इंदौर। सुमित्रा वाल्मीकि और कविता पाटीदार जैसे अपेक्षाकृत नए चेहरों को राज्यसभा के लिए मौका देने वाली भाजपा महापौर के चुनाव में इंदौर से भी चौंकाने वाला फैसला ले सकती है। इस बात की पूरी संभावना है कि यहां पार्टी किसी सामान्य वर्ग के नेता को मौका देने की वजह किसी ओबीसी नेता को मैदान में ला सकती है।
दरअसल ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर प्रदेश में जो स्थिति निर्मित हुई है और जिस तरह की नाराजगी ओबीसी वर्ग में है, उसमें भाजपा इंदौर जैसे बड़े शहर के महापौर पद पर किसी ओबीसी नेता को मौका देकर एक अलग संदेश देना चाहती हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा के बीच इस बात पर सहमति बनती नजर आ रही है कि इंदौर में किसी ओबीसी नेता को मैदान में लाया जाए। इस बदले समीकरण में पूर्व विधायक और भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीतू जिराती महापौर पद के सबसे मजबूत दावेदार हो सकते हैं।
मूलतः कैलाश विजयवर्गीय के राजनीतिक शिष्य माने जाने वाले जिराती को मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष भी पसंद करते हैं। ग्वालियर संभाग का प्रभारी होने के नाते हैं उनका केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी बेहतर तालमेल है और सिंधिया को भी उनके नाम पर कोई आपत्ति नहीं रहेगी। इंदौर के मामले में कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका भी अहम रहना है और इसका भी फायदा जिराती को मिलना तय है। भाजपा के नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे भी इस मामले में जिराती के मददगार साबित हो सकते हैं।
ओबीसी वर्ग से दूसरे मजबूत दावेदार इंदौर विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष मधु वर्मा मैदानी स्तर पर उनकी पकड़ जिराती से ज्यादा मजबूत है। वर्मा की गिनती पार्टी के उन नेताओं में होती है जिनका मतदाताओं से जीवंत संपर्क माना जाता है। वे संगठन में भी काफी सक्रिय हैं और पार्टी जो भी जिम्मेदारी उन्हें सकती है उसका निर्वहन इमानदारी से करते हैं।
नगर निगम में अलग-अलग भूमिकाओं में वर्मा ने जिस मजबूती से काम किया है वह महापौर पद की दौड़ में उनके लिए बहुत मददगार साबित हो सकता है। लेकिन बढ़ी हुई उम्र उनका नकारात्मक पक्ष साबित हो सकती है। वर्मा के एक मजबूत पैरोकार मंत्री तुलसी सिलावट हैं और इसी रास्ते उन्हें सिंधिया से भी मदद की उम्मीद है।
ग्वालियर शहर का प्रभारी होने के नाते वर्मा के भीतर सीधे सिंधिया से जुड़े हुए हैं। पूर्व महापौर और पार्टी के कद्दावर नेता कृष्ण मुरारी मोघे भी वर्मा की मदद कर रहे हैं लेकिन कोर कमेटी में मोघे की गैरमौजूदगी का नुकसान भी वर्मा को ही होना है। वैसे एक जमाने में वर्मा मुख्यमंत्री के बहुत प्रिय पात्र रहे हैं।
डॉक्टर खरे को लेकर पार्टी में ही असहमति, संघ में भी मतभेद: सामान्य वर्ग से महापौर पद के मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं डॉ निशांत खरे को लेकर भाजपा के ही एक वर्ग का मानना है कि यदि कांग्रेस संजय शुक्ला को मैदान में लाती है तो फिर डॉक्टर खरे संगठन के मजबूत नेटवर्क और संघ की मदद के बावजूद व्यापक पहचान के अभाव में कमजोर साबित हो सकते हैं।
डॉक्टर खरे को लेकर संघ के एक घड़े में भी असहमति के भाव हैं। संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी उनके संघ का महत्वपूर्ण दायित्व छोड़ कर सक्रिय भूमिका में आने के निर्णय से सहमत नहीं थे। वह यह भी मानते हैं कि संघ की भूमिका को भाजपा में जाने के लिए सीढी के रूप में उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
विद्यार्थी परिषद की लॉबी पुष्यमित्र के पक्ष में : एक जमाने की विद्यार्थी परिषद की टीम जो इस समय भाजपा में बहुत पावरफुल है ने अपर महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव की उम्मीदवारी के लिए पूरी ताकत लगा रखी है इस टीम को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा से भी मदद मिलने की उम्मीद है। भार्गव को शर्मा का प्रिय पात्र माना जाता है।
मुख्यमंत्री ने मेंदोला से कहा चुनाव तुम्हें संभालना है : इंदौर में महापौर के टिकट के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं विधायक रमेश मेंदोला को पार्टी के नीतिगत निर्णय के चलते शायद मौका न मिल पाए। पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इंदौर आए थे तब उन्होंने मेंदोला से कहा कि चुनाव तुम्हें ही संभालना है सब काम देखना पड़ेगा। मुख्यमंत्री के इस संकेत के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं।