Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हानिकारक 'गाजर घास' का हो निवारण

हमें फॉलो करें हानिकारक 'गाजर घास' का हो निवारण
- कुंवर राजेन्द्रपाल सिंह सेंगर 
बागली (देवास)। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने स्वच्‍छता मिशन को अपने एजेंडे में सर्वोच्च स्थान दिया था, जिसके तहत नगरों व ग्रामों में शौचालय निर्माण किए ही जा रहे हैं। साथ ही गांधी जयंती पर स्वच्छता अभियान की शुरुआत भी जोरदार तरीके से की गई थी। जिसमें अधिकारी व जनप्रतिनिधि हाथों में झाडू लिए नजर आए थे। लेकिन इस महा अभियान में कभी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक गाजर घास उन्मूलन पर किसी ने ध्यान देने का भी प्रयास नहीं किया। 
 
साथ ही सरकारी या सामाजिक स्तर पर भी अब तक इसके निवारण की आवश्यकताओं को महसूस नहीं किया गया है, जबकि  मानव शरीर में  हाईली एलर्जी (उच्चतम प्रत्यूर्जता) पैदा करने वाली गाजर घास से शहरों व कस्बों में समान रूप से दमा व श्वसन संबंधी रोगियों की संख्या में आर्श्चजनक बढ़ोतरी हुई है। हम इस अमेरिकी बीमारी को अपनी सड़कों के किनारे देखकर भी चुपचाप गुजरने पर विवश हैं। 
 
जानकारी के अनुसार, गाजर घास ने सड़कों के किनारे, रिक्त मैदानों, नदी-नालों के किनारों व बेसिन और गंदे स्थानों को वर्षों से अपने कब्जे में ले रखा है, जिसके चलते देशी खरपतवार पुवाडिया, आंधीझाड़ा सहित अन्य देशी घासों की कमी हो गई है। नगरों, कस्बों, ग्रामों व शहरो में सफेद फूलों  की यह घास गंदगी का पर्याय है। जिस तादाद में प्रदेश में आवारा मवेशियों की तादाद बढ़ी है। इसी तेजी के साथ गाजर घास का भी विस्तार हुआ है। क्योंकि मवेशी इसके साथ ही आमतौर पर उगने वाली देशी खरपतवार व घास खाना पसंद करते हैं और इसे पनपने के लिए काफी विस्तार मिलता है। 
अपने देश की नहीं है।
webdunia
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन  की वनस्पति व पर्यावरण अध्ययन शाला के प्राध्यापक डॉ. जेके शर्मा ने बताया कि गाजर को अमेरिका में पार्थेनियम कहा जाता है, क्योंकि यह मूल रूप से अपने देश की नहीं है। दूसरे देश से आई है इसलिए इसे एक्जोटिक स्‍पीशिस भी कहा जाता है। माना जाता है कि वर्ष 1980 में अमेरिका से किए गेंहू निर्यात के दौरान भारत आई थी और तब से ही इसने अपना परिवार बढ़ाना आरंभ कर दिया था।
 
एक पौधे में है 50 हजार नए पौधों को जन्म देने की क्षमता 
डॉ. शर्मा ने बताया कि इस घास को कांग्रेस ग्रास भी कहा जाता है, जिसका असर त्वचा पर सबसे अधिक होता है। लगातार संपर्क में आने पर त्वचा मोटी व काली पड़ जाती है। इसके निवारण का सबसे सरल हल यही है कि इसे फूल आने से पूर्व उखाड़कर जला देना चाहिए, क्योंकि इसका एक स्वस्थ्य पौधा 50 हजार नवीन पौधों को जन्म देने की क्षमता रखता है।
 
श्वसन व त्वचा संबंधी रोगियों की बढ़ोतरी
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की चिकित्सक डॉ. रीतुसिंह शेखावत ने बताया कि इस घास के संपर्क में आने से शरीर में हाईली एलर्जी उत्पन्न होती है जो कि त्वचा व श्वसन संबंधी रोगों को बढा़वा देती है। आमतौर पर मजदूर और कृषक इससे अधिक प्रभावित होते हैं, जबकि शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों और नालों के समीप रहने वाले लोग प्रभावित होते हैं, जिसमें खुजली, ददोड़े, लगातार खांसी व सर्दी बनी रहती है। कभी-कभी तो इससे हुई एलर्जी के निवारण के लिए उच्चस्तरीय उपचार की आवश्यकता होती है। 
 
पृथक से हो गाजर घास निवारण 
कृषक देवकरण राठौर व महेश गुप्ता ने बताया कि स्वच्छता अभियान के अंतर्गत पृथक से गाजर घास निवारण होना चाहिए, जिससे कि बढ़ने से पूर्व ही इसे रोका जा सके। इसके लिए तारबंदी भी की जा सकती है, जिससे कि मवेशी देशी खरपतरवार व घास नहीं खाए और उनकी बढ़ोतरी से यह नष्ट हो। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

मॉनसून अपडेट : बिहार में भारी बारिश, कोसी और कमला बलान उफान पर