Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

संकल्‍प लेकर इसे फ‍िर से प्रकृत‍ि का ‘शब ए मालवा’ बनाना होगा

हमें फॉलो करें संकल्‍प लेकर इसे फ‍िर से प्रकृत‍ि का ‘शब ए मालवा’ बनाना होगा
, शनिवार, 5 जून 2021 (12:08 IST)
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जिमी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलेपमेंट द्वारा आयोजित पर्यावरण संवाद आयोजित किया गया। ‘प्राकृतिक व्यवस्था की पुनर्स्थापना के लिए मालवा में पर्यावरण संरक्षण’  विषय पर इंदौर के दो वक्‍ता डॉ ओ.पी.जोशी और डॉ जयश्री सिक्का ने अपनी बात कही।

कार्यक्रम की आयोजक सेंटर की निदेशिका जनक पलटा मगिलिगन ने स्वागत किया और पर्यावरण संवाद की संक्षिप्त  जानकारी देते हुए बताया कि 1992 ब्राजील में हुए पृथ्वी सम्मेलन से प्रेरित होकर वे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील और संकल्पित होकर लौटी और सोचा कि अब पर्यावरण संरक्षण करना है।

डॉ ओपी जोशी ने कहा कि मालवा में मानसूनी पतझड़ी वन प्रमुख हैं, जिनमे बबुल, नीम, बहेड़ा, जामुन, करंज, सागोन, शीशम सलाई, धावड़ा, अंजन, टेमरू, पलास, बांस की मात्रा एक समय मालवा में 30 से 60 प्रतिशत थी। मालवा में जैव विविधता भी काफी थी। लेकिन अवैध कटाई से यह लगातार घटती जा रही है।

कैसे पुनर्स्थापित होगा
अवैध कटाई, अतिक्रमण, आगजनी की घटनाएं मंदसौर नीमच के वन अवैध चराई पर नियंत्रण मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाने हेतु जैविक खेती को बढ़ावा। भू जल का उपयोग नियंत्रित कर सतही जल का उपयोग बढ़ाया जाए। तालाबों, नदियों को पुनर्जीवित के प्रयास किया जाए। वर्षा जलसंवर्धन बढ़ाने के प्रयास प्रदूषण के नियम कानून सख्ती व ईमानदारी से लागू हो। संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने में आधुनिक तकनीक मालवा रेगिस्तान ना बने इस हेतु जनजागृति बढ़ाना होगी।

मालव माटी गहन गंभीर
डॉ जयश्री सिक्का ने कहा मालवा धरती गहन गंभीर,पग पग रोटी डग डग नीर वाले मालवा की जलवायु बहुत ही अच्छी होती थी, परंतु पिछले कुछ दशकों से हमने इसके पर्यावरण पर ध्यान नहीं दिया और अब हमारी धरती बंजर होती जा रही है। हम सभी इसके लिए जिम्मेदार हैं। अच्छी जलवायु के कारण ही यहां बाहर से आने वाले लोग बहुत हैं जो यहां बस गए हैं। परिणामस्वरूप शहरीकरण हो गया और बहुत सारी खेती योग्य उत्कृष्ट भूमि का नाश हुआ। हमारे नीति निर्धारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। भूमिगत जल स्तर नलकूपों से  अत्यधिक दोहन के कारण बहुत नीचे चला गया। 80 के दशक तक जहां उज्जैन में कुआं खोदने पर 20-25 फुट पर पानी मिल जाता था, वहीं अब 600 फीट पर बोरिंग में पानी नहीं है। हमने मालवा को जलविहीन कर दिया है और हमें ही अब अपने प्रयासों से इसे फिर से पानीदार बनाना होगा।

क्षि‍प्रा, कालीसिंध, केन, बेतवा, और नर्मदा जैसी कई नदियां हैं, लेकिन अब नर्मदा के अलावा किसी में भी सालभर पानी नहीं बहता। तालाबों को पाट दिया। कभी हमारे मांडू में 40 तालाब थे, इंदौर में 60 से अधिक तालाब थे। हमने इन्हें सहेजने के बजाय नष्ट कर दिया और इन पर बसाहटें बना दी। नदियों और तालाबों के जलग्रहण क्षेत्रों पर कोलोनियां बसा दीं। अब हमें इन्हें फिर से पुनर्जीवित करना होगा। हमें हमारी मिट्टी/ जमीन की उर्वरता को बचाने की कोशिश करनी चाहिए। उन्नत और औद्योगिक खेती के नाम पर रसायनों और कीटनाशकों का उपयोग करते रहे। भोजन को दूषित करते रहे हैं। इनके करण कैंसर जैसी कई बीमारियां हमें होती है क्योंकि ये रसायन हमारे शरीर में जमा होते जाते हैं। इसे बायोएक्युमुलेशन कहते हैं। जैविक खेती की ओर वापस जाएं, मशीनों की जगह फिर से बैलों का उपयोग करें ताकि हमें पराली जलाने की आवश्यकता न पड़े।

जनक पलटा मगिलिगन और कार्यक्रम के होस्ट समीर शर्मा ने आभार व्यक्त किया। यह कार्यक्रम सभी के लिए निशुल्क खुला है। अगले दिनों के प्रोग्राम भी इसी के द्वारा लाइव किए जाएंगे। फेसबुक लिंक  - www.facebook.com/groups/Indorewale
यूट्यूब लिंक - https://www.youtube.com/c/Indorewale

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के 1,179 गांव कोरोनावायरस से मुक्त, दूसरी लहर में एक भी मामला नहीं आया सामने