Madhya Pradesh News : होली के त्योहार से ऐन पहले पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासियों के फागुनी उल्लास की रंगारंग झांकी पेश करने वाले पारंपरिक भगोरिया हाटों का सिलसिला इस बार 7 मार्च से शुरू होगा। ये हाट झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों के 100 से ज्यादा स्थानों पर लगाए जाते हैं। आदिवासियों की संस्कृति की चटख छटाएं निहारने के लिए इन हाटों में देश-विदेश के सैलानी उमड़ते हैं। हजारों लोगों की भीड़ वाले भगोरिया हाटों की रौनक इतनी ज्यादा होती है कि ये हाट बड़े मेलों की तरह नजर आते हैं।
जनजातीय संस्कृति के जानकार अनिल तंवर ने सोमवार को बताया कि पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में भगोरिया हाट सात मार्च से 13 मार्च के बीच अलग-अलग दिन लगेंगे। उन्होंने बताया कि ये हाट लगाने की परंपरा करीब 200 साल पहले शुरू होने के प्रमाण मिलते हैं।
तंवर के मुताबिक, भगोरिया हाटों का सिलसिला होलिका दहन से हफ्ते भर पहले शुरू हो जाता है। आदिवासी पूरे साल भले ही किसी भी स्थान पर काम करें, भगोरिया हाटों में शामिल होने के लिए वे पूरे परिवार के साथ अपने गांव जरूर लौटते हैं। हजारों लोगों की भीड़ वाले भगोरिया हाटों की रौनक इतनी ज्यादा होती है कि ये हाट बड़े मेलों की तरह नजर आते हैं।
आदिवासी टोलियां ढोल और मांदल (पारंपरिक बाजा) की थाप तथा बांसुरी की स्वर लहरियों पर थिरकते हुए इन हाटों में पहुंचती हैं। आदिवासी युवक-युवती पारंपरिक वेश-भूषा में बड़े उत्साह से भगोरिया हाटों में शामिल होते हैं। इन हाटों के लिए युवाओं की कई टोलियों के ड्रेस कोड भी तय होते हैं।
ताड़ी (ताड़ के पेड़ के रस से बनी शराब) के बगैर भगोरिया हाटों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। दूधिया रंग का यह मादक पदार्थ इन हाटों में शामिल आदिवासियों की मस्ती को सातवें आसमान पर पहुंचा देता है। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour