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शिक्षक वही है जो बच्चे की आंखों से भविष्य को पढ़ सके : दीपक खरे

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इंदौर , सोमवार, 30 मई 2016 (23:02 IST)
इंदौर। शहर के ख्यात चिंतक और शिक्षाविद्‍ दीपक खरे का आज देवी अहिल्या जन्म उत्सव समिति द्वारा अभिनंदन किया गया। उन्हें समिति की ओर से 1 लाख 11 हजार 111 रुपए की श्रद्धा निधि भेंट की गई। 'देवी अहिल्या नगर गौरव' से सम्मानित श्री खरे ने बड़ी ही विनम्रता के साथ यह राशि ग्रहण करके उसे वापस समिति को लौटा दी ताकि वह देवी अहिल्या के प्रति कार्य करने वाले दूसरे लोगों को यह राशि दे सके। खरे सर से शिक्षा प्राप्त करने वालों का देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में एक बड़ा समूह है, जो उन्हें हमेशा बड़ा आदर देता आया है। इसी आदर की एक झलक आज देखने को मिली।  
स्थानीय जाल सभागृह में यह 'आत्मीय अभिनंदन' बिलकुल अलग और अनूठा रहा, जो उपस्थित अपार जनसमूह के दिलों पर अंकित हो गया। आज के समय में जहां लोग पैसा देकर खुद का सम्मान करवाने से नहीं चूकते हैं, वहीं दूसरी ओर श्री खरे जैसे शिक्षाविद्‍ हैं, जो सम्मान राशि को सहजता के साथ लौटा देते हैं, ताकि वह किसी दूसरे जरूरतमंद के काम आ सके। 
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सम्मान अवसर पर श्री खरे ने कहा कि आधुनिक समय में शिक्षा का स्वरूप इस ढंग से होना चाहिए कि शिक्षक बच्चों की आंखों में पढ़कर यह जान सके कि वह क्या बनना चाहता है। जब शिक्षक बच्चे के भविष्य को उसकी आंखों में ही पढ़ लेगा, तभी वह उसे उसी योग्य बना पाएगा। यही बात मल्हार राव होलकर ने अहिल्या बाई की आंखों में देखकर जानी थी और उसी ढंग से उन्हें शिक्षा दी थी। आज पूरे देश में अहिल्या बाई होलकर का नाम बड़े ही सम्मान के साथ लिया जाता है। 
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श्री खरे ने कहा कि जो काम मल्हार राव ने किया था, वही काम मैं भी कर रहा हूं और उन्हीं बच्चों को तैयार करने में जुटा हूं, जिनमें पढ़ने की रुचि है। कई बच्चे प्रतिभाशाली होने के कारण संसाधनों के अभाव में आगे पढ़ नहीं पाते हैं। मैं उन्हीं बच्चों की तलाश करता हूं, जिन्हें वाकई शिक्षा की जरूरत है और आगे बढ़ने का उनमें हौसला है। मैं यही छोटा सा कर्तव्य निभा रहा हूं। 
 
उन्होंने कहा कि मैं भी मध्यमवर्गीय परिवार से हूं। गरीबी में मैं पला और बड़ा हुआ। मुझे आगे बढ़ाने में मेरे माता-पिता का बड़ा हाथ रहा है। इस समाज से मैंने जो भी अर्जित किया है, मैं उसी को वापस लौटाना चाहता हूं। मैं जीवन की अंतिम सांस तक उसे लौटाने का प्रयास करूंगा और लौटाकर ही जाऊंगा।
 
'देवी अहिल्या नगर गौरव' समारोह में श्री खरे के गुरु बी.डी. दीक्षित भी मौजूद थे। जब 82 वर्षीय श्री दीक्षित का चरण स्पर्श करके उन्होंने आशीर्वाद लिया, तब जाल सभागृह में बेहद भावुक वातावरण निर्मित हो गया। इस मौके पर प्रोफेसर सरोज कुमार, 'वेबदुनिया' के संपादक जयदीप कर्णिक, ऋषिका नातू, डॉ. भरत छपरवाल, संदीप मानुधने ने भी संबोधित किया। 
 
समारोह में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति नरेन्द्र धाकड़, परशुराम घुणे ने श्री खरे को श्रद्धानिधि व अभिनंदन पत्र भेंट किया। प्रारंभ में स्वागत परशुराम घुणे, प्रदीप गावड़े, वंदना लालगे, रागिणी खरात ने किया। डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल ने संस्था का परिचय दिया। स्वागत संबोधन विधायक उषा ठाकुर ने दिया। संचालन अलका भार्गव ने किया तथा आभार सुनील गणेश मतकर ने माना। 
 
दीपक खरे का संक्षिप्त परिचय : शिक्षा के क्षेत्र में दीपक खरे की शहर ही नहीं पूरे देश में अलग ही शख्सियत रही है। उन्होंने बीएससी बायलॉजी में प्रदेश में सर्वोच्च अंकों से उत्तीर्ण की और 1972 में एमएससी बायो केमिस्ट्री में सर्वोच्च वरीयता से करने के बाद रिसर्च के लिए हैदराबाद चले गए। कुछ समय बाद पारिवारिक कारणों की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा।
 
इंदौर लौटने के बाद वे इंदौर विश्वविद्याल (अब देवी अहिल्या विश्वविद्यालय) में वे जीव विज्ञान संकाय में शिक्षक बने। 1974 में दीपक खरे ने नूतन कन्या महाविद्यालय में व्याख्याता का पद ग्रहण किया। कुछ समय बाद उन्हें लगा कि वे नौकरी करने के लिए नहीं बने हैं, लिहाजा व्याख्याता का पद छोड़ दिया। 
 
इसके बाद वे बच्चों को शिक्षा दान करने के अभियान में जुट गए। पिछले 36 सालों से वे शिक्षादान के जरिए हजारों विद्‍यार्थियों का भविष्य संवार चुके हैं। उनके शिष्य न केवल देश में कई उच्च पदों पर आसीन हैं, बल्कि विदेशों में भी वे ऊंचा मुकाम हासिल करके अपने गुरु का नाम रोशन कर रहे हैं। 
अज्ञान के अंधियारे से लड़ता “बड़ा दीपक”

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