गुजरात में विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। पार्टी ने 160 उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की है उसमें 2017 का विधानसभा चुनाव में जीते और चुनाव हारे करीब आधे चेहरों को बदल दिया है। भाजपा ने एक तिहाई टिकट पहली बार चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को दिए गए हैं। यानि भाजपा की सूची में नए चेहरों को मौका दिया है। गुजरात में ढाई दशक से अधिक सत्ता में काबिज भाजपा को इस बार के चुनाव में सबसे अधिक चुनौती एंटी इंकमबेंसी फैक्टर यानी पूर्व और वर्तमान विधायकों के प्रति जनता की नाराजगी को दूर करना है। एंटी इंकमबेंसी फैक्टर के चलते गुजरात में भाजपा पिछले 25 वर्षों से सत्ता में है इसलिए उसे जीतने के लिए नए चेहरों की जरूरत पढ़ रही है।
दिग्गज नेता चुनावी रण से बाहर-गुजरात में भाजपा ने राज्य के नेतृत्व में पिछले साल विजय रुपाणी की जगह पहली बार चुने गए भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाने के साथ उनके मंत्रिमंडल में सभी नए चेहरों को लाकर एक संकेत दे दिए थे। गुजरात में पार्टी ने पिछले चुनाव में उतारे 182 उम्मीदवारों में से अभी तक लगभग 84 के टिकट काट दिए हैं। इनमें 38 वर्तमान विधायक हैं जिसमें राज्य में भाजपा के प्रमुख चेहरे पूर्व मुख्यमंत्री विजय रुपाणी पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल, विधानसभा अध्यक्ष डॉ निमाबेन आचार्य,पूर्व गृह राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा, पूर्व वित्त मंत्री सौरभ पटेल, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आरसी फालदू, पूर्व विधि एवं शिक्षा मंत्री भूपेंद्र सिंह चूड़ासामा के अलावा राजेंद्र त्रिवेदी, प्रदीप परमार सहित पांच वर्तमान मंत्रियों के नाम शामिल है। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से अधिकतर ने प्रदेश पार्टी अध्यक्ष विहार पाटिल को खुद पत्र लिखकर चुनाव न लड़ने का आग्रह किया था।
गुजरात ने बढाई मध्यप्रदेश भाजपा के नेताओं की टेंशन!-गुजरात के विधानसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी रणनीति पर सबसे अधिक नजर मध्यप्रदेश के नेताओं की है। गुजरात की तरह मध्यप्रदेश भी देश में भाजपा के गढ़ के रूप में पहचाना जाता है और पार्टी राज्य में लगभग दो दशक के सत्ता में है। मध्यप्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने है और राज्य में अब पार्टी चुनावी मोड में आ गई है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे है विधानसभा चुनाव को लेकर टिकट को लेकर भी भाजपा के नेताओं में टेंशन बढती जा रही है।
गुजरात में भाजपा ने जिस तरह से अपने वरिष्ठ नेताओं से किनारा कसा है उसको लेकर प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ और सीनियर नेताओं की धड़कनें बढ़ गई है। अगर मध्यप्रदेश भाजपा की बात करें तो पार्टी में ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो पिछले लंबे समय से चुनाव जीतते आए या जिन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में हार मिली थी वह इस बार फिर टिकट के बड़ दावेदार है। शिवराज कैबिनेट में शामिल कई मंत्री जोकि लंबे समय से एक ही विधानसभा सीट से चुनाव जीतते है उनमें अब पार्टी के गुजरात फॉर्मूले के बाद टेंशन बढ़ गई है।
अगर प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव की नतीजों को देखा जाए तो पार्टी के कई दिग्गज और बड़े चेहरों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इनमें कुछ नाम ऐसे थे जो उस वक्त सरकार में मंत्री भी थे जिसमें अर्चना चिटनिस, उमाशंकर गुप्ता, रुस्तम सिंह, जयभान सिंह पवैया, ओमप्रकाश धुर्वे, अंतर सिंह आर्य, दीपक जोशी, ललिता यादव,लाल सिंह आर्य,नारायण सिंह कुशवाह जयंत मलैया और शरद जैन शामिल हैं।
ऐसे में अब जब गुजरात में भाजपा ने कई दिग्गज मंत्रियों के टिकट काट दिए है तो क्या वहीं फॉर्मूला मध्यप्रदेश में भी लागू होगा औऱ वर्तमान में सरकार में कई मंत्री टिकट से दूर रहेंगे। वहीं दूसरी ओर गुजरात चुनाव के बाद मध्यप्रदेश सरकार में बड़े फेरबदल की तैयारी भी सुगबुगाहट है औऱ अनुमान है कि ऐसे चेहरे जिनको पार्टी चुनाव में नहीं मौका देना चाहती है उनको एक संदेश के साथ मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया जाए।
नेता-पुत्रों का भविष्य भी खतरे में!-गुजरात में भाजपा ने जिस तरह से नए चेहरों को आगे बढ़ाने मं परिवावाद से किनारा किया है उससे भी मध्यप्रदेश भाजपा के ऐसे दिग्गज नेता जो अपने स्थान पर अपने बेटे-बेटियों के लिए कहीं न कहीं टिकट की दावेदारी कर रहे थे वह भी अब दुविधा में है। अगर प्रदेश की राजनीति की बात करें तो दिग्गजों की श्रेणी में शामिल कई नेताओं के पुत्र पार्टी और सार्वजनिक जीवन में काफी सक्रिय है और कही न कही राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे है।
इनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान, कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के पुत्र महाआर्यमन सिंधिया, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र सिंह तोमर,शिवराज सरकार में वरिष्ठ मंत्री गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव, कैबिनेट मंत्री नरोत्तम मिश्रा के पुत्र सुकर्ण मिश्रा, कैबिनेट मंत्री कमल पटेल के पुत्र सुदीप पटेल, गौरीशंकर बिसेन के पुत्री मौसम बिसेन, इंदौर से सांसद और लोकसभा अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन के पुत्र मंदार महाजन, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान के पुत्र हर्षवर्धन सिंह, पूर्व मंत्री गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार, पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के पुत्र सिद्धार्थ मलैया शामिल है।
अगर 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो मंत्री गोपाल भार्गव के बेटे अभिषेक भार्गव टिकट के प्रबल दावेदार थे लेकिन टिकट की चर्चा के बीच परिवारवाद पर पार्टी की गाइडलाइन के बाद उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए परिवारवाद का कलंक लेकर राजनीति नहीं करने की बात करते हु लोकसभा चुनाव के लिए अपनी दावेदारी वापस ले ली थी। उस वक्त अभिषेक भार्गव ने दावा किया था कि बुदेंलखंड की तीन सीटों दमोह, सागर और खजुराहो से उनका नाम पैनल में केंद्रीय चुनाव समिति को भेजा गया है।
सक्रिय चेहरे के टिकट पर भी संशय-बीते कुछ सालों में परिवारवाद पर भाजपा के सख्त होने के बाद मध्यप्रदेश की राजनीति में ऐसे चेहरे जो परिवारवाद के नाम पर पार्टी में आ है उनके सियासी भविष्य पर सवाल उठने लगे है। परिवारवाद के सहारे सक्रिय राजनीति में एंट्री करने वाले नेताओं की एक लंबी चौड़ी सूची है। इनमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव के कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय, कैलाश सांरग के पुत्र विश्वास सांरग, कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी, सुंदरलाल पटवा के भतीजे सुरेंद्र पटवा, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र अशोक रोहाणी और पूर्व नेता प्रतिपक्ष विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा जैसे प्रमुख नाम हैं।