भोज पर्व का उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख सुनील आम्बेकर की उपस्थिति में मां नर्मदा के जल कलश के पूजन के साथ हुआ। नर्मदा साहित्य मंथन के संयोजक डॉ. मुकेश मोढ़ एवं मध्यप्रदेश शासन कि संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर भी उपस्थित रहीं। आम्बेकर ने कहा कि राजा भोज के सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्वावलंबन और स्व के लिए गौरव समाज में स्थापित हुआ हैं। राजा भोज के वास्तुशिल्प पर स्थापित किए गए मानक आज भी प्रासंगिक हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य व्यवस्था के संचालन के लिए राजा भोज की शासन व्यवस्था से सीखने की आवश्यकता हैं। उन्होंने कृषि के लिए उन्नत तकनीक विकास का भी कार्य किया। उन्होंने कहा कि हमारा अतीत गौरवशाली रहा है परंतु हमें उसे षड्यंत्रपूर्वक नहीं पढ़ाया गया। हमें उसे पढ़ने और उस पर अभिमान करने के साथ साथ भविष्य का भारत गढ़ने में उसका उपयोग करना चाहिए। वेदों में राष्ट्र की आराधना का उल्लेख मिलता हैं। राष्ट्र हम सब के लिए प्रथम होना चाहिए।
राजा भोज पर आधारित जागृत मालवा मासिक पत्रिका के विशेषांक का विमोचन किया गया। उषा ठाकुर ने कहा कि पुराने ग़लत साहित्य को उखाड़ फेंकने और वास्तविक साहित्य को स्थापित करने में साहित्य मंथन जैसे आयोजनों की महत्वपूर्ण भूमिका हैं।
साहित्य मंथन के प्रथम सत्र में उत्तराखंड राज्य के महामहिम राज्यपाल लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटा.) गुरमीत सिंह ने आंतरिक सुरक्षा, चुनौतियों एवं समाधान विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कहा राष्ट्र और समाज के लिए कार्य करना एक महान कार्य हैं।
आज जहां लोग अपने परिवार से बाहर नहीं सोच पा रहे ऐसी स्थिति में जब युवा, साहित्यकार और विचारक साहित्य मंथन जैसे आयोजनों के माध्यम से राष्ट्र की सुरक्षा जैसे विषयों से जुड़ता है तो मुझे विश्वास हैं उस देश का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। गलवान घाटी हमले के बाद जिस प्रकार पूरे देश ने एकजुटता दिखाई हैं वह प्रशंसा और गर्व करने लायक़ हैं।
भारत का बॉर्डर को लेकर क्लियर कॉन्सेप्ट हैं कि मैकमोहन रेखा तक देश हमारा हैं। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से बॉर्डर एरिया में इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है, वह हमारी सेना के मनोबल को और ऊंचा उठाने का कार्य कर रहा हैं। वर्तमान में हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती चीन हैं।
उन्होंने उपस्थित सभी विचारकों से इस विषय में अध्ययन करने और उसके बारे में चिंतन करने का आग्रह किया।
तृतीय सत्र के वक्ता राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान रहे ने मालवा प्रांत के जनजातीय विमर्श विषय पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों के बारे में सिर्फ उतना जानते हैं जो हमें किताबों के माध्यम से पढाया गया हैं। बल्कि यदि उनके बारे में गहन अध्ययन करना हो तो ये उनके बीच जाकर काम करने से ही समझा जा सकता हैं।
अब तक आदिवासियों के बारे में जो रिसर्च किए गए हैं वह अंग्रेजों द्वारा ही किए गए हैं। उन्होंने कहा की धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए यह इसलिए आवश्यक है क्योंकि धर्म बदलने पर संस्कृति का संरक्षण नहीं हो पाता एवं आरक्षण सिर्फ संस्कृति के संरक्षण के लिए हैं। सत्र संचालन डॉ. उत्तम मीना ने किया।
चतुर्थ सत्र राजा भोज की अभियांत्रिकी एवं भोपाल ताल में इतिहासकार डॉ राजीव रंजन सिंह ने अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमें इतिहास में मुगल शासकों के बारे में तो पढ़ाया गया पर राजा भोज के बारे में नहीं पढाया गया। राजा भोज के समय के वास्तु शास्त्र एवं इंजिनियरिं के उच्च स्तरीय मानक देखने को मिलते हैं। राजा भोज का इतिहास सिर्फ इतिहास न होंकर एक वैज्ञानिक अध्ययन हैं।
उनके द्वारा किए गए निर्माण कार्य में मंदिर के सामने बने नक़्शे उन्नत योजना का प्रमाण हैं। भोपाल तालाब के निर्माण का उद्देश्य सिर्फ जल आपूर्ति ही नहीं था बल्कि उससे विद्युत् उत्पादन करने की सरल विधि को प्रदर्शित करना भी था। डिजास्टर मैनेजमेंट से संबंधित उपाय भी बांध निर्माण के दौरान ध्यान में रखे गए हैं। Edited by Sudhir Sharma