भोपाल। कर्नाटक में तेजी से बदल रहे सियासी घटनाक्रम और विधायकों के इस्तीफे के चलते कांग्रेस - जेडीएस सरकार पर संकट मंडरा रहा है। कर्नाटक में इस सियासी नाटक के चलते एचडी कुमारस्वामी सरकार के अल्पमत में आने का खतरा पैदा हो गया है और सरकार गिरने की अटकलें लगाई जा रही है। वहीं दूसरी ओर कर्नाटक के नाटक का साया मध्यप्रदेश पर भी पड़ सकता है।
अगले कुछ दिन सूबे की कमलनाथ सरकार के लिए अग्निपरीक्षा वाले साबित हो सकते हैं। सोमवार से शुरू हो रहा मध्य प्रदेश का विधानसभा सत्र कमलनाथ सरकार के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा। सत्र में विपक्ष किसान कर्जमाफी, कानून व्यवस्था, बिजली और तबादलों के मुद्दों को उठाकर सरकार को घेरने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगा।
विधानसभा सत्र में कमलनाथ सरकार अपना पहला पूर्ण बजट पेश करेगी तो विपक्ष इसी बजट को सरकार को घेरना का सबसे बड़ा हथियार बनाने की रणनीति तैयार कर रही है। विपक्ष बजट पेश होने के बाद हर विभाग के बजट कटौती प्रस्ताव के जरिए डिवीजन की मांग कर सरकार के समाने मुश्किल खड़ा करने की कोशिश करने की रणनीति बनाने में जुटा है। अगर किसी विभाग के बजट पर डिवीजन के दौरान वित्तीय विधेयक अगर गिर जाता है तो सरकार की किरकिरी के साथ संवैधानिक संकट भी खड़ा हो सकता है।
सत्र में विपक्ष की रणनीति बनाने के लिए सोमवार को ही भाजपा विधायक दल की बैठक भी बुलाई गई है। इसमें विपक्ष अपने सभी विधायकों को सत्र के दौरान पूरे समय में सदन में मौजूदा रहने के निर्देश देगा। लोकसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के भविष्य पर सवाल उठाने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता विधानसभा में सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं चूकना चाहते हैं।
मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं कि जिस तरह का विधानसभा का सियासी समीकरण है उससे तो विधानसभा सत्र का हर दिन कमलनाथ सरकार के लिए अग्निपरीक्षा वाला होगा।
वहीं मध्यप्रदेश में कर्नाटक की तरह किसी भी प्रकार के सियासी हालात के बनने की संभावना के सवाल पर गिरिजाशंकर कहते हैं कि उनको नहीं लगता कि मध्यप्रदेश में अभी ऐसा कुछ होने वाला है क्योंकि कर्नाटक में भाजपा के पास येदियुरप्पा जैसा एक नेता है जो बराबर सरकार बनाने की संभावना में जुट हुआ है, लेकिन मध्यप्रदेश में हालात एक दम अलग है।
अगर मध्य प्रदेश विधानसभा के सियासी समीकरण की बात करे तो सरकार के पास कुल 121 विधायकों का समर्थन है वहीं भाजपा के सदस्यों की संख्या अब 108 रह गई है। झाबुआ से विधायक जीएस डामोर ने सांसद बनने के बाद विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। कमलनाथ सरकार को समर्थन देने वाले कई निर्दलीय विधायक पिछले कई दिनों से सरकार से नाराज बताए जा रहे हैं। बुरहानपुर से निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा कई बार आश्वासन मिलने के बाद भी अब तक मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज है।