुए नक्काशी और सुंदर मीनारों के कारण यह मन मोह लेता है। इसके गुंबद से मोहित होकर शाहजहाँ ने ताज महल बनाने के पहले अपने चार स्थापत्य विशेषज्ञों को यहाँ भेजा था।

जामा मस्जि
बीच में बड़ा सा गुंबद जिसके पीछे बहुत से गुंबद हैं बीच के स्थान में भी कुछ छोटे गुंबद..पूरी रचना सरल लेकिन मन मोहने वाली है। मस्जिद का गलियारा खंभों और आर्चेस से सजा हुआ है।

रेवा कुंड
इसे रूपमती के महल में पानी पहुँचाने के लिए बनाया गया था। अब यह एक पवित्र स्थान के रूप में जाना जाता है।

बाज बहादुर का मह
16 वीं शताब्दी में बनवाया गया यह महल बड़े-बड़े गलियारों, कक्षों और ऊँची छतों के कारण भव्य लगता है। यहाँ से पूरे मांडू का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।

रूपमती झरोख
यह सैनिकों के लिए पूरे क्षेत्र पर निगाह रखने के लिए बनाया गया था। इस भव्य इमारत से बाज बहादुर के महल और निमाड़ के मैदान में बह रही नर्मदा नदी के दर्शन किए जा सकते हैं। कहा जाता है कि रानी के प्रतिदिन नर्मदा दर्शन के पश्चात अन्न-जल ग्रहण करने की आदत के कारण बाज बहादुर ने यह ऊँचा महल बनवाया था।

अन्य स्थल
नीलकं
यहाँ शिवजी का मंदिर है जिसमें जाने के लिए अंदर सीढ़ी उतरकर जाना पड़ता है। इस मंदिर के सौंदर्य को शब्दों में बयाँ नहीं किया सकता। ऊपर पेड़ों से घिरे तालाब से एक धार नीचे शिवजी का अभिषेक करती जाती है।

नीलकंठ मह
मंदिर के समीप स्थित इस महल का निर्माण शाह बदगा खान ने अकबर की हिंदू पत्नी के लिए करवाया था। इसकी दीवारों पर अकबर कालीन कला के नमूने देखे जा सकते हैं।

हाथी महल, दरिया खान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मघत की मस्जिद और जाली महल भी दर्शनीय हैं। यहाँ ईको पॉइंट पर पर्यटकों की भीड़ लगी ही रहती है। लोहानी गुफाएँ और उनके सामने स्थित सनसेट पॉइंट भी पर्यटकों को खींचता है।

कैसे जाएँ
हवाई मार्
99 किमी. पर इंदौर हवाई अड्डा सबसे निकट है जो मुंबई, दिल्ली और भोपाल से जुड़ा है।
सड़क मार्
इंदौर, धार, महू, उज्जैन और भोपाल से नियमित बस सेवा द्वारा यहाँ तक पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्
रतलाम रेल मुख्यालय (124 किमी.) मुंबई-दिल्ली मुख्य लाइन पर है और इंदौर 99 किमी. की दूरी पर है।

कब जाए
जुलाई से लेकर मार्च तक का समय यहाँ जाने के लिए उपयुक्त है। विशेष रूप से वर्षाकाल में मांडू का सौंदर्य बेहद रहस्यमयी हो जाता है इसलिए बारिश का मौसम यहाँ जाने के लिए बिल्कुल आदर्श है। इस समय यहाँ पर्यटकों का मेला लगा रहता है।

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