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भोपाल में पुलिस पर हमला और 'हिंदू भाई' की धमकी: शराब, हिंसा और सांप्रदायिकता का जहरीला कॉकटेल

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संदीपसिंह सिसोदिया

Attack on policeman in Bhopal: भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर हेड कांस्टेबल दौलत खान को शराब पीने से रोकने पर कुछ युवकों ने पीटा, उनकी वर्दी फाड़ी और गालियां दीं। बचाने आए पुलिसकर्मियों से कहा, 'तुम हिंदू भाई हो, हट जाओ।' यह घटना भारतीय संविधान के मूल्यों- समानता, एकता और कानून के शासन पर हमला है। 
 
भारत, एक ऐसा देश जहां संविधान की प्रस्तावना में 'हम भारत के लोग' की भावना निहित है, जो धर्म, जाति और समुदाय से ऊपर उठकर एकता और समानता की बात करती है। लेकिन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर हुई एक हालिया घटना ने इस भावना पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह घटना न केवल कानून-व्यवस्था की विफलता को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और धार्मिक विभाजन की खतरनाक प्रवृत्ति को भी उजागर करती है।
 
क्या है मामला : शनिवार देर रात, रानी कमलापति रेलवे स्टेशन पर सरकारी रेलवे पुलिस (जीआरपी) के हेड कांस्टेबल दौलत खान ने कुछ युवकों को स्टेशन परिसर में गाड़ी के अंदर शराब पीते देखा। अपनी ड्यूटी निभाते हुए उन्होंने युवकों को ऐसा करने से रोका। लेकिन जो हुआ, वह न केवल शर्मनाक था, बल्कि भारतीय संविधान के मूल्यों के खिलाफ एक खुला विद्रोह था। युवकों ने न सिर्फ हेड कांस्टेबल की पिटाई की, उनकी वर्दी फाड़ी, बल्कि उन्हें गालियां भी दीं। जब अन्य पुलिसकर्मी अपने सहयोगी को बचाने आए, तो आरोपियों ने उन्हें धार्मिक आधार पर संबोधित करते हुए कहा, 'तुम हिंदू भाई हो, हट जाओ।'
 
यह घटना कई स्तरों पर चिंताजनक है। सबसे पहले, यह एक पुलिसकर्मी पर हमला है, जो कानून और व्यवस्था का प्रतीक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार है और एक पुलिसकर्मी का यह कर्तव्य है कि वह इस अधिकार की रक्षा करे। लेकिन जब एक पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी निभाने के लिए दंडित किया जाता है, तो यह न केवल कानून का अपमान है, बल्कि समाज में बढ़ती गुंडागर्दी और अराजकता का संकेत भी है।
 
दूसरा, इस घटना में धार्मिक आधार पर भेदभाव का खुला प्रदर्शन हुआ। “तुम हिंदू भाई हो, हट जाओ” जैसे बयान न केवल सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 को भी चुनौती देते हैं, जो धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह बयान उस सामाजिक एकता को तोड़ता है, जिसे हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने वर्षों की मेहनत से बनाया था। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में उस भारत का निर्माण कर रहे हैं, जिसका सपना हमारे संविधान निर्माताओं ने देखा था?
 
सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल होने के बाद लोगों में आक्रोश देखा गया। 'एक्स' पर कई यूजर्स ने इसकी कड़ी निंदा की और आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन क्या यह पर्याप्त है? यह घटना एक गहरे सामाजिक और नैतिक संकट की ओर इशारा करती है। शराब पीने जैसी छोटी-सी बात पर इतना बड़ा बवाल और धार्मिक आधार पर पुलिसकर्मियों को बांटने की कोशिश समाज में बढ़ती असहिष्णुता और हिंसा की मानसिकता को दर्शाती है।
 
यह समय है कि हम आत्ममंथन करें। हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है? क्या हम अपने बच्चों को वह शिक्षा और संस्कार दे रहे हैं, जो उन्हें संविधान के मूल्यों का सम्मान करना सिखाए? क्या हमारी व्यवस्था इतनी कमजोर हो चुकी है कि कानून के रक्षक ही असुरक्षित हो गए हैं? और सबसे बड़ा सवाल, क्या हम धर्म और समुदाय के नाम पर बंटने की कीमत चुका सकते हैं?
 
भारतीय संविधान हमें एकता, समानता और भाईचारे का पाठ पढ़ाता है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन मूल्यों को न केवल अपने जीवन में अपनाएं, बल्कि समाज में फैल रही नफरत और विभाजन की भावना को रोकें। भोपाल की इस घटना को एक चेतावनी के रूप में लेना होगा। हमें कानून-व्यवस्था को मजबूत करना होगा, सांप्रदायिकता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना होगा और सबसे बढ़कर, अपने युवाओं को यह समझाना होगा कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, न कि बंटवारे में।
 
आज जरूरत है एक ऐसे समाज की, जहां हेड कांस्टेबल दौलत खान जैसे लोग बिना डर के अपनी ड्यूटी निभा सकें, जहां धर्म और समुदाय की दीवारें टूटें, और जहां 'हम भारत के लोग' की भावना हर दिल में बसे। क्या हम इसके लिए तैयार हैं? यह सवाल हम सभी से है।

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