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भोपाल में सीएम हाउस में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण, बोले मुख्यमंत्री, विक्रमादित्य वैदिक घड़ी ही वास्तविक घड़ी,

उज्जैन से 32 किमी दूर खिसका दुनिया का सेंटर पॉइंट

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विकास सिंह

, सोमवार, 1 सितम्बर 2025 (15:18 IST)
भोपाल। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आज मुख्यमंत्री निवास में विक्रमादित्य वैदिक घड़ी और इसके मोबाइल एप का लोकार्पण किया। इस मौके पर उन्होंने वहां मौजूद लोगों को विक्रमादित्य घड़ी की विशेषताएं बताईं। उन्होंने कहा कि विक्रमादित्य वैदिक घड़ी ही वास्तविक घड़ी है। इसके माध्यम से ग्रह-नक्षत्रों के साथ-साथ पूरे पंचांग की जानकारी भी मिल जाएगी। सीएम डॉ. यादव ने कहा कि ये वैदिक घड़ी नहीं है, ये हमारे भारत के वर्तमान के हालचाल दुनिया को बता रही है। इस मौके पर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के जुड़ा प्रसंग भी सुनाया। कार्यक्रम के दौरान सीएम डॉ.यादव ने जनता से मोबाइल टॉर्च जलवाकर एप भी डाउनलोड कराया।

इस मौके पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि 300 साल पहले तक कालगणना भारत से दुनिया में जाती थी। हमारे व्रत-त्योहार अंग्रेजी तिथि से नहीं आते। इसलिए इनकी अंग्रेजी तिथि बदलती रहती है। हमारी कालगणना इतनी वैज्ञानिक और सटीक है कि ऋतुओं को भी बांधकर रखा गया है। हमारी 6 ऋतु हैं। यह गणना इतनी सटीक है कि अगर सावन का महीना बारिश का है तो वर्षा होगी ही होगी। भादौ में बारिश की झड़ी लगेगी ही लगेगी। हम सब साक्षी हैं कि हमारे बांध लबालब भरे हुए हैं। अंग्रेजी तिथियों में 31 का महीना और 28-29 दिन का फरवरी हमारी गणना के बाद ही आए। अगर हम सूर्योदय-सूर्यास्त का अंतर करें तो कई चीजें स्पष्ट हो जाती हैं। हमारी हर बात का प्रमाण प्रकृति में है। ज्वार और भाटा का भी तथ्य रोचक है। अगर चंद्रमा नीचे आता है तो ज्वार-भाटा में लहरें ऊपर तक जाती हैं। प्रकृति सिद्ध कर रही है कि हमारी तिथियों की गणना सही है।

शरीर पर भी पड़ता है चंद्रमा का असर-सीएम डॉ. यादव ने कहा कि ज्वार-भाटा के समय मेंटल हॉस्पिटल में भी अधिकतम समय मरीजों की संख्या बढ़ती है। डॉक्टरों को निर्देश दिए जाते हैं कि अमावस-पूनम के दिन मरीजों की विशेष रूप से चिंता करें। इस दिन बाहर से भी नए मरीज आते हैं। जब चंद्रमा का असर समुद्र पर पड़ता है तो हमारे शरीर पर भी पड़ता है। क्योंकि, हमारे शरीर में 70 फीसदी जल है। ऐसे में जब जल का दबाव मस्तिष्क पर पड़ता है तो मानसिक रोगियों को समस्या होती है। हमने इन सब चीजों का हिसाब बड़ी बारीकी से लगाया है। हमने कहा है कि सूर्योदय से सूर्योदय तक गणना होनी चाहिए। दिन के 24 घंटे की गणना से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसका कोई प्रमाण नहीं है कि रात को 12 बजे के बाद दिन बदल जाएगा। इसलिए अपनी प्राचीन गणना में एक दिन में 30 मुहूर्त हैं।

जरूरत पड़ने पर बदलाव करना जरूरी-मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि इतिहास गवाह है कि इसी कालगणना के आधार पर एक वैज्ञानिक ने पश्चिमी देशों से कहा कि सूर्य परिक्रमा नहीं करता, बल्कि पृथ्वी उसके चक्कर लगाती है। उसकी बात सुनकर पश्चिमी देश उसे फांसी देने जा रहे थे। अंग्रेजों का कहना था कि जो कह दिया सो कह दिया, उसमें बदलाव नहीं होगा। यह गलत है। जरूरत पड़ने पर बदलाव क्यों नहीं होना चाहिए। समय के साथ कई दूसरी चीजें भी सामने आती हैं। हमारी पद्धति में वैज्ञानिक तरीके से जानकारी निकाली जाती है। अगर सूर्य की गति देखना है तो उसकी ओर आंख उठाकर तो नहीं देख सकते, इसलिए उसकी छाया के अनुसार उसकी गति देखी जा सकती है। इस गणना के साथ ही शंकु यंत्र के माध्यम से ही दिन-रात की बराबरी, सबसे बड़े दिन-सबसे बड़ी रात की जानकारी भी मिल जाती है।

दुनिया मानती है हमारा पंचांग-उन्होंने कहा कि देश का सेंटर पॉइंट उज्जैन है। उज्जैन का सेंटर पॉइंट दोलायमान है। इस वजह से अब यह पॉइंट उज्जैन से 32 किमी दूर डोंगला पहुंच गया है। इस सेंटर पॉइंट को वापस दोलायमान होकर यहां आने-जाने में साढ़े 27 हजार साल लगेंगे। आज भी हमारे सामने भगवान श्री कृष्ण का 5000 साल पुराना इतिहास मौजूद है। उस वक्त उज्जैन में पढ़ाई के दौरान  भगवान कृष्ण ने डोंगला के समीपवर्ती गांव नारायणा में सुदामा के साथ एक रात गुजारी थी। माना जाता है कि वे दोनों भी कालगणना के केंद्र को ढूंढने वहां गए थे। ऐसे कई रहस्य कालगणना के माध्यम से सामने आएंगे। आज हमारे पंचांग और वैदिक गणित को दुनिया मानती है। अगर दस हजार साल पहले के सूर्य और चंद्र ग्रहण की गणना करनी हो तो कंप्यूटर फैल हो जाएगा। लेकिन, हमारे ज्योतिषी पंचांग के हिसाब से मिनटों में बता देंगे कि ग्रहण कब-कब लगा था।

अमृत काल में स्थापित हों गौरवांवित करने वाले प्रतिमान-सीएम डॉ. यादव ने कहा कि हम अमृत काल में हैं। इसलिए इस काल में वो सारे प्रतिमान बनने चाहिए, जिनसे भारतीय संस्कृति सदैव गौरवांवित होती रहे। हम सभी को पता है कि दुनिया का समय बदल रहा है। एक वक्त पश्चिम का था, लेकिन अब समय पूर्व का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने दृष्टिकोण को लेकर दुनिया में आगे बढ़ रहे हैं। वे स्वदेशी को बढ़ावा दे रहे हैं। दुनिया के सामने भारत की अच्छाइयां ले जाने का यही सही समय है। साल 2014 में पद संभालने के 6 महीने बाद ही प्रधानमंत्री मोदी ने यूनेस्को के जरिये योग को दुनिया में स्थापित किया था। हमारी संस्कृति-ज्ञान-कौशल केवल भारत के लिए नहीं है, बल्कि पूरी मानवता के लिए है। 2000 साल पहले सुशासन का मापदंड सम्राट विक्रमादित्य के शासनकाल में स्थापित हुआ था। प्रधानमंत्री मोदी के शासनकाल में सुशासन का ही समय चल रहा है। वे एक तरफ वैज्ञानिकों के प्रति उदार दृष्टिकोण रखते हैं, तो दूसरी तरफ देश की ओर आंख उठाने वालों को उनके घर में घुसकर सबक सिखाते हैं।  कार्यक्रम के अंत में सीएम डॉ यादव ने कहा कि हमारी घड़ी सही चल रही है। ये वैदिक घड़ी नहीं है, ये हमारे भारत के वर्तमान के हालचाल दुनिया को बता रही है। मैं सभी को इस दिन की शुभकामना देता हूं।
 

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